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एक बनारस भी धड़कता था शहीद-ए-आजम के सीने में

-शहीद दिवस पर विशेष- शाश्वत मिश्रा, वाराणसी : भगत सिंह के फौलादी इरादों से ब्रिटिश हुकूमत

By JagranEdited By: Published: Thu, 22 Mar 2018 12:20 PM (IST)Updated: Thu, 22 Mar 2018 12:20 PM (IST)
एक बनारस भी धड़कता था शहीद-ए-आजम के सीने में
एक बनारस भी धड़कता था शहीद-ए-आजम के सीने में

-शहीद दिवस पर विशेष-

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शाश्वत मिश्रा, वाराणसी : भगत सिंह के फौलादी इरादों से ब्रिटिश हुकूमत भी कापती थी। लेकिन उस शख्स के सीने में एक दिल भी था जो कभी-कभी दुविधा से घिर जाता था और इसे इत्तेफाक ही कहेंगे कि ज्यादातर मौकों पर बनारस ने किसी न किसी रूप में उनकी मदद की। यही कारण है कि उन्होंने अपनी लिखी विभिन्न चिट्ठियों में बनारस की काफी तारीफ की है।

हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन : पहली बार बनारस ने भगत की मदद शचीन्द्र नाथ सान्याल के रूप में की थी। काशी में पैदा हुए सान्याल अपने समय के सम्मानित क्रातिकारियों में थे। उन्होंने हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन की स्थापना की थी। महात्मा गाधी द्वारा 1922 में असहयोग आदोलन वापस लेने के बाद देश के युवाओं को इस संगठन ने राह दिखाने का काम किया था। 1924 में भगत सिंह ने भी इसकी सदस्यता ग्रहण की थी। इसी के माध्यम से उनकी मुलाकात चंद्रशेखर आजाद, राजगुरु, सुखदेव, राम प्रसाद बिस्मिल आदि क्रातिकारियों से हुई थी। बाद में इसी संगठन का नाम बदलकर हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन कर दिया गया।

शादी की दुविधा में फंसे तो शचींद्र ने सुझाई राह : भगत सिंह के जीवन में एक मोड़ तब आया था जब उनका परिवार शादी के लिए उनके पीछे पड़ गया था। परिस्थिति कुछ ऐसी बनी कि उनको कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था। ऐसे में उनको ख्याल आया बनारस निवासी अपने प्रेरणास्त्रोत शचीन्द्र नाथ सान्याल का। उन्होंने तत्काल उनको पत्र लिखा और मार्ग प्रशस्त करने की गुजारिश की। जवाब में शचीन्द्र नाथ सान्याल ने लिखा, 'विवाह करना या न करना तुम्हारी इच्छा पर निर्भर करता है। लेकिन इतना जरुर कहूंगा कि शादी के बाद देश के लिए बड़ा काम करना तुम्हारे लिए संभव नहीं होगा। पारिवारिक बंधन धीरे-धीरे तुम्हें इतना जकड़ लेगा कि देशभक्ति से बहुत दूर हो जाओगे। यदि तुमने खुद को देश के लिए समर्पित कर दिया है तो विवाह के बंधन को अस्वीकार कर दो। देश को तुम्हारी आवश्यकता है। ऐसे में विवाह करना देशद्रोह के समान है। संभव है कि इस बार मना करने के बाद परिवार वाले आगे भी तुम पर दबाव डालते रहेंगे। इसलिए तुम घर-परिवार छोड़ दो। यदि तुम्हें यह स्वीकार है तो मैं तुम्हारा मार्गदर्शन कर सकता हूं।' शचीन्द्रनाथ के इस पत्र ने भगत सिंह की दुविधा दूर कर दी।

महामना ने की थी फासी रुकवाने की कोशिश : महामना मदन मोहन मालवीय के मन में भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव के लिये अपार प्रेम और श्रद्धा थी। उनको जब इन तीनों के फासी की सजा का पता चला तो वो भी पूरे देश की तरह बेचैन हो गए। इसके बाद 14 फरवरी 1931 को वो खुद लॉर्ड इरविन के पास एक दया याचिका लेकर गये। इसमें उन तीनों की फासी पर रोक लगाने और उनकी सजा को कम करने का आग्रह किया गया था।

बनारस में पहली बार मिले थे राजगुरु से : कुछ दस्तावेज बताते हैं कि भगत सिंह और राजगुरु की पहली मुलाकात भी संभवत: बनारस में ही हुई थी। यह पहली मुलाकात इतनी मजबूत थी कि मौत भी इसे तोड़ न सकी। संभवत : 1924 में ही राजगुरु संस्कृत पढ़ने के लिए बनारस आए। वो बहुत कुशाग्र थे। कम ही समय में उन्हें लघु सिद्धात कौमुदी पूरी याद हो गई। यहीं वो क्रातिकारियों के संपर्क में आए।

बीएचयू के लिम्डी हास्टल में भी रुके : हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन ने एक बार जयदेव कपूर को संगठन को मजबूत करने के लिए बनारस भेजा। यहा उन्हें नए क्रातिकारियों को भर्ती करना था। इसमें लंबा समय लगा। इस दौरान उन्होंने बीएससी का कोर्स पूरा किया और आगे की पढ़ाई के लिए इंजीनियरिंग कॉलेज में एडमिशन लिया। इसी समय भगत सिंह भी बनारस पहुंचे और जय देव के साथ कुछ दिनों के लिए लिम्डी हास्टम में ठहरे।

बटुकेश्वर दत्त की बहन को बनारस ठहरने को कहा : 17 जुलाई 1930 को सेंट्रल जेल से लिखे अपने एक पत्र में भगत सिंह ने बटुकेश्वर दत्त की बहन से बनारस छोड़कर लाहौर जाने से मना किया। तत्कालीन परिस्थित के मद्देनजर उनको बनारस ज्यादा सुरक्षित लगा। यही कारण है कि उन्होंने ऐसा कहा।


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