पांडुलिपियों को ऑनलाइन करने की योजना अधर में
वाराणसी : संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में दुर्लभ पांडुलिपियों को ऑनलाइन करने की योजना अ
वाराणसी : संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में दुर्लभ पांडुलिपियों को ऑनलाइन करने की योजना अब भी अधर में हैं। ऑनलाइन में सर्वर व इंटरनेट रोड़ा बना हुआ है। इसके चलते बौद्धिक खजाना आज भी आमजनों से दूर है। जबकि इन पांडुलिपियों की साफ्ट कापी भी विश्वविद्यालय के पास मौजूद हैं।
परिसर स्थित सरस्वती भवन में एक लाख दुर्लभ पांडुलिपियां लाल पोटली में सहेज कर रखी गई हैं। हालांकि इंदिरा कला केंद्र ने इन पांडुलिपियों की वर्ष 2001 में ही माइक्रोफिल्म बना ली थी। केंद्र ने इसकी डीवीडी विश्वविद्यालय को भी सौंप दी है। कुल 285 डीवीडी में एक लाख 11 हजार 132 पांडुलिपियां समाई हैं। लाइब्रेरी में डीवीडी भी सुरक्षित रखी गई है। इच्छाशक्ति के अभाव में पांडुलिपियां अब तक ऑनलाइन नहीं की जा सकी हैं।
एक हजार साल पुरानी श्रीमद्भागवत भी मौजूद
सरस्वती भवन पुस्तकालय में एक हजार साल पुरानी श्रीमद्भागवत हस्तलिखित कागज पर है जो देश की प्राचीनतम पांडुलिपि है। इस क्रम में स्वर्णपत्र आच्छादित (लाक्षपत्र) पर कमवाचा (वर्मी लिपि) यहीं संग्रहित है। रास पंचाध्यायी (सचित्र) स्वर्णाक्षरयुक्त और इसकी सूक्ष्म कलात्मकता अनुपम है। यहां वेद, कर्मकांड, वेदांत, सांख्ययोग, धर्मशास्त्र, पुराणेतिहास, ज्योतिष, मीमांसा, न्याय वैशेषिक, साहित्य, व्याकरण व आयुर्वेद की दुर्लभ पांडुलिपियां रखी हैं। इसके अलावा बौद्ध, जैन, भक्ति, कला और संगीत के विषय भी संरक्षित किए गए हैं। इनमें सबसे प्राचीन, वर्तमान देवनागरी सहित बांग्ला, उड़िया, मैथिली, गुरुमुखि, शारदा, अरबी-फारसी लिपि में कागज सहित भोजपत्र, काष्ठ पत्र, शिला पत्र पर लिखी गई हैं। यही नही गोविन्द भट्ट कृत ऋग्वेद संहिता भाष्य, श्रुतिविकाश सायणाचार्य कृत ऋग्वेद संहिताभाष्य से प्राचीन है। ज्ञान व शोध के लिहाज से विद्यार्थियों के लिए भी यह संग्रह काफी उपयोगी है। दूसरी ओर संरक्षण के नाम पर बगैर अनुमति के सरस्वती भवन में किसी को भी जाने की इजाजत नहीं है। ऐसे में इस बौद्धिक संपदा का उपयोग शोधार्थियों के लिए आसान नहीं था।
''सर्वर व इंटरनेट के लिए कई बार कुलपति व यूजीसी इकाई को पत्र लिखा जा चुका है। बावजूद अब तक पुस्तकालय में इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध नहीं कराई गई। गत 23 जुलाई को भी यूजीसी इकाई के विशेषाधिकारी को एक पत्र भेजा गया है। इसमें तीन वर्ष पूर्व मंगाए गए 15 कंप्यूटर यूपीएस के साथ मांग की गई है। इसके अलावा स्कैनर, प्रिंटर की भी डिमांड की गई है।
-डा. सूर्यकांत, पुस्तकालयाध्यक्ष