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ठुमक चले रामचंद्र और बजी पैजनिया, लीला के दूसरे दिन जन्मे प्रभु श्रीराम, बजी बधइया

रामनगर की रामलीला के दूसरे दिन राजा दशरथ के घर श्रीराम सहित चारों भाइयों के जन्म लेने का समाचार जहां अयोध्या में खुशियों लेकर आया वहीं मंगल गीतों से नगरी गूंज उठी।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Mon, 24 Sep 2018 08:38 PM (IST)Updated: Mon, 24 Sep 2018 08:48 PM (IST)
ठुमक चले रामचंद्र और बजी पैजनिया, लीला के दूसरे दिन जन्मे प्रभु श्रीराम, बजी बधइया
ठुमक चले रामचंद्र और बजी पैजनिया, लीला के दूसरे दिन जन्मे प्रभु श्रीराम, बजी बधइया

वाराणसी (रामनगर) । लीला प्रेमियों के लिए सोमवार को रामनगर में विश्व विख्यात मुक्ताकाशीय मंच पर रामजन्म की खुशियां बिखरीं तो घर घर बधइया बजने का भी दौर चला। रामचरित की चौपाइयों से प्रभु गुन की धुन गूंजी तो जय श्रीराम के नारों से अवधपुरी निहाल नजर आई। अवसर था सोमवार को रामलीला के दूसरे दिन श्रीराम के जन्मोत्सव का। रामनगर की रामलीला के दूसरे दिन राजा दशरथ के घर श्रीराम सहित चारों भाइयों के जन्म लेने का समाचार जहां अयोध्या में चहुओर खुशियों लेकर आया वहीं मंगल गीतों से साकेत नगरी भी गूंज उठी। किला रोड स्थित रामलीला मैदान स्थित अयोध्या के मैदान में श्रीराम जन्म, विराट स्वरूप का दर्शन व मृगया प्रसंग का मंचन किया गया। 

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राजा दशरथ की चिंता का निवारण

दरबार में बैठे राजा दशरथ दर्पण में अपने चेहरे पर बुढापे के लक्षण देख चिन्तित हो रहे थे। राजा को चिन्तित देख गुरु वशिष्ठ ने श्रृंगी ऋषि से पुत्रेष्टि यज्ञ कराने की सलाह देकर अग्निदेव को प्रसन्न करने को कहा। यज्ञ से प्रसन्न होकर अग्नि देव ने राजा दशरथ को फल प्रदान किये और उसे तीन रानियों मे समान भाग खिलाने को कहा। रामावतार का समय जान देव गणों ने पुष्प वर्षा की, रामायणियों ने भी पारंपरिक स्वर में -'भये प्रकट कृपाला दीनदयाला कौशल्या हितकारीÓ का गायन किया। प्रभु श्रीराम के चतुर्भुज भगवान विष्णु के मनोहारी झांकी के दर्शन से लीला प्रेमी भाव विभोर हो उठे।

 

कौशल्या से बोले श्री हरि

जयकार और स्तुति करती माता कौशल्या को आश्चर्यचकित देख भगवान विष्णु ने कहा कि पूर्व जन्म में आपने हमें पुत्र रूप मे वरदान मांगा था। ब्राह्मण, गाय, देवता, साधु, सन्तोषजनक के रक्षार्थ पृथ्वी पर हमने मनुष्य का रूप धरा है। बाल लीला करने की माता कौशल्या की याचना पर श्रीहरि शिशु रूप धर रूदन करने लगते हैं। दूसरी ओर बच्चों के रोने की आवाज सुन दासियों ने पुत्र जन्म का समाचार राजा दशरथ को सुनाया। सम्पूर्ण अयोध्यानगरी में मंगल दीप जल उठे। गुरू वशिष्ठ द्वारा चारों पुत्रों के नामकरण संस्कार के बाद महारानी कौशल्या, कैकेयी और सुमित्रा अपने पुत्रों श्रीराम, भरत, शत्रुघ्न, लक्ष्मण का नाना प्रकार से श्रृंगार कर उन्हें पालने मे झुलाती हैं। चूणाकर्म संस्कार और यज्ञोपवीत के बाद चारों भाई गुरू वशिष्ठ से विद्या प्राप्त कर अयोध्या वापस आते हैं। हाथ में धनुष-बाण लिये रूप, शील व गुणों से चारों भाई अयोध्या वासियों के प्रिय बन जाते हैं। भाईयों व मित्रों के साथ श्रीराम शिकार खेलने वन को जाते हैं, राज दरबार में वापस लौकर पिता व दरबारियो को शिकार किये मृग को दिखाते हैं। श्रीराम की बातें सुन दरबार मे हर्ष छा जाता है। इसी के साथ यहीं पर आरती कर लीला को अगले दिन के लिए विश्राम दे दिया जाता है।


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