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काश्‍ाी में गंगा की लहरों पर चलेगा सैम मानेकशॉ क्रूज, जानिए क्‍या संबंध है सैम का गंगा की लहरों से

गंगा की लहरों पर सैम मानेकशॉ के नाम पर आधुनिक नौका 200 पर्यटकों को गंगा में सैर कराएगा। सैम मानेकशॉ एक बड़ी नौका है जिसमें एक साथ दो सौ लोग गंगा की लहरों पर सवारी कर सकते हैं। इसके जरिए पर्यटकों को आकर्षित भी किए जाने की तैयारी है।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Wed, 28 Oct 2020 03:44 PM (IST)Updated: Wed, 28 Oct 2020 03:44 PM (IST)
काश्‍ाी में गंगा की लहरों पर चलेगा सैम मानेकशॉ क्रूज, जानिए क्‍या संबंध है सैम का गंगा की लहरों से
गंगा की लहरों पर सैम मानेकशॉ के नाम पर आधुनिक नौका 200 पर्यटकों को गंगा में सैर कराएगा।

वाराणसी, जेएनएन। जल्‍द ही काशी में गंगा की लहरों पर सैम मानेकशॉ  के नाम पर आधुनिक नौका 200 पर्यटकों को गंगा में सैर कराएगा। सैम मानेकशॉ एक बड़ी नौका है जिसमें एक साथ दो सौ लोग गंगा की लहरों पर सवारी कर सकते हैं। इसके जरिए काशी में पर्यटकों को आकर्षित भी किए जाने की तैयारी है। पाकिस्‍तान से जंग हो या ब्रिटिश सेना की ओर से जापानियों संग युद्ध का मोर्चा, हर कहीं सैम मानेकशॉ ने अपना युद्ध कौशल दिखाया है। अब उनके नाम पर गंगा में चलने वाला यह क्रूज उस नदी पर लोगों को सैर कराएगा जो उस बांग्‍लादेश से जाकर मिलती है जिसे उन्‍होंने पाकिस्‍तान की कैद से मुक्ति दिलाने के लिए अपना युद्ध कौश्‍ाल दिखाया थ्‍ाा।

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सैम मानेक शॉ का संक्षिप्‍त परिचय

सैम होर्मूसजी फ्रेमजी जमशेदजी मानेकशॉ (तीन अप्रैल 1914 - 27 जून 2008) देहरादून में इंडियन मिलिट्री एकेडमी के पहले बैच (1932) के चालीस छात्रों में वह एक थे। कमीशन मिलने के बाद 1934 में वह भारतीय सेना में शामिल हुए। वर्ष 1942 में दूसरे विश्व युद्ध के दौरान बर्मा में एक मोर्चे पर जापानी सैनिक ने अपनी मशीनगन से कई गाेलियां उनके शरीर में उतार दी थीं। विश्‍वयुद्ध में शामिल सैम मानेकशॉ को युद्ध के मैदान में एक सूबेदार बचाकर लाया था। काफी प्रयास के बाद उनके शरीर में लगी गोलियां निकाली गईं और आंत का आपरेशन किया गया। इलाज के बाद वापस वह भारत आए आैर वर्ष 1946 में लेफ़्टिनेंट कर्नल के तौर पर सैम मानेकशॉ को सेना मुख्यालय दिल्ली में तैनाती मिली।

सैम का सेना में ऊंचा कद

वर्ष 1948 में जब वीपी मेनन कश्मीर का भारत में विलय कराने महाराजा हरि सिंह से बात करने श्रीनगर गए थे तो सैम भी उनके साथ मौजूद थे। वर्ष 1962 में चीन से युद्ध हारने के बाद सैम को चौथी कोर की कमान दी गई। उनके दोस्त अौर परिजन उनको सैम कह कर पुकारते थे। 7 जून वर्ष 1969 को सैम को भारत का 8 वां चीफ आफ आर्मी स्टाफ का पद दिया गया। उनके ही प्रयासों से दिसम्बर 1971 में पाकिस्तान की करारी हार हुई और बांग्लादेश का निर्माण हुआ। सैम के देशप्रेम और देश के प्रति सेवा भाव को देखते हुए उन्हें पद्मविभूषण, फील्ड मार्शल का भी मिला। लगभग चार दशकों तक देश की सेवा करने के बाद सैम 15 जनवरी 1973 को फील्ड मार्शल के पद से रिटायर हुए और 27 जून 2008 को उनका नि


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