संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में हुआ शास्त्रार्थ, शास्त्रों के गूढ़ रहस्यों पर गंभीर मंथन
संस्कृत के पुर्नजीवन के लिए शास्त्रार्थ सशक्त माध्यम है। शास्त्रार्थ मानव व शास्त्र को जोड़ते हुए मोक्ष के मार्ग को प्रशस्त करता है। शास्त्र को संरक्षित करने का भी सशक्त माध्यम शास्त्रार्थ है।
वाराणसी, जेएनएन। संस्कृत के पुर्नजीवन के लिए शास्त्रार्थ सशक्त माध्यम है। शास्त्रार्थ मानव व शास्त्र को जोड़ते हुए मोक्ष के मार्ग को प्रशस्त करता है। शास्त्र को संरक्षित करने का भी सशक्त माध्यम शास्त्रार्थ है। वहीं काशी में प्राचीन काल से वेद, उपनिषद, व्याकरण, न्याय, वेदांत, मीमांसा व साहित्य में शास्त्रार्थ की विशिष्ट परंपरा रही है। गुरुकुलों में यह परंपरा अब भी कायम है।
संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में नौ साल बाद शनिवार को आयोजित तीन दिवसीय अखिल भारतीय शास्त्रार्थ सम्मेलन के उद्घाटन सत्र का यह निष्कर्ष रहा। मुख्य अतिथि आंध्रप्रदेश स्थित राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ (तिरुपति) के कुलपति प्रो. मुरलीधर शर्मा ने कहा कि शास्त्रार्थ के माध्यम से शास्त्रों के गूढ़ रहस्यों को समझना आसान है। छात्रों को शास्त्रार्थ में जरूर प्रतिभाग करना चाहिए। विद्वानों के बीच बैठने मात्र से व्यक्ति विद्वान हो जाता है। विशिष्ट अतिथि महामहोपध्याय प्रो. रामयत्न शुक्ल ने कहा कि युवा विद्वानों के बीच शास्त्रार्थ की यह परंपरा शास्त्र को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाएगा। अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. राजाराम शुक्ल ने कहा कि भारत में शास्त्रार्थ परंपरा अद्वितीय व अलौकिक है। विद्वानों के मार्गदर्शन में यह परंपरा सहायक है। कहा कि अब परिसर स्थित वाग्देवी मंदिर में हर माह शास्त्रार्थ आयोजित किया जाएगा। विशिष्ट अतिथि महामहोपाध्याय प्रो. वशिष्ठ त्रिपाठी सहित आदि लोगों ने भी विचार व्यक्त किया।
50 विद्वान होंगे शामिल : तीन दिवसीय शास्त्रार्थ में यूपी के अलावा केरल, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, पुडुचेरी, बिहार के करीब 50 विद्वान शामिल होंगे। पहले दिन न्याय शास्त्र पर शास्त्रार्थ हुआ।