सोना पहाड़ी से मोहब्बत में गुजार दी सदियां, वर्षों से बैगा व गोंड़ समुदाय व्यतीत कर रहा जीवन
सोनभद्र में एक गांव है जहां सदियों से सोना होने की चर्चा घर-घर में है। यहां का हर बच्चा सोना से परिचित है। पहाड़ी के जर्रे-जर्रे पर ग्रामवासियों के पैरों के निशां हैं।
सोनभद्र [अरुण कुमार मिश्र ]। एक गांव है जहां सदियों से सोना होने की चर्चा घर-घर में है। यहां का हर बच्चा सोना से परिचित है। पहाड़ी के जर्रे-जर्रे पर ग्रामवासियों के पैरों के निशां हैं। हर पेड़ और उनकी शाखाएं यहां के बाङ्क्षशदों से अनछुए नहीं हैं। पहाडिय़ों के बड़े-बड़े पीले पत्थरों पर नाम अंकित हैं। कोई रामलखन है कोई इसमें गीता और सीता। बीच-बीच में गेहूं, चना व सरसों की हरियाली, उनके फूलों व बालियां इस पूरे क्षेत्र को एक अलग किस्म का सुगंध दे कर ही हैं। इस पूरे वातावरण में सदियों से सोना पहाड़ी में जीवन व्यतीत कर रहे समाज में सोना पहाड़ी के कल, आज और कल को लेकर चर्चा है। उस अतीत पर है जिसने खुशनुमा जिंदगी दी है।
प्रकृति पर निर्भर है जीवन
जिला मुख्यालय से लगभग 40 किमी दूर सोना पहाड़ी पनारी ग्राम पंचायत में स्थित है। इसमें लगभग 50 टोले हैं। यहां विरल आबादी है। 2520 हेक्टेयर में फैले इस गांव की आबादी लगभग 20 हजार है। ये पूरी आबादी प्रकृति पर निर्भर है। आज भी यहां सिंचाई के मूलभूत साधन नहीं हैं। गांव निवासी 26 वर्षीय ओमप्रकाश कहते हैं कि यहां खेती मुख्य रूप से गेहूं, चना, सरसों, कोदो, सावां, तिल, अरहर, जावा, धान और गेहूं की होती है। बीच-बीच में प्राकृतिक पोखरे हैं जिसमें बरसात का पानी जमा होता है।
विस्थापन शब्द से अनजान
प्राय: यहां के लोग गहरे काले, छरहरे व नाटे कद-काठी के हैं। चिपटी नाक और घुंघराले बाल भी एक पहचान है। सोना पहाड़ी के ठीक नीचे दो घरों का एक कुनबा है। यहां पुुरुष दिन में कमाने के लिए बाहर जाते हैं। महिलाएं घर संभालती हैं। गोद में बच्चा लिए सरिता और मानकुंवर को आज भी सोना पहाड़ी रोज की तरह है। आधुनिक चकाचौंध से कोसों दूर ये महिलाएं विस्थापन शब्द से अनजान हैं। कहती हैं, हमैं का करे के हो। हम नाही जानत विस्थापन। थोड़ी सहमी लेकिन निर्भीक ये महिलाएं जंगली जानवरों से तनिक भी भयभीत नहीं हैं। जहरीले सर्पों की बात पर इन्हें हंसी आती है। मिट्टी के घरों में इन्हें सुकून है। पहाडिय़ां उनके लिए मनोरंजन का साधन हैं।
प्राइमरी स्कूल तक ही पढ़ाई
यहां सिर्फ प्राथमिक विद्यालय है। उच्च शिक्षा की पढ़ाई के लिए दूर जाना होता है। यहां के ज्यादातर लोग पांचवीं तक की शिक्षा ली है। वीरान और शांत वातावरण में सड़कें भी नदारद हैं। गांव अर्थात टोलों तक पहुंचने के लिए पगडंडिया ङ्क्षजदाबाद हैं। जमीन पर खींचे वाहनों के चलने के चिह्न गंतव्य तक पहुंचाते हैं। इन्हीं के सहारे बच्चे पढऩे भी जाते हैं। पूछने पर पता चला कि यहां के विद्यालय प्राय: बंद ही रहते हैं। सरकारी यूनीफार्म पहने बच्चे स्कूल कम पहाडिय़ों में घूमते हुए किसी को भी मिल सकते हैं।
सोना पहाड़ी से मोहब्बत है
सोना पहाड़ी सरकार के लिए एक खजाना है और इससे देश की अर्थव्यवस्था समृद्ध करने की योजना पर काम कर रही है। वहीं स्थानीय निवासियों के जीवन में भी यह पहाड़ी बड़ी भूमिका अदा करती है। पहाड़ी के सबसे उच्च शिखर पर ग्रामीणों की मन्नतें पूरी होती हैं। यहां एक शिव मंदिर है। इसका कोई पुजारी नहीं है। बस मन्नतें पूरी होते ही स्थानीय लोग जमीन से लगभग 300 फीट की ऊंचाई चढ़कर पूजा-पाठ करते हैं। चादर चढ़ाते हैं। यू आया और गया की तर्ज पर यहां के निवासी दिनोंरात सोना पहाड़ी के शिखर पर आते-जाते हैं। मौजूद लोगों ने बताया कि सोना होना सरकार क्या बताएगी ये तो हम पीढिय़ों से सुनते आ रहे हैं।