Sawan 2019 : शिव को प्रिय मास का आरंभ, काशी में झूमता, इठलाता आया मनभावन सावन
बाबा भोले को प्रिय मास सावन का आज बुधवार से आरंभ हो गया। देवाधिदेव महादेव इस काशीपुरी के अधिपति हैं इससे श्रावण मास का रंग और निखरा नजर आने लगा।
वाराणसी, जेएनएन। बाबा भोले को प्रिय मास सावन का आज बुधवार से आरंभ हो गया। देवाधिदेव महादेव इस काशीपुरी के अधिपति हैं, इससे श्रावण मास का रंग और निखरा नजर आने लगा। हरियाले सावन को कांवरधारी शिव भक्तों के दल ने इस शहर को केशरिया बना दिया। यह सिलसिला सावन समापन यानी 15 अगस्त तक चलेगा। इसके साथ ही लोक से जुड़े तीज-त्योहारों का क्रम भी शुरू हो चुका है। देर रात गुरु पूर्णिमा और चंद्रग्रहण के बाद काशी के विभिन्न गंगा घाटों पर स्नान का दौर चला और तड़के सूर्योदय से पूर्व ही काशी बम बम नजर आने लगी। आस्था का रेला गंगा घाटों से लेकर बाबा दरबार तक कुछ ऐसा नजर आया मानो आस्था का कोई ओर छोर ही न हो।
पहली बार ब्रह्म मुहूर्त में हुई बाबा की आरती
आषाढ़ पूर्णिमा की देर रात से बुधवार भोर तक चंद्रग्रहण के कारण काशी विश्वनाथ मंदिर में मंगला आरती रात 2.45 बजे के बजाय दो घंटे देर यानी 4.45 बजे से की गई। इससे बाबा के इस प्रात: कालीन पूजा अनुष्ठान को पहली बार ब्रह्म मुहूर्त का संयोग मिल गया। खास यह कि यह योग भी सावन के पहले दिन बना।
वास्तव में आषाढ़ पूर्णिमा पर मंगलवार की रात 1.31 बजे खंड ग्रास चंद्रग्रहण लगा और मोक्ष बुधवार की भोर 4.30 बजे हुआ। ऐसे में मंगला आरती निर्धारित समय 2.45 बजे के बजाय 4.45 बजे से 5.45 बजे तक की गई। इसके बाद मंदिर के पट दर्शन-पूजन के लिए खोले गए। हालांकि श्रद्धालुओं की सुविधा देखते हुए आरती के समय में 15 मिनट कटौती की गई। इसके बाद भी उन्हें सावन के पहले दिन बाबा के दर्शन-जलाभिषेक में आम दिनों की अपेक्षा 1.45 घंटा अधिक इंतजार करना पड़ा।
समय परिवर्तन के मुद्दे को फिर मिलेगी धार
श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर खुलने और बंद होने का समय लंबे समय से न्यास परिषद को ही खटकता रहा है। इसमें रात 11 बजे बाबा की शयन आरती और रात में दो बजे ही उन्हें जगा कर मंगला आरती पर आपत्ति रही है। वर्ष 2016 में मंदिर न्यास परिषद में मंदिर खुलने से बंद होने तक की प्रथा -परंपरा के संबंध में प्रस्ताव भी पारित किया जा चुका है। इसे रायशुमारी के लिए शंकराचार्यों को भी भेजा गया तो श्रीकाशी विद्वत परिषद अध्यक्ष समेत विद्वानों से भी विचार-विमर्श किया गया। न्यास अध्यक्ष आचार्य पं. अशोक द्विवेदी की ओर से ब्रह्मï मुहूर्त में बाबा की आरती के लिए शास्त्रार्थ भी कराया गया लेकिन सरकारी तंत्र ने इसका संज्ञान नहीं लिया। न्यास अध्यक्ष का मानना है कि गंगा स्नान के बाद बाबा का दर्शन-पूजन कर्मकांड धर्म शास्त्र के अनुसार है और रात्रि में स्नान निषेध है। माना जा रहा है अब चंद्रग्रहण के कारण ही सही ब्रह्मï मुहूर्त में बाबा की मंगला आरती के बाद एक बार फिर इस मुद्दे को धार मिल सकती है।
इस सावन में चार सोमवार
इस बार सावन कृष्ण पक्ष में तृतीया की वृद्धि तो शुक्ल पक्ष में द्वितीया की हानि है। साथ ही चार सोमवार पड़ रहे हैं। इसमें 22 जुलाई, 29 जुलाई, पांच अगस्त व 12 अगस्त शामिल हैं। इसके अलावा पांच अगस्त को नाग पंचमी और 15 अगस्त को सावन पूर्णिमा व रक्षाबंधन पड़ रहा है। सावन में ही भौम व्रत, दुर्गा यात्रा, गौरी पूजन व हनुमत दर्शन के लिए विशेष होता है। सावन में हर मंगलवार को सौभाग्यवती स्त्रियों को व्रत रख कर मंगला गौरी (पार्वती) के पूजन का विधान है। इस व्रत को करने से कुंवारी कन्याओं को सुंदर वर की प्राप्ति होती है।
ख्यात ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार सावन पर्यंत सोमवार व्रत, दर्शन -पूजन का विशेष महत्व है। मान्यता है जो भक्त भगवान शिव की नियमित पूजा -आराधना न कर सकें, सावन पर्यंत हर सोमवार और प्रदोष को व्रत रखें। देवाधिदेव महादेव की प्रसन्नता के लिए पार्थिव शिवलिंग बना कर पूजन-अर्चन के साथ ही जलाभिषेक, रूद्राभिषेक, बिल्वार्चन, अक्षतार्चन कर भांग-धतूरा, पुष्प अर्पित करें तो इससे भी भोलेनाथ अति प्रसन्न होते हैं।
शास्त्रों में विशेष महत्व
शास्त्रों में भी श्रावण मास पूजन-अर्चन के लिए विशेष कहा गया है। तुलसीदास ने रामचरित मानस में कहा है-'भावी मेटि सके त्रिपुरारी...' अर्थात होनी को भी टालने वाले भगवान आशुतोष हैं। इसलिए इस मास में नौ ग्रहों का पूजन, महामृत्युंजय अभिषेक आदि करने कराने से सभी अनिष्ट ग्रहों की शांति मिलती है। भगवान का प्रारूप आशुतोष रूप में होने से वह जल्दी प्रसन्न होने वाले देवों के देव महादेव हैं। इनकी आराधना से सभी तरह के कष्टों-पापों से मुक्ति मिलने के साथ ही धर्म अर्थ काम मोक्ष की प्राप्ति होती है और अंत में शिव सायुज्य मिलता है। इस मास में भगवान आशुतोष की पूजा-अर्चना के विशेष मान के कारण 'काशी-विश्वनाथ-गंगे' के दर्शन के लिए देश-दुनिया से भक्तों के जत्थे उमड़ भी पड़े हैं।
बाबा को प्रिय मास में हर अनुष्ठान खास
सावन वह मास है जिसमें प्रसन्न शिव, भक्ति से तत्काल भक्तों की मनोकामना पूर्ण करते हैं। कारण यह कि महादेव को सावन में होने वाली विभिन्न अवस्थाओं के शुभ परिवर्तन भाते हैं। ऐसे में सावन तो पूरे विश्व में आता है लेकिन यह काशी में खास हो जाता है। यहां देवी पार्वती से भूषित वामांगवलि, व्याघ्र चर्म और जटा-जूटधारी देवाधिदेव महादेव बाबा श्रीकाशी विश्वनाथ इस नगरी के कण - कण में विराजमान हैं। भस्मी युक्त श्वेत शरीर, मस्तक पर तरंगित गंगा और चंद्रमा की शरद ऋतु सी उमंग किसी को भी दंग कर दें। भांग धतूरा का सेवन, गले में सर्प माल, बैल की सवारी और गणों की सेना से घिरे रहने वाले काशीपुराधिपति के अड़भंगी रूप में सर्वसमभाव का संदेश छिपा है। काशी पर उनका असर साफ दिखता है जिसे लोग अपनी जुबान में गंगो-जमुनी तहजीब कहते हैं। धर्म की दीवारें टूट जाती हैं यहां और सभी मजहब एक रंग हो जाते हैं। द्वादश ज्योतिर्लिंगों में खास बाबा विश्वनाथ महज बिल्व पत्र और गंगजल से प्रसन्न हो जाते हैं और पापों के ढेर से मुक्ति दिलाते हैं। शिवनाम की नौका में जो सवार हो जाए सहज ही वैतरणी पार हो जाते हैं। नाद-संगीत और योग के सर्जक भगवान शंकर के भाव काशी की हवा में घुले हैं जो इसे उत्सवों की नगरी बनाते हैं। उनके भावों से विह्वïल काशी सात वार में नौ त्योहार मनाती है। काशी शिव की तो नगरी ही ठहरी लेकिन यहां श्रीहरि और भगवान राम के नाम भी श्रद्धा की गगरी छलकती है। श्रीहरि को समर्पित एक पूरा माह तो श्रीराम की लीलाओं से कार्तिक की हर शाम सजती है। शक्ति की आराधना के भाव भी इस नगरी को काशीपुराधिपति से ही मिले हैं। मान्यता है भगवती अन्नपूर्णा से अन्नदान लेकर बाबा काशी का भरण-पोषण करते हैं, कहा और देखा भी जाता है कि काशी में कोई भूखे नहीं सोता। काशी को महाश्मशान ऐसे ही नहीं कहा गया। इस नगर को बसाने के बाद खुद उन्होंने मणिकर्णिकातीर्थ पर देवी पार्वती संग वास किया। मत्र्य लोक को मरणान्मुक्ति का संदेश दिया। मान्यता है भगवान खुद महाश्मशान मणिकर्णिका पर तारक मंत्र देते हैं, जीवन-मरण के फेर से मुक्त करते हैं, तारनहार हैं वह। सावन में उनकी पूजा आराधना, जलाभिषेक और बम बोल और हर हर महादेव उद्घोष का श्रवण कर लेने मात्र से ही पाप धुल जाते हैं।
-डा. कुलपति तिवारी, महंत, श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर
श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर
काशी पुराधिपति बाबा श्रीकाशी विश्वनाथ का मंदिर देश-दुनिया के सनातनियों की श्रद्धा का केंद्र है। देवाधिधेव के दर्शन पूजन और अभिषेक-आरती के लिए वर्ष पर्यंत श्रद्धालु आते हैं। रंगभरी एकादशी, महाशिवरात्रि और सावन के सभी सोमवार पर श्रद्धालुओं का रेला उमड़ पड़ता है।
मंदिर का इतिहास
वर्तमान मंदिर महारानी अहिल्याबाई ने वर्ष 1780 में बनवाया। महाराजा रणजीत सिंह ने शिखरों को स्वर्ण मंडित कराया। वर्ष 1785 में तत्कालीन गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स के आदेश से सिंहद्वार के सामने नौबतखाना बनाया गया। परिसर में पूर्व-ईशान के मध्य गर्भगृह में बाबा विराजमान हैं। गर्भगृह के पश्चिम मंडप में बैकुंठनाथ व अग्निकोण में अविमुक्तेश्वर स्थापित हैं। शालामंडप में अन्य अनेक शिवलिंग स्थापित हैं। मुख्य प्रवेशद्वार के बाईं ओर सत्यनारायण तो ईशान कोण में भगवती अन्नपूर्णा हैं। मंदिर का व्यवस्थापन 1983 से सरकार के अधीन है। फिलहाल बाबा दरबार से गंगा तट तक कारिडोर बनाया जा रहा है।
सावन में विशेष तैयारी
श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर में परंपरा व पूजन विधान का विशेष मान है। भोर की मंगला आरती खास है। सावन भर हर सोमवार मंगला आरती 15 मिनट पहले से यानी 2.30 बजे से होगी। सप्तर्षि आरती शाम 5.30 बजे और शृंगार भोग आरती भी दो घंटे पहले होगी। रात 8.30 बजे से मंदिर में झांकी दर्शन होगा। बाबा भक्तों भीड़ व्यवस्थित करने को पांच किमी के दायरे में बैरिकेडिंग की गई है। कतार तक में पेयजल की व्यवस्था है। सुरक्षाकर्मी भी सम्मान से चल भोले का संबोधन करेंगे।
बोले मंदिर के अधिकारी : बाबा दरबार में श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए इस बार झांकी दर्शन की व्यवस्था की गई है। रास्ते व अलग अलग द्वार भी तय किए गए हैं, प्रयास है श्रद्धालुओं को किसी तरह की असुविधा न हो। -विशाल सिंह, सीईओ।
बोले आचार्य : सावन में बाबा के दर्शन और जलाभिषेक का विशेष महत्व है। बाबा दरबार में परंपराओं का पालन करते हुए विधि- विधान से दर्शन अभिषेक की व्यवस्था की गई है।
- आचार्य पं. अशोक द्विवेदी, अध्यक्ष श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर।