'देश राग' गाती, दिलों को दिलों से मिलाती एक अलेबली सड़क बनारस की
कुमार अजय, वाराणसी : सड़कों की नियति ही होती है कहीं से चलना, आगे बढ़ना और अगले किसी मोड़ पर इंतजार करती किसी और सड़क में विलीन हो जाना।
कुमार अजय, वाराणसी : सड़कों की नियति ही होती है कहीं से चलना, आगे बढ़ना और अगले किसी मोड़ पर इंतजार करती किसी और सड़क में विलीन हो जाना। आइए! आज हम आपको शहर बनारस की एक ऐसी सड़क पर टहलाते हैं जो न रुकती है, न मुड़ती है, हर रोज अलग-अलग प्रांतों की भाषा-वेशभूषा और संस्कृतियों की एका का 'कुंभ' भरती है, सीधे देश की धड़कनों से जुड़ती है।
हम इस वक्त खड़े हैं काशी के विश्वविख्यात गंगा घाट दशाश्वमेध को शेष बनारस से जोड़ने वाली मुख्य सड़क के पश्चिमी मुहाने पर जिसकी पहचान है गोदौलिया चौराहा के नाम से। दरअसल यही वह मरकज है जहां से रेला की शक्ल में देश के हर प्रांत के तीर्थयात्री और सैलानी हर पल-हर छिन देश गीत गाने वाली इस अनूठी सड़क की ओर कदम बढ़ाते हैं, हर सुबह-हर शाम राष्ट्रीय ऐक्य का मेला लगाते हैं। हमारे साथ आइए और टुकड़े-टुकड़े दृश्यों से कैसे बनता है। लघु भारत का नक्शा यह चमत्कार देखते जाइए..
गोदौलिया चौराहा (शाम 4.30 बजे)
चौराहे की दक्षिणी सड़क पर लगभग आधा किलोमीटर दूरी पर स्थित जंगमबाड़ी मठ के विशाल द्वार से निकल रहा है मंगल गीत गाता, जयघोष से आकाश गुंजाता जत्था 'वीर शैव' मराठी तीर्थयात्रियों का। काले लिबास में लिपटे इन शिवभक्तों के गीतों की भाषा अनजान है, शब्द अजनबी हैं मगर गीत के बोलों में बार-बार 'विश्वनाथा' और 'गंगा' का जिक्र यह बताने को काफी है कि ये श्रद्धालु देवाधिदेव महादेव की महिमा के गीत गा रहे हैं। गोदौलिया चौराहा (शाम 4.40 बजे)
गोदौलिया तांगा स्टैंड से जुड़ी गणेश महाल वाली गली से बाहर आ रहा है अभी-अभी 'क्षौर कर्म' से निवृत्त सिर घुटी महिलाओं का कारवां। पूछने पर पता चलता है ये सभी आंध्र और नवसृजित तेलंगाना के तीर्थयात्रियों का काफिला है जो श्रीराम तारक आंध्र आश्रम से चलकर दशाश्वमेध घाट की आरती की झांकी लेने जा रहा है। अनजाने में ही सही गौदोलिया-दशाश्वमेध मार्ग के नैत्यिक उत्सव 'राष्ट्र संगम' के इंद्रधनुषी मेले को अपने हिस्से के चटख रंगों से सजा रहा है। गोदौलिया चौराहा (शाम पांच बजे )
चौक-बांसफाटक से चलकर गोदौलिया से जुड़ने वाली उत्तरी सड़क पर यह कलरव है परम वैष्णव गुजराती भक्तों का। गोपाल मंदिर से चलकर यहां तक पहुंची यह टोली भी भगवान श्रीहरि का संदेश लेकर बाबा दरबार तक जाएगी और गहरी श्रद्धा के धागों से 'हर' को 'हरि' से तथा 'हरि' को 'हर' से गूंथकर राष्ट्रीय एकता की मजबूती में एक और पक्की गाठ लगाएगी।
गोदौलिया चौराहा (5.15 बजे )
गुरुबाग गुरुद्वारा से चलकर गोदौलिया तक पहुंची खड्गधारी निहंग सिखों की यह टुकड़ी गंगा आरती में शामिल होने जा रही है। टुकड़ी का नेतृत्व कर रहे भाई हरि महेंद्र सिंह गदगद हैं काशी का वैभव देखकर। मुख्तसर सी मुलाकात में हमें लाख टके की सीख दे जाते हैं, कहते हैं हम अलग कहां हैं। 'शुभ करमन से कबहूं ना टरो' का वरदान लेने के लिए हम भी आखिर 'शिवा' को ही तो पुकारते हैं, परम पवित्र गुरुवाणी हर वक्त ही उचारते हैं। डेढ़सी पुल (शाम छह बजे )
चौराहे से लगभग 250 कदम दूर डेढ़सी पुल पर संयोग से ये सारी तस्वीरें आपस में घुलमिल जाती हैं, भर नजर देखने पर लघु भारत के नजारे की अप्रतिम झांकी दिखाती है। इनमें नुक्कड़ के ठेले पर गोलगप्पे निगलता आसनसोल का घोष परिवार, गुड्डन की दुकान की लेमन टी की चटखारे लेते तेल्लीचेरी (केरल) के राव कुटुंब और 'मायापुरी' में पत्नी के लिए बनारसी साड़ी का गिफ्ट पैक बंधवाते निताई सुपकार (कटक-ओडिसा) के भी अपने-अपने रंग हैं। आपको भी मानना पड़ेगा कि वास्तव में यही असली 'पंजाब, सिंध, गुजरात, मराठा, द्राविड़, उत्कल बंग है, जिसकी कसी हुई बुनावट की कारीगरी से आज सारी दुनिया दंग है।