शारदीय नवरात्र : बंगीय समाज के पूजा पंडालों में हुआ मां का बोधन, कल होगा आमंत्रण और अधिवास
बंगीय समाज की परंपरा के मुताबिक शारदीय नवरात्र के पंचमी तिथि को सूर्यास्त के बाद मां का बोधन ( जागरण ) किया गया। इसके साथ ही नवरात्रोत्सव की रंगत छाने लगी है। अब षष्ठी तिथि को मां का आमंत्रण और अधिवास किया जाएगा।
वाराणसी, जेएनएन। बंगीय समाज की परंपरा के मुताबिक शारदीय नवरात्र के पंचमी तिथि को सूर्यास्त के बाद मां का बोधन ( जागरण ) किया गया। इसके साथ ही नवरात्रोत्सव की रंगत छाने लगी है। अब षष्ठी तिथि को मां का आमंत्रण और अधिवास किया जाएगा।
सप्तमी तिथि को नौ पत्रिका पूजन और प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी। इसमें नौ तरीके के पौधों को गंगाजल से स्नान कराकर पौधों को बहू के रूप में स्थापित किया जाएगा। इन नौ पौधों में केला, हल्दी, बेल, जौ, धान, सूरन, अशोक शामिल होंगे। वहीं अष्टमी तिथि को संधि पूजन की परंपरा है जो अष्टमी तिथि को 11.03 से 11.51 बजे अर्थात 48 मिनट तक चलेगा। इस 48 मिनट में अष्टमी तिथि के आखिरी के 24 मिनट और नवमी तिथि के शुरुआत के 24 मिनट शामिल रहते हैं।
इस पूजा में मां चामुंडा देवी का पूजन किया जाता है। नवमी तिथि को हवन-पूजन के बाद कुआंरी कन्याओं के पूजन और श्रृंगार का विधान है। विजयादशमी के दिन अपराजिता पूजन किया जाएगा। उसके बाद देवी प्रतिमा का विसर्जन करने के बाद नीलकंठ चिडिय़ा को उड़ाया जाएगा। मान्यता है कि मां विदाई के बाद कैलाश पर्वत के लिए चली जाती हैं। बंगीय समाज के लोग जब चिडिय़ा उड़ा देते है और जब पक्षी आंखों से अदृश्य हो जाता है तब यह मान लिया जाता है कि मां कैलाश पर्वत में पहुंच गईं हैं। उसके एक दिन बाद महिलाएं सिंदुर खेला खेलती है। मान्यता है कि मां को चढ़ाया हुआ सिंदुर महिलाएं एक-दूसरे को लगाकर अक्षत रहने का आशीर्वाद देती हैं। काशी दुर्गोत्सव समिति के उपाध्यक्ष दीपककांति चक्रवर्ती ने बताया कि हमारे पूजा का यह डायमंड जुबली वर्ष है। लेकिन कोरोना के कारण इस बार हम इसे स्थगित कर रहे हैं। इसके साथ ही होने वाले सभी सांस्कृतिक कार्यक्रम भी रद कर दिए गए हैं।