संगीत नाटक अकादमी सम्मान में सबसे ज्यादा काशी के आठ कलाकारों की रही गूंज, नाटक, संगीत और नृत्य कला को मिला सम्मान
उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी पुरस्कारों में काशी गूढ़ कलाकारों नाटककारों संगीतकारों और कलाविदों की गूंज रही। गुरुवार को जारी अकादमी के 17 पुरस्कारों में बनारस की कुल आठ हस्तियों के नाम हैं। सम्मान की घोषणा होने पर सभी बनारस के लोगों और समिति के सदस्यों का आभार व्यक्त किया।
वाराणसी, जेएनएन। उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी पुरस्कारों में काशी गूढ़ कलाकारों, नाटककारों, संगीतकारों और कलाविदों की गूंज रही। गुरुवार को जारी अकादमी के 17 पुरस्कारों में बनारस की कुल आठ हस्तियों के नाम हैं। शहनाई वादक फतेह अली खां, बनारस से रंगमंच के प्रख्यात अभिनेता व नाटककार डा. अष्टभुजा मिश्रा और कुवरजी अग्रवाल, तबला वादक पं. विनोद लेले, ख्यात युवा कथक नर्तक विशाल कृष्ण, निर्देशक व अभिनेता विपुल कृष्ण नागर और संगीत कला उन्नयन के क्षेत्र में काशिराज अनंत नारायण सिंह और संकट मोचन मंदिर के महंत विशंभरनाथ मिश्र को अकादमी सम्मान के लिए चयनित किया गया है।
अभिनय के समर्पित रहे डा. अष्टभुजा
नाटक के ख्यात कलाकार डा. अष्टभुजा के सम्मान से समस्त नागरी नाटक मंंडली और नाट्य जगत हर्षित हो गया। जमशेदपुर (टाटा) में 16 अक्टूबर, 1962 को जन्में डा. अष्टभुज मिश्रा का पूरा जीवन नौटंकी-अभिनय और निर्देशन के लिए समर्पित रहा। बनारस के नागरी नाटक मंडली में इन्होंने नौटंकी व नाटक की शिक्षा उॢमल कुमार, थपलियाल, जमुना वल्लभ आचार्य, रमेश गौतम व बीकेटी केडिया आदि के सानिध्य में रहकर प्राप्त की। उन्हें अखिल भारतीय खादी ग्रामोद्योग व भोजपुरी विभाग द्वारा लोक रत्न और पौढ़ी गढ़वाल द्वारा कोतवाल सिंह नेगी स्मृति सम्मान दिया जा चुका है। नौटंकी-नौटंकी कला केंद्र लखनऊ ने लोक पहरू सम्मान से नवाजा। डा. मिश्रा ने कई संस्थानों के लिए निर्देशन और अभिनय का कार्य किया है। इसके साथ ही भारतेंदु नाट्य अकादमी,लखनऊ, दूरदर्शन और आकाशवाणी जैसे संस्थानों में अहम पदों पर रह चुके हैं।
पंडित विनोद ने 21 वर्ष तक बीएचयू में सिखाया तबला वादन
प्रख्यात तबला वादक पंडित विनोद लेले ने समिति के सदस्यों और अध्यक्ष का आभार जताते हुए कहा कि इस सम्मान का मिलना एक सौभाग्य है। पंडित लेेले ने बताया कि उन्होंने बाल्यकाल से ही पं. काशीनाथ खांडेकार की शरण में उच्च कोटि के तबला वादन की शिक्षा मिली। गुरुजी प्रख्यात तबलावादक अनोखोलाल जी के शिष्य थे। बनारस से शिक्षा ग्रहण करने के बाद कम उम्र से ही बीएचयू के संगीत एवं मंच कला संकाय में 21 वर्ष तक संगीत की शिक्षा देते रहे। इसके बाद फ्रीलांस तबला वादक के रूप में वर्ष 2007 से दिल्ली में कला के क्षेत्र में अपना योगदान दे रहे हैं। वर्ष 1982 में संगीत नाटक अकादमी द्वारा आयोजित प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार से सम्मानित किया गया। बनारस तबला का एक गढ़ माना जाता था। 42 साल तक काशी में लच्छू महराज, किशन महराज और बनारस घराने के समस्त महान तबला वादकों से सीखता रहा।
सातत्य और असहमति का भी सम्मान
प्रख्यात नाटककार, निर्देशक, अभिनेता और समीक्षक के रूप में दुनियाभर में अपनी छाप छोड़ चुके कुंवरजी अग्रवाल का नाम इस सम्मान के लिए चुने जाने से बीएचयू समेत समस्त साहित्य जगत हर्ष में है। उनकी आरंभिक शिक्षा हरिश्चंद्र कालेज और बीएचयू के कला संकाय में हिंदी साहित्य से परास्नातक की शिक्षा पूर्ण हुई। वह नागरी प्रचारिणी सभा से प्रकाशित होने वाले हिंदी साहित्य का वृहद इतिहास पत्रिका के सात साल तक सह संपादक रहे। कुंवरजी ने नाटक और अभिनय से संबंधित कई महत्वपूर्ण पुस्तकों का लेखन भी किया है, जिसमें नाट्य युग, पांच लघु नाटक, काशी का परिवेश, रंगमंच माध्यम, आधुनिक नाट्य और माध्यम आदि शुमार हैं। बनारस के रंगकर्मी व्योमेश शुक्ल ने बताया कि कुंवरजी का सम्मान सातत्य और असहमति का भी सम्मान है। लंबे समय से वह मुख्य धारा के रंगकर्म से अलग होकर लगभग एकांत साधना में लीन रहे हैं। उनका कार्य अकादमिक और व्यावहारिक दोनों दृष्टि से बेहद खास है। 31 अक्टूबर, 1933 में जन्मे कुंवरजी अग्रवाल बीएचयू में आधुनिक इतिहास पर शोध पूर्ण कर दिल्ली के एनएसडी में विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में कार्यरत रहे हैं।
बनारस में युवा कथक कलाकारों को निखारना है
बनारस घराने के ख्यात युवा कथक नर्तक विशाल कृष्णा का नाम अकादमी सम्मान के लिए चयनित होने से युवाओं में काफी बेहतर संदेश गया है। कृष्णा ने कहा कि शुक्रगुजार हूं कि कमेटी ने हमे इस प्रतिष्ठित सम्मान के लिए चुना है। बनारस में कथक जैसे नृत्य परंपरा अनवरत काल तक समृद्ध रहे इसके लिए जीवनपर्यंत प्रयास चलता ही रहेगा। काशी के युवाओं में अथाह प्रतिभा है, जिसे निखारकर दुनिया के समक्ष प्रस्तुत करना है। वहीं अब एक साल से जो ग्रहण नृत्य-संगीत पर लगा था उसे अब दोबारा से दोगुनी गति से संचालित करना है। बनारस में जगह-जगह पर कार्यशालाएं भी कथक को लेकर आयोजित की जाएंगी। इस सब पर एक निर्धारित कार्यक्रम तय करने लखनऊ में बैठक आहूत की गई है। 16 मई, 1991 को जन्मे विशाल कृष्णा ने बचपन से ही कथक का पूरा प्रशिक्षण अपनी दादी सितारा देवी और पिता मोहन कृष्णा से ग्रहण किया था। उन्हें संस्कृति मंत्रालय से स्कालरशिप भी मिल चुकी है। वहीेंं पं. बिरजू महराज संगीत समृद्धि सम्मान और उस्ताद बिस्मिल्लाह खान पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।
काशी की परंपरा को रखे हैं अक्षुण्ण
संगीत कला उन्नयन के सम्मान के लिए चयनित बनारस के दसवें महाराजा अनंत नारायण सिंह का नाम काफी खास है। उनके करीबियों दुर्ग से जुड़े लोगों ने बताया कि अपने पुरखों की भांति आज भी वह बनारस की समस्त परंपराओं का पालन करते हैं। कई पीढिय़ों के बाद रामनगर दुर्ग में शहनाई बजी और इनका जन्म हुआ। ये एकमात्र राजा हैं जिनको गोद नहीं लिया गया था। पिता विभूति सिंह नारायण सिंह ने इस परंपरा को खत्म किया था। पिता की परंपराओं को अभी तक बचा कर रखा है। नाग-नथ्थैया और नाक-कट्टैया समेत कई मेलाओं में भी जाते हैं। प्राथमिक शिक्षा दुर्ग स्थित कुंवर रामयत्न संस्कृत पाठशाला से हुई। पंडित राजराजेश्वर शास्त्री द्रविड़ से शिक्षा ली है। संस्कृत और वेद की। इसके बाद वह बीएचयू के वाणिज्य संकाय से अपनी उच्च शिक्षा पूरी की। उन्हें काशी विद्यापीठ के डाक्टरेट की उपाधि से नवाजा चुका है।
लाकडाउन में आर्थिक स्थिति से टूट चुके कलाकारों की मदद करे सरकार
संकट मोचन मंदिर के महंत प्रोफेसर विशंभरनाथ मिश्र के नाम की घोषणा होते ही तुलसीघाट स्थित उनके आवास पर बधाई देने वालों का तांता लगा रहा। प्रो. मिश्र ने इसके लिए अकादमी व प्रदेश सरकार को आभार व्यक्त किया है। उन्होंने कहा है कि अकादमी द्वारा दिये गए समस्त पुरस्कारों से युवा कलाकारों को बढ़ावा मिलेगा। इससे काशी, प्रदेश और देश का महत्व बढ़ेगा। उन्होंने कहा कि लाकडाउन के कारण कलाकारों की आॢथक स्थिति अत्यंत खराब हो गयी है। सरकार कलाकरों को आॢथक मदद कर कला को प्रोत्साहित करें। संकट मोचन मंदिर के महंत परिवार की ओर से तुलसीघाट पर 46 वर्षों से ध्रुपद मेले का आयोजन महाराज विद्या मंदिर न्यास और ध्रुपद समिति करती है। न्यास के अध्यक्ष कुंवर अंनत नारायण सिंह और प्रो. मिश्र ध्रुपद समिति के संरक्षक हैं। संकट मोचन मंदिर में हनुमान जयंती के उपलक्ष्य में विगत 96 वर्षों से संगीत समारोह का आयोजन महंत परिवार की ओर से मंदिर परिसर में होता आ रहा है।
उस्ताद की विरासत का रखा मान, अब मिला सम्मान
शहनाई के शहंशाह भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खां की विरासत को संभालने वाले उनके बड़े भाई उस्ताद अलाउद्दीन खां के पौत्र उस्ताद फतेह अली खां को उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी की ओर से शहनाई वादन के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान के लिए अकादमी पुरस्कार देने की घोषणा की गई है। सात साल की उम्र में उस्ताद के सानिध्य में रहकर शहनाई वादन की शुरुआत करने वाले कोदई चौकी-नई सड़क निवासी फतेह अली खां ने शुरुआती शिक्षा उस्ताद सहित अपने दादा उस्ताद अलाउद्दीन खां, पिता प्यारे हुसैन खां व चाचा अली अब्बास खां से ही लिया था। इसके बाद परंपरानुसार उस्ताद सिकंदर खान व उस्ताद मुनव्वर खान से आगे की तालीम हासिल की। उस्ताद की विरासत को आगे बढ़ते हुए उन्होंने न केवल यूरोपियन देशों के साथ ही खाड़ी देशों में प्रस्तुति दी, बल्कि विभिन्न प्रांतों में लोगों को शहनाई की जादूगरी से वाकिफ करा चुके हैं। इससे पहले वर्ष 2010 में उन्हेंं इंदिरा गांधी सुरमणि पुरस्कार व 2013 में बनारस रत्न से सम्मानित किया जा चुका है। उस्ताद फतेह अली खां ने अकादमी पुरस्कार काशीवासियों को समपिर्त करते हुए कला प्रेमियों का आभार जताया।
बनारस में दी सबसे ज्यादा प्रस्तुति
संगीत नाटक अकादमी के पुरस्कारों में निर्देशन और अभिनय की कटेगरी में एक नाम मुंबई विपुल कृष्ण नागर का भी शामिल है। वह वर्तमान में भले ही मुंबई से संबंधित हों, मगर जन्म से लेकर उनके जीवन का आधा हिस्सा बनारस में ही बीता है। उन्होंने बताया कि उनका जन्म बनारस के एक प्रतिष्ठित वैदिक परिवार में हुआ था। उनकी नाट्य यात्रा तीन वर्ष की आयु से ही हुई थी। मुंबई में अब तक तीस, मगर वर्ष 2013 तक तक बनारस में रहते हुए उन्होंने अस्सी से ज्यादा नाटकों और 250 से ज्यादा प्रस्तुतियों में अभिनय किया है। सम्मान की घोषणा होने पर उन्होंने सभी बनारस के लोगों और समिति के सदस्यों का आभार व्यक्त किया।