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संस्‍कृति संसद : देश-दुनिया के विद्वानों ने सनातन धर्म-संस्कृति की दशा-दिशा पर शुरू किया मंथन

गंगा महासभा की ओर से शुक्रवार को तीन दिवसीय संस्कृति संसद शुरू होगी। अखिल भारतीय संत समिति व श्रीकाशी विद्वत परिषद के मार्गदर्शन में रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर में आयोजित विचार मंथन गोष्ठी में देश-दुनिया के विद्वान जुटे हैं।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Fri, 12 Nov 2021 11:57 AM (IST)Updated: Fri, 12 Nov 2021 01:38 PM (IST)
संस्‍कृति संसद : देश-दुनिया के विद्वानों ने सनातन धर्म-संस्कृति की दशा-दिशा पर शुरू किया मंथन
दैनिक जागरण व गंगा महासभा की ओर से शुक्रवार को तीन दिवसीय संस्कृति संसद शुरू हुई।

वाराणसी, जागरण संवाददाता। दैनिक जागरण व गंगा महासभा की ओर से शुक्रवार को तीन दिवसीय संस्कृति संसद शुरू हुई। अखिल भारतीय संत समिति व श्रीकाशी विद्वत परिषद के मार्गदर्शन में रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर में आयोजित विचार मंथन गोष्ठी में देश-दुनिया के विद्वान जुटे। भारतीयता के धरातल पर राष्ट्रवादी वैचारिकी के साथ आबद्ध यह आयोजन भारतीय संस्कृति के चिंतक व दैनिक जागरण के पूर्व प्रधान संपादक स्व. नरेन्द्र मोहन को समर्पित किया है। संस्कृति संसद का शुभारंभ सुबह दस बजे जगद्गुरु स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती, अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रवींद्र पुरी, विश्व हिंदू परिषद के संरक्षक दिनेश चंद्र समेत देश-दुनिया के संत-महंतों ने किया। पहले दिन तीन सत्रों में सनातन हिंदू धर्म के अनुत्तरित प्रश्न, भारत की प्राचीनतम अखंडित संस्कृति की वैश्विक छाप एवं वर्तमान परिदृश्य और भारतीय युवा जीवन मूल्य एवं सामाजिक सदाचार पर विचार मंथन किया गया।

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कार्यक्रम को लाइव देखें-  

गंगा महासभा और दैनिक जागरण की ओर तीन दिवसीय संस्कृति संसद का शुक्रवार को रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर में शुभारंभ हुआ। देश भर से जुटे संतों-विद्वानों ने राष्ट्र व धर्म की चिंतन धारा से जुड़े विमर्श का दीप प्रज्वलित किया। इसमें विश्व हिंदू परिषद के संरक्षक दिनेश चंद्र ने कहा कि युगानुकूल आचार संहिता अखिल भारतीय संत समाज, काशी विद्वत परिषद और गंगा महासभा तय करे। इसे हम पूरे विश्व में रहने वाले हिंदुओं तक पहचंचाएंगे ताकि अस्तित्व संकट के बोध से मुक्त हो सकें। आरएसएस के वरिष्ठ प्रचारक इंद्रेश कुमार ने कहा कि सद्कर्म कर तभी तेरी कहानी चलेगी, अन्यथा खत्म हो जाएगा सब कुछ। ऐसे में जागिए, भागिये नहीं।

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रवींद्र पुरी ने कहा कि शंकराचार्य ने जब धर्म की पुन: स्थापना की तब भी कुछ ऐसे लोग थे जिन्होंनें धर्म को स्वीकार नहीं किया उन्हें धर्माचरण में लाने के लिए अखाड़ों की स्थापना की। नागा संन्‍यासियों को शास्त्र के साथ शस्त्र का भी प्रशिक्षण दिया। आज दस अखाडे़ हैं, संत समाज का आदेश होगा तो हम कठोर भी होंगे। योगी आदित्‍यनाथ ने संत होकर अपराधियों के प्रति जो कठोरता दिखाई है वह उसी परंपरा का प्रतिनिधि करती है। समाज में अपेक्षित सुधार तभी होंगे जब ब्राह्मण और संत समाज स्वयं उसके अनुकूल आचरण करें। उन्होंने कहा कि साधु समाज में बहुत सी त्रुटियां हैं। अच्छे लोग हैं तो बुरे लोग भी हैं। आश्चर्य जताया कि देश में प्रवचन करने वाले बहुत हैं, सुनने वाले करोड़ों लोग हैं लेकिन इसका प्रभाव नहीं दिखता। वास्तव में जब साधक साधनारत होंगे तभी वाणी में तेज आएगा, प्रभावकारी होगी।

शुभारंभ करने वालों में जगद्गुरु स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती महाराज, जगद्गुरु रामानंदाचार्य राजराजेश्वराचार्य महाराज, श्रीकाशी विद्वत परिषद के अध्यक्ष प्रो. प्रो. रामयत्न शुक्ल, अध्यक्ष गंगा महासभा प्रेमस्वरूप पाठक, अखिल भारतीय संत समिति के मुख्य निदेशक महंत ज्ञानदेव सिंह, अखिल भारतीय संत समिति अध्यक्ष आचार्य अविचल दास, राज्य सभा सदस्य रुपा गांगुली, दैनिक जागरण के उत्तर प्रदेश राज्य संपादक दैनिक जागरण ने दीप प्रज्वलन किया।

श्रीकाशी विद्वत परिषद के महामंत्री प्रो. रामनारायण द्विवेदी ने स्वागत और अखिल भारतीय संत समिति व गंगा महासभा के राष्ट्रीय महामंत्री स्वामी जीतेन्द्रानंद सरस्वती ने विषय स्थापना की। वहीं धर्मार्थ मंत्री डा. नीलकंठ तिवारी ने कहा कि संतों के आशीर्वाद से आध्यात्मिक स्थलों का विकास हो रहा। काशी विश्वनाथ, अयोध्या और विंध्यवासिनी धाम ही नहीं हजार से ऊपर मंदिरों को सजाया संवारा जा रहा। वहीं आरएसएस के वरिष्‍ठ प्रचारक इंद्रेश कुमार ने कहा कि संस्कृति संसद में उद्घोष हो और ऐसी आचार संहिता आज कि लोगों में कर्तव्य बोध हो कि हम अपना खोया जन और खोयी जमीन पुन: प्राप्त कर सकें।

संस्‍कृति संसद का आयोजन सुबह 10 बजे रुद्राक्ष कन्‍वेंशन सेंटर में शुरू हुआ तो भारतीयता से लबरेज भारतीय संस्‍कृति का मंथन मंच पर नजर आया। सुबह के सत्र में -रुपा गांगुली, सांसद राज्य सभा, प्रो. रामयत्न शुक्ल, अध्यक्ष, श्रीकाशी विद्वत परिषद, दिनेश चंद्र, संरक्षक, विश्व हिंदू परिषद, प्रेमस्वरूप पाठक, अध्यक्ष गंगा महासभा, शंकराचार्य ज्योतिष्पीठाधीश्वर वासुदेवानंद सरस्वती महाराज,, जगद्गुरु रामानंदाचार्य राजराजेश्वराचार्य महाराज, महंत ज्ञानदेव सिंह, मुख्य निदेशक, अखिल भारतीय संत समिति, आचार्य अविचल दास, अध्यक्ष, अखिल भारतीय संत समिति, स्वामी जीतेन्द्रानंद सरस्वती, महामंत्री, अखिल भारतीय संत समिति, प्रो. रामनारायण द्विवेदी, श्रीकाशी विद्वत परिषद भी मौजूद रहे। संस्कृति संसद के उद्घाटन सत्र में धर्मार्थ कार्य मंत्री नीलकंठ तिवारी ने भारतीय संस्‍कृति और सरोकारों को लेकर इसके मूलें के वैश्विक स्‍वरूप को परिलक्षित किया। वहीं स्वामी जीतेन्द्रानंद सरस्वती ने संस्कृति संसद की अवधारणा को विस्‍तार दिया।

प्रथम सत्र में सनातन हिंदू धर्म के अनुत्तरित प्रश्न पर दोपहर 1.30 से तीन बजे तक मंथन किया जाना है। वहीं इस सत्र में प्रमुख वक्‍ता शंकराचार्य ज्योतिष्पीठाधीश्वर वासुदेवानंद सरस्वती महाराज, जगद्गुरु रामानंदाचार्य राजराजेश्वराचार्य महाराज, प्रो. रामयत्न शुक्ल, अध्यक्ष, श्रीकाशी विद्वत परिषद, प्रो. वाचस्पति त्रिपाठी, प्रसिद्ध धर्मशास्त्री, प्रो. रामकिशोर त्रिपाठी, प्रसिद्ध धर्मशास्त्री, प्रो. रामनारायण द्विवेदी, महामंत्री, श्रीकाशी विद्वत परिषद, संचालक-प्रस्थापकः गोविंद शर्मा, संगठन मंत्री, गंगा महासभा आदि रहेंगे।

वहीं द्वितीय सत्र 'भारत की प्राचीनता अखंडित संस्कृति की वैश्विक छाप व वर्तमान परिदृश्य' पर दोपहर तीन से चार बजे तक श्री योगानंद शास्त्री (स्कर्बीमीर रुसीन्सिकी), मार्क देजोस्की- विशिष्ट वक्ता, योगाचार्य दिव्य प्रभा आदि भारतीय संस्‍क‍ृति और इसके सरोकारों पर मंथन करेंगे। तृतीय सत्र में 'भारतीय युवा जीवन मूल्य एवं सामाजिक सदाचार' पर चार बजे से पांच बजे तक विद्वान मंथन करेंगे। वहीं समानांतर सत्र 'एक देश एक विधान, हमारा देश हमारे कानून' में अश्विनी उपाध्याय, वरिष्ठ अधिवक्ता, सर्वोच्च न्यायालय राष्‍ट्र की अवधारणा पर अपने विचार व्‍यक्‍त करेंगे। वहीं सांस्कृतिक कार्यक्रम में 'नक्कारा जुगलबंदी- मनीष देवली, जयपुर का शाम सात बजे से प्रस्‍तावित है।


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