स्कूल बैंक है न, लोन पर लेंगे पाठ्य सामग्री, एक हफ्ते में दो व 30 दिन में सात बार ले सकते हैं ऋण
इस बैंक का मुख्य उद्देश्य उन गरीब बच्चों को पाठ्य सामग्री लोन पर मुहैया कराना है जिनके पास नहीं है। पाठ्य सामग्री को हेडमास्टर ने खुद अपने वेतन से खरीद कर स्कूल में रखे है।
सोनभद्र [अब्दुल्लाह]। तू रख हौसला वो मंजर भी आएगा, प्यासे के पास समंदर भी आएगा। इस पंक्ति का हर शब्द उस हौसला बुलंद शिक्षक पर सटीक बैठती है जिसने जीवन में कुछ नया और अलग करने के लिए न तो उम्र को बाधक समझा और न ही धन को। बस जो ठाना उसे करना है का जज्बा लिए दुद्धी ब्लाक के प्राथमिक विद्यालय अमवार कालोनी के प्रधानाध्यापक ने गुणवत्ता परक शिक्षा के लिए अनोखे ढंग की पहल शुरू कर दी है। प्रधानाध्यापक ने अपने ही विद्यालय में एक स्कूल बैंक खोल दिया है, जिसमें गरीब बच्चे पाठ्य सामग्री को ब्याज मुक्त लोन पर ले सकते हैं।
प्राथमिक विद्यालय अमवार कालोनी के हेडमास्टर नीरज चतुर्वेदी ने एक नवंबर को स्कूल बैंक का उद्घाटन किया है। बैंक में एक छात्र को प्रधान प्रबंधक तो दूसरे को कैशियर बनाया गया है। इस बैंक का मुख्य उद्देश्य उन गरीब बच्चों को पाठ्य सामग्री लोन पर मुहैया कराना है, जिनके पास नहीं है। पाठ्य सामग्री को हेडमास्टर ने खुद अपने वेतन से खरीद कर स्कूल में रखे है। स्कूल बैेंक ऐसे बच्चों को स्टेशनरी उपलब्ध करा रहा है जिनके पास कापी, पेन, पेंसिल व बाक्स नहीं है। बैंक के संचालन के लिए प्रधान प्रबंधक के अलावा एक कैशियर के साथ प्रत्येक कक्षा में एक-एक प्रबंधक की नियुक्ति की गई है। जिन बच्चों को लोन पर पाठ्य सामग्री की जरूरत होती है, उस कक्षा के प्रबंधक उस छात्र का नाम प्रधान प्रबंधक को भेजते हैं। इसके बाद उस गरीब छात्र को पढऩे के लिए सुबह ही स्टेशनरी उपलब्ध करा दी जाती है। इस बैंक के संचालन में कुछ शर्तों का भी पालन करना है। लोन पर लिए गए पाठ्य सामग्री को स्कूल बंद होने से पहले बैंक में जमा करना होता है। इसके साथ ही एक छात्र को सप्ताह में दो और एक माह में सात बार ही पाठ्य सामग्री लोन पर दी जाती है।
खरीद सकते हैं पाठ्य सामग्री
स्कूल बैंक से कोई छात्र पाठ्य सामग्री खरीदना चाहता है तो वह पूरे पैसे देकर उसे खरीद सकता है। इससे मिलने वाली धनराशि को स्कूल बैंक में ही गुल्लक में जमा किया जाता है, जो आगे पाठ्य सामग्री खरीदने में काम आती है। इसकी वजह से छात्रों के अभिभावकों पर खरीदारी करने का भार नहीं होता और न ही बाजार जाने की जरूरत होती है।
गतिरोध दूर करने को बनाया बैंक
अमूमन देखा जाता है कि परिषदीय विद्यालयों में आने वाले तमाम छात्रों के पास कभी पेंसिल, तो कभी कापी होती ही नहीं। इसकी वजह से शिक्षण कार्य में गतिरोध आ जाता है। इसी गतिरोध को दूर करने के लिए स्कूल बैंक की स्थापना कर बच्चों को मुफ्त ब्याज पर पाठ्य सामग्री लोन पर मुहैया कराई जाती है।
-नीरज चतुर्वेदी, प्रधानाध्यापक।