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Sampurna Kranti Andolan जेपी का सपना था कि समाज ऐसा बने जिसमें लैंगिक व जाति का भेदभाव न हो

5 जून को लोकनायक जयप्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति आंदोलन की बरसी है। आज के ही दिन 1974 में पटना के गांधी मैदान में औपचारिक रूप से जेपी ने संपूर्ण क्रांति आंदोलन की घोषणा की थी।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Fri, 05 Jun 2020 12:43 PM (IST)Updated: Fri, 05 Jun 2020 01:17 PM (IST)
Sampurna Kranti Andolan जेपी का सपना था कि समाज ऐसा बने जिसमें लैंगिक व जाति का भेदभाव न हो
Sampurna Kranti Andolan जेपी का सपना था कि समाज ऐसा बने जिसमें लैंगिक व जाति का भेदभाव न हो

बलिया [लवकुश सिंह]। आज लोकनायक जयप्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति आंदोलन की बरसी है। जाहिर है एक बार फिर देश में जेपी के उस आंदोलन की चर्चा होगी। यह भी सत्य है कि जयप्रकाश नारायण मरने के बाद भी देश की राजनीति में वक्त बेवक्त हमेशा काम आते रहे हैं। आपातकाल की बरसी के आस-पास जेपी सभी के लिए अनिवार्य हो जाते हैं, उसके बाद वैकल्पिक और फिर धीरे-धीरे गौण। चुनाव आता है तो वही जेपी भ्रष्टाचार के प्रतीक बन जाते हैं, और चुनाव चला जाता है कि तो उन्हें छोड़ सब भ्रष्टाचार के मामलों में बचाव करने में जुट जाते हैं। सार्वजनिक रूप से इतिहास को अब ऐसे ही देखा जाने लगा है। पांच जून संपूर्ण क्रांति दिवस से एक दिन पूर्व जेपी से जुड़े लोगों का नब्ज टटोलने पर उनके अंदर से भी कुछ इसी तरह बातें निकलती हैं।

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आजादी से पहले या बाद भी नहीं मिला चैन

जेपी ट्रस्ट जयप्रकाशनगर के व्यवस्थापक अशोक कुमार सिंह कहते हैं देश में जेपी ही एक ऐसे योद्धा थे जिन्होंने आजादी का जंग तो लड़ा ही, जब अपना देश आजाद हो गया तब भी उस महानायक को चैन नहीं मिल सका। देश में सर्वोदय और भू-दान आंदोलन की सीमित सफलता से दुखी जयप्रकाश नारायण लोकतंत्र को दोष मुक्त बनाना चाहते थे। यही कारण था कि जब गुजरात और उसके बाद बिहार के विद्यार्थियों ने छात्र आंदोलन का नेतृत्व संभालने के लिए उनसे आग्रह किया तो उनकी आंखों में चमक आ गई और 5 जून 1974 के दिन पटना के गांधी मैदान में औपचारिक रूप से उन्होंने संपूर्ण क्रांति आंदोलन की घोषणा कर दी। तब बलिया के टीडी कालेज की सभा के बाद सिताबदियारा में सभा हुई थी। इस क्रांति का मतलब परिवर्तन और नवनिर्माण दोनों से था लेकिन एक व्यापक उद्देश्य के लिए शुरू हुआ संपूर्ण क्रांति आंदोलन बाद में दूसरी दिशा में मुड़ गया। यह भी सत्य है कि वर्ष 1974 में जेपी जो बारात लेकर सड़कों पर निकले थे, उसमें शामिल बहुत से राजनेता आज जेपी के विचारों से कोई सरोकार नहीं रखते।

बदलती रही सत्ता, चलता रहा पुराना खेल

उस आंदोलन के साक्षी जेपी के गांव के ही निवासी ताड़केश्वर सिंह कहते हैं कि जेपी का सपना एक ऐसा समाज बनाने का था जिसमें नर-नारी के बीच समानता हो और जाति का भेदभाव न हो। वह धनबल और चुनाव के बढ़ते खर्च को कम करना चाहते थे ताकि जनता का भला हो सके। 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन, चंबल के बागियों के बीच सत्य अहिंसा का अलख, भूदान, ग्राम दान, जनेऊ तोड़ो आंदोलन, उनके सक्रिय जिंदगी के महत्वपूर्ण विन्दू रहे। 1974 का संपूर्ण क्रांति आंदोलन उनके प्रयोगों की आखरी कड़ी बनी। उनके सार्थक प्रयोगों से ही 1977 में सत्ता परिवर्तन भी हुआ।

कहने मात्र की उनके मर्जी की सरकार भी बनी। इस अवधि में जेपी इंतजार करते रहे कि उनके अनुयायी संपूर्ण क्रांति के सपनों को साकार करेंगे किंतु नए शासकों ने उनकी जिंदगी में ही वही खेल शुरू कर दिया जिसके विरूद्ध 1974 में आंदोलन चला था। अब तो जेपी कुछ करने की भी स्थिति में भी नहीं थे। वे पूरी तरह टूट चुके थे। देश और समाज की बेहतरी का अरमान लिए जेपी 1979 में इस लोक से ही विदा हो गए। तब के बाद सरकारें भले ही बदलती रहीं लेकिन राजनीति में वहीं खेल चलता रहा।

जनेऊ तोड़ो आंदोलन को भी नहीं मिली मंजिल

जेपी के गांव सिताबदियारा के निवासी अजब नारायण सिंह कहते हैं कि उसी आंदोलन की कड़ी में जेपी ने जाति भेद मिटाने के लिए 1974 में ही जनेऊ तोड़ो आंदोलन शुरू किया था। तब जेपी के साथ लगभग 10 हजार लोगों ने अपना जनेऊ तोड़ यह संकल्प लिया था कि वे जाति प्रथा को नहीं मानेंगे। इस आंदोलन में स्वयं युवा तुर्क चंद्रशेखर सभा का संचालन कर रहे थे। तब सिताबदियारा के चैन छपरा में विशाल सभा हुई थी। उस समय सिताबदियारा में छात्र संघर्ष समिति का गठन हुआ था। यहां बहुत से लोग पैदल ही जेपी के आंदोलन में भाग लेने पटना गए थे।


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