आत्म ज्ञान, ज्ञान की कुंजी है और ऐसा सीखने वाला दिमाग ही सच्चा धार्मिक दिमाग होता है : प्रो. पी कृष्णा
आत्म ज्ञान ज्ञान की कुंजी है और ऐसा सीखने वाला दिमाग ही सच्चा धार्मिक दिमाग होता है। इसलिए बाद में थियोसॉफी का सार ज्ञान-धर्म का अर्थ है।
वाराणसी, जेएनएन। आत्म ज्ञान वह सीख है जो हमें बताता है कि सच क्या है, गलत क्या है। इससे चेतना में भ्रम समाप्त हो जाते हैं। यह ज्ञान, कौशल और अनुभव के संचय से अलग है। यह बातें थियोसाफिकल सोसाइटी के वार्षिक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के में 'फ्रीडम फ्राम द सेल्फ विषयक व्याख्यान के तहत कृष्णमूर्ति फाउंडेशन इंडिया के प्रोफेसर पी कृष्णा ने कही।
कहा आत्म ज्ञान, ज्ञान की कुंजी है और ऐसा सीखने वाला दिमाग ही सच्चा धार्मिक दिमाग होता है। इसलिए बाद में थियोसॉफी का सार ज्ञान-धर्म का अर्थ है। थियोसॉफिकल सोसाइटी का आदर्श वाक्य है 'सत्य से बढ़कर कोई धर्म नहीं है। थियोसोफिकल सोसाइटी का वार्षिक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन वर्ष 1990 के बाद पहली बार बनारस में आयोजित हो रहा है। छह दिवसीय आयोजन की शुरुआत 31 दिसंबर को हुई थी। सोसाइटी के 144वें सम्मेलन में 25 देशों के प्रतिनिधि शामिल हुए हैं। इससे पूर्व दूसरे दिन कार्यक्रम की शुरूआत सर्वधर्म प्रार्थना सभा एवं ध्यान से हुई। इसके बाद सोसाइटी के न्यूजीलैंड सेक्शन अध्यक्ष जॉन वोरस्टर्मन्स ने 'जागृति द हार्ट-माइंड विषय पर प्रकाश डाला। कहा यह देखना ज्यादा महत्वपूर्ण है कि हमारे दिमाग में क्या चल रहा है। ध्यान वह चीज नहीं है जो हम हर मिनट में करते हैं। यह एक दिन में 24 घंटे का अभ्यास है। वहीं भारतीय सेक्शन के अध्यक्ष प्रदीप एच गोहिल ने भारतीय धारा की स्थिति स्पष्ट की। इस दौरान विविध सांस्कृतिक कार्यक्रम की भी प्रस्तुति हुई। इस अवसर पर एक्जीक्यूटिव कमेटी सदस्य यूएस पांडेय, उमा भट्टाचार्या, कन्वेंशन आफिसर शिखर अग्निहोत्री, विनीता कालरा आदि रहे।