Sanskarshala 2022 : सोशल मीडिया पर सोच-समझ कर करें शब्दों का प्रयोग, अनावश्यक बहस से होता है सकारात्मक ऊर्जा का क्षरण
Sanskarshala 2022 तकनीकी के इस युग में सोशल मीडिया का प्रचलन तेजी बढ़ा है। फेसबुक वाट्स-एप इंस्टाग्राम की पैठ घर-घर पहुंच चुकी है। वहीं इसका दुरूपयोग भी तेजी से हो रहा है। इससे हमें बचने की जरूरत है।
जागरण संवाददाता, वाराणसी : तकनीकी के इस युग में सोशल मीडिया का प्रचलन तेजी बढ़ा है। फेसबुक, वाट्स-एप, इंस्टाग्राम की पैठ घर-घर पहुंच चुकी है। वहीं इसका दुरूपयोग भी तेजी से हो रहा है। इससे हमें बचने की जरूरत है। सोशल मीडिया पर हमें सोच-समझ कर शब्दों का प्रयोग करना चाहिए ताकि किसी की भावनाओं को ठेस न पहुंचे। वहीं अनावश्यक बहस से हमारी सकारात्मक ऊर्जा का क्षरण होता है।
डिजिटल संस्कार के तहत मंगलवार को सेंट्रल हिंदू गर्ल्स स्कूल (सीएचएस-कमच्छा)में असेंबली के दौरान विद्यार्थियों को दैनिक जागरण में संस्कारशाला के अंतर्गत प्रकाशित होने वाली प्रेरक कहानी पढ़कर सुनाई गई। इस दौरान विद्यालय की अध्यापिका डा. रश्मि ने छात्राओं को कहानी के बारे में विस्तार से समझाया। इसके बाद छात्राओं से डिजिटल संस्कार संबंधी प्रश्न भी पूछा।
फेसबुक पर राखी के पोस्ट पर शुरू हो गई बहस
कहानी में बताया कि राखी को हम घर के काम हाथ बंटाएं विषयक भाषण प्रतियोगिता पर विपक्ष में स्कूल में बोलना था। उसने इस पर समाज की प्रतिक्रिया जानने के लिए विषय को फेस बुक पर पोस्ट कर दिया। फिर क्या इंटरनेट मीडिया पर इस मुद्दे पर बहस शुरू हो गया। कई लोगों ने उसे काफी बुरा-भला कहा। कुछ लोगों ने उसका मजाक भी उड़ाया। इससे वह परेशान हो गई।
सोशल मीडिया से नहीं मिली मदद
इस प्रकार को राखी को सोशल मीडिया से मदद नहीं मिल सकी। उल्टे कुछ लोगों ने उसका माखौल उड़ाया। इससे राखी की भावनाओं को ठेस भी पहुंचा और उसका मूड भी आफ हो गया है।
डिजिटल प्लेटफार्म का अर्थ यह नहीं कि हम कुछ भी पोस्ट करने के लिए स्वतंत्र है। डिजिटल पर भी एक संस्कार बेहद जरूरी है। हर व्यक्ति का नजरिया अलग-अलग होता है। ऐसे में हमें सोच-समझ कर बोलना चाहिए ताकि किसी की भावनाओं को ठेस न पहुंच सके। साथ ही अमर्यादित शब्दों से दूरी बनाने की जरूरत है।
- डा. रश्मि, अध्यापिका
- इंटरनेट प्लेटफार्म पर बड़े छोटे सभी जुड़े रहते हैं। ऐसे में हमें सभी की भावनाओं का सम्मान करते हुए कोई पोस्ट अपलोड करना चाहिए।
दिव्यांशी शुक्ल
बगैर सोचे-समझे हमें किसी भी मुद्दे पर बोलने का हम नहीं है। इंटरनेट मीडिया पर भी हमें मर्यादा का पालन करना चाहिए।
-अक्षिता मौर्या
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि इंटरनेट मीडिया पर हमें भी पोस्ट सोच-समय कर अपलोड करनी चाहिए। हमें एक दायरे में रहना होगा।
-कशिक बरनवाल
-इस कहानी के माध्यम से हमें यह शिक्षा मिलती है कि इंटरनेट मीडिया एक अभासी प्लेटफार्म है। ऐसे में इससे हमें सहयोग कम परेशानी अधिक मिल सकती है।
-शताक्षी सेठ