संस्कृत विवि : एसआइटी ने पिछले दस वर्षों के कुलपतियों व कुलसचिवों का मांगा विवरण
परीक्षा अभिलेखों में हुई हेराफेरी की जांच कर रही एसआइटी ने संस्कृत विवि को घेरना शुरू कर दिया है, जांच की आंच पूर्व कुलपतियों व कुलसचिवों पर भी आ रही है।
वाराणसी [अजय श्रीवास्तव]। परीक्षा अभिलेखों में हुई हेराफेरी की जांच कर रही एसआइटी (विशेष अनुसंधान दल) ने संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय को घेरना शुरू कर दिया है। जांच की आंच अब पूर्व कुलपतियों व कुलसचिवों पर भी आ रही है। एसआइटी ने कुलपति प्रो. राजाराम शुक्ल से वर्ष 2004 से 2014 तक (दस वर्ष) कुलपतियों व कुलसचिवों का नाम, उनकी कार्यावधि तथा स्थायी पता मांगा है। साथ ही इसके लिए जिम्मेदार अधिकारियों व कर्मचारियों के खिलाफ हुई कार्रवाई का पूरा ब्यौरा भी तलब किया है।
जांच के संबंध में इंस्पेक्टर आरपी शुक्ल के नेतृत्व में एसआइटी की दो सदस्यीय टीम गत दिनों विश्वविद्यालय भी आई थी। तीन दिनों तक व्यापक छानबीन करने के बाद एसआइटी वापस चली गई। वहीं एसआइटी, लखनऊ की अपर पुलिस अधीक्षक अमृता मिश्रा ने कुलपति को पत्र लिखकर कई बिंदुओं पर जानकारी मांगी है। मसलन टेबुलेशन रजिस्टर (टीआर) कब से कप्यूटराइज्ड है। किस पाठ्यक्रम, किस वर्ष के टीआर में कटिंग व पन्ने गायब हैं। टीआर पर जिम्मेदार अधिकारियों के हस्ताक्षर कब से नहीं हैं। इस संबंध में विश्वविद्यालय की ओर से क्या कार्रवाई की गई। प्राथमिकी व गिरफ्तारी का भी पूरा विवरण मांगा है।
दूसरी ओर सूबे के 65 जिलों में से महज 18 जिलों को अब तक सत्यापन रिपोर्ट भेजी गई है। इस पर भी एसआइटी ने कड़ी आपत्ति जताई है। दरअसल सूबे के विभिन्न जनपदों में बेसिक शिक्षा विभाग से संचालित विद्यालयों में विश्वविद्यालय के उपाधिधारक बड़े पैमाने पर चयनित हुए थे। अंकपत्रों के सत्यापन रिपोर्ट में व्यापक पैमाने पर अनियमितता बरती गई। एक बार वैध तो दूसरी बार उसी परीक्षार्थी को फर्जी बताया गया। इसे देखते हुए एसआइटी सभी जिलों में चयनित अध्यापकों के अंकपत्रों व प्रमाणपत्रों का दोबारा सत्यापन करा रही है।