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रामलला के सिर से ‘मजबूरी का तिरपाल’ हटाना शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती की प्राथमिकता : स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद

रामभक्तों की आस्था के केन्द्र श्रीरामजन्मभूमि अयोध्या में विराजमान रामलला को भव्य-दिव्य-विशाल मन्दिर में स्थापित करना सबका मनोरथ है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Mon, 27 Jan 2020 01:43 PM (IST)Updated: Mon, 27 Jan 2020 09:14 PM (IST)
रामलला के सिर से ‘मजबूरी का तिरपाल’ हटाना शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती की प्राथमिकता : स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद
रामलला के सिर से ‘मजबूरी का तिरपाल’ हटाना शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती की प्राथमिकता : स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद

वाराणसी, जेएनएन। रामभक्तों की आस्था के केन्द्र श्रीरामजन्मभूमि अयोध्या में विराजमान रामलला को भव्य-दिव्य-विशाल मन्दिर में स्थापित करना सबका मनोरथ है। उससे भी पहले ‘मजबूरी के तिरपाल’ को हटा कर रामलला की महिमा के अनुरूप मन्दिर में विराजमान करना ज्योतिष एवं द्वारकाशारदापीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती महाराज सहित शीर्ष धर्माचार्यों की प्राथमिकता में है । कोटि-कोटि रामभक्तों की इसी भावना के अनुरूप उन्होंने एक अस्थायी मन्दिर जिसे शास्त्रों में बालमन्दिर कहा जाता है का निर्माण आरम्भ कर दिया है ।

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यह जानकारी न्यायालय में प्रमुख पक्षकार रही संस्था श्रीरामजन्म भूमि पुनरुद्धार समिति के उपाध्यक्ष एवं अयोध्या श्रीरामजन्मभूमि रामालय न्यास के सचिव स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती ने काशी के केदारघाट स्थित श्रीविद्यामठ में आयोजित प्रेसवार्ता में दी ।कहा मुख्य मन्दिर बनने में लगेगा लम्बा समय, तब तक क्या रामलला तिरपाल में ही रहेंगे ? रामलला के भव्य दिव्य मन्दिर के लिये किसी उचित ट्रस्ट को भूमि सौंपने, ले आउट तैयार करने और फिर निर्माण आरम्भ करने में तो समय लगेगा ही पर निर्माण आरम्भ भी हो जाये तो उसे पूरा होने में पांच से दस वर्ष लगने की संभावना विशेषज्ञ बता रहे हैं । ऐसे में यह बड़ा प्रश्न है कि क्या रामलला तब तक तिरपाल में ही रहेंगे? ढांचा गिरने के बाद से उच्चतम न्यायालय के निर्णय के आने के बाद तक तो न्यायालय के यथास्थिति के आदेश के कारण तिरपाल को हटाना संभव नहीं था । उसे बनाये रखना हमारी ‘मजबूरी’ थी पर अब तो रामलला की विजय हुई है । कोई यथास्थिति का आदेश भी नहीं है । ऐसे में भी रामलला तिरपाल में रहें यह हृदय को कचोटने वाली बात है । इसलिये भी मजबूरी के तिरपाल को जितनी जल्दी हटा दिया जाये उतना ही अच्छा है ।

न्यायालय ने केंद्र सरकार को नया ट्रस्ट बनाने को नहीं कहा

स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द ने आगे कहा कि पूज्य शंकराचार्य जी का मानना है कि उच्चतम न्यायालय ने केन्द्र सरकार को नियमावली बनाकर उचित ट्रस्ट को जमीन सौंपने के लिए तीन माह का समय दिया है । न कि नया ट्रस्ट बनाने को। न्यायालय ने स्पष्ट कहा है कि 1993 के अधिग्रहण की शर्तों को पूरा करने वाले ट्रस्ट को यह भूमि दी जा सकेगी। इसी सन्दर्भ में चारों शंकराचार्यों, पांचों वैष्णवाचार्यों और तेरहों अखाड़ों के रामालय न्यास ने केन्द्र सरकार के समक्ष मन्दिर निर्माण की अपनी प्रतिबद्धता रख दी है । केन्द्र सरकार रामालय न्यास को जब जमीन सौंपेगी तब निर्माण आरम्भ हो सकेगा । यदि इसमें कोई खामी हुई तो न्यास के लोग न्यायालय जा सकते हैं, उसमें भी विलम्ब लगेगा। अतः ट्रस्ट के मन्दिर निर्माण शुरु करने की प्रतीक्षा में विलम्ब नहीं होना चाहिए।

शंकराचार्य  ने किया बाल राममन्दिर का निर्माण आरंभ

अयोध्या की श्रीरामजन्मभूमि में भव्य-दिव्य-शास्त्रोक्त मन्दिर निर्माण पूरे विश्व के रामभक्तों की कामना है । वर्षों से चल रहे संघर्ष का विगत नौ नवम्बर को उच्चतम न्यायालय से आये निर्णय ने अन्त कर दिया है । सब चाहते हैं कि अब शीघ्र मन्दिर निर्माण कार्य आरम्भ होना चाहिए । लोकभावना को ध्यान में रखते हुए  ज्योतिष्पीठाधीश्वर एवं द्वारका शारदापीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती महाराज ने विगत मकर संक्रांति को सूर्य देवता के उत्तरायण होते ही मन्दिर निर्माण कार्य आरम्भ कर दिया है ।

अयोध्या में नए मंदिर का निर्माण नहीं, अपितु पुराने का ही होगा जीर्णोद्धार

स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द ने बताया कि शास्त्रों के अनुसार नया मन्दिर वहां बनाया जाता है जहां पहले से कोई मन्दिर न हो । जहां पहले से ही कोई मन्दिर हो और वह जीर्ण-शीर्ण या भग्न हो गया हो तो उसे पुनर्निर्मित किया जाता है जिसे जीर्णोद्धार कहा जाता है । इस तरह अयोध्या में निर्मित होने वाला मन्दिर नवनिर्माण नहीं अपितु जीर्णोद्धार की श्रेणी में आयेगा ।

जीर्णोद्धार से पहले होता है बालमन्दिर का निर्माण

शास्त्रों के अनुसार किसी मन्दिर का जीर्णोद्धार करना आरम्भ करने के पूर्व एक छोटे अस्थायी मन्दिर ;बाल मन्दिरद्ध का निर्माण किया जाता है । मन्दिर निर्मित होकर पुनः प्रतिष्ठा कर दिये जाने तक देवविग्रहों को उसी बाल मन्दिर में विराजमान किया जाता है जहां उनकी यथाविधि नियमित पूजा-अर्चना होती रहती है ।

निर्माणाधीन रामलला का बालमन्दिर होगा स्वर्णजटित

अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती ने बताया कि शंकराचार्य जी ने इसी अस्थायी बालमन्दिर के निर्माण का आरंभ कर दिया है। उन्होंने बताया कि यह बालमन्दिर चन्दन की लकड़ी से निर्मित किया जायेगा । जिसका आकार 12×12×21 फुट का होगा जिसके मध्य रामलला विराजमान का 6×6×9 फुट का सिंहासन होगा जो कि स्वर्णमण्डित होगा । जिसके लिये देश के हर गांव से सोना एकत्र किया जायेगा ।

पूरे देश में ग्राम-ग्राम, राम-राम मुहिम चलायेंगे सन्त

कई धर्मसंसदों, सम्मेलनों और पारित संकल्पों-प्रस्तावों का साक्षी रहा प्रयाग का माघमेला इस बार निर्णायक मोड पर दिखाई दिया। सन्तों ने श्रीशंकराचार्य शिविर में विशाल सन्त-भक्त संसद का आयोजन किया और शंकराचार्य जी द्वारा प्रस्तुत स्वर्णजटित बाल राम मन्दिर के निर्माण के विचार का अभिनन्दन किया और राममन्दिर के लिये पूरे देश में स्वर्णसंग्रह के लिये मुहिम चलाने का एलान किया। सन्तों ने अपनी इस मुहिम को ग्राम-ग्राम, राम-राम मुहिम नाम दिया है। इसके तहत देश के प्रत्येक गांव में एक दायित्वधारी सन्त जायेगा। सब रामभक्तों को राम-राम कहेगा, कहलवायेगा और प्रत्येक ग्राम से एक ग्राम सोना संगृहीत कर प्रदेश के राममन्दिररथ के सारथी को सौंपेगा। सारथी रथ के साथ  ’एक ग्राम (गांव) से एक ग्राम (वजन) । सोना चला राम के काम  का उद्घोष करते हुए आगे बढेगा ।

शीर्ष धर्माचार्य हमारे सुप्रीम कोर्ट

स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द ने बताया कि प्रयाग में मौनी अमावास्या के दो दिन पूर्व आयोजित सन्त-भक्त संसद् में सन्तों और भक्तों ने यह निर्णय लिया है कि आने वाले दिनों में सनातनधर्मी हिन्दू समाज के प्रश्नों के समाधान खोजने के लिये शीर्ष धर्माचार्यों का ही निर्देश स्वीकार किया जायेगा । ठीक उसी तरह जैसे फैजाबाद जिला न्यायालय के फैसले को किसी ने नहीं माना, हाईकोर्ट में अपील की। हाईकोर्ट के फैसले को भी नहीं माना सुप्रीम कोर्ट गये। सुप्रीम कोर्ट फैसले को अमल में लाया जा रहा है । उसी तरह सनातनधर्मियों का सुप्रीम कोर्ट चार शंकराचार्य, पांच वैष्णवाचार्य और तेरह अखाडे हैं । उनका निर्णय ही सनातनी समाज स्वीकार करेगा ।


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