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BHU में वाई-फाई का मोहताज है आरटीआइ, केंद्रीय सूचना आयुक्त के स्पष्टीकरण पर हास्यास्पद जवाब

एशिया के इस सबसे बड़े आवासीय विश्वविद्यालय को आरटीआइ के जवाब के लिए वाई-फाई नेटवर्क का मोहताज होना पड़ रहा है।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Sat, 04 Jan 2020 11:15 AM (IST)Updated: Sat, 04 Jan 2020 11:28 AM (IST)
BHU में वाई-फाई का मोहताज है आरटीआइ, केंद्रीय सूचना आयुक्त के स्पष्टीकरण पर हास्यास्पद जवाब
BHU में वाई-फाई का मोहताज है आरटीआइ, केंद्रीय सूचना आयुक्त के स्पष्टीकरण पर हास्यास्पद जवाब

वाराणसी, जेएनएन। देश के टॉप-थ्री विवि में शामिल काशी हिंदू विश्वविद्यालय अपने शैक्षणिक, अनुसंधान के साथ ही बेहतर चिकित्सीय सेवा के लिए देशभर में ख्यात है। बावजूद इसके एशिया के इस सबसे बड़े आवासीय विश्वविद्यालय को आरटीआइ के जवाब के लिए वाई-फाई नेटवर्क का मोहताज होना पड़ रहा है। यह बात कोई और नहीं बल्कि बीएचयू अस्पताल के तत्कालीन केंद्रीय सूचना अधिकारी एवं वर्तमान असिस्टेंट रजिस्ट्रार (शिक्षण एवं प्रशासन) मनोज कुमार गुप्ता मान रहे हैं। 

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केंद्रीय सूचना आयुक्त वंजा एन सरना ने आवेदक सौरभ तिवारी से तीन अगस्त 2018 को छायाप्रति शुल्क जमा कराने के बावजूद एक साल तक आरटीआइ जवाब उपलब्ध न कराने पर तत्कालीन सूचना अधिकारी से स्पष्टीकरण मांगा। इस पर उनकी ओर से बहुत ही हास्यास्पद सफाई दी गई। 28 नवंबर को मनोज गुप्ता की ओर से केंद्रीय सूचना आयोग को भेजे गए जवाब के मुताबिक मई 2018 में कुलपति द्वारा निर्माण कार्य का उद्घाटन किया गया था। इसके बाद किचेन, स्टोर व पाथवे के तोडफ़ोड़ के कारण एसएस अस्पताल के प्रशासनिक भवन की इंटनरेट कनेक्टिविटी बाधित हो गई थी। साथ ही लोकल एरिया नेटवर्क व वाई-फाई भी काम नहीं कर रहा था। यह समस्या मेरे पद छोडऩें तक सही नहीं हुआ, जिस कारण मैं आरटीआइ का जबाब नहीं दे पाया। हालांकि केंद्रीय सूचना आयुक्त ने 16 दिसंबर 2019 को मनोज कुमार गुप्ता द्वारा दायर जवाब को स्वीकार कर लिया और उनपर कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं की। 

दरअसल, उमंग फार्मेसी व बीएचयू के बीच हुए एमओयू की प्रति सौरभ तिवारी ने आरटीआइ के माध्यम से मांगी थी। अगस्त 2018 में छायाप्रति का शुल्क जमा कराने के बावजूद आरटीआइ का जवाब नहीं दिया गया। इसके बाद द्वितीय अपील की सुनवाई केंद्रीय सूचना आयोग के समक्ष हुई। 17 अक्टूबर 2019 को फैसला आया, जिसमें समझौते की प्रति उपलब्ध कराने के साथ ही तत्कालीन केंद्रीय सूचना अधिकारी मनोज कुमार गुप्ता से स्पष्टीकरण मांगा गया था। हालांकि बाद में आवेदक सौरभ तिवारी को समझौते की प्रति उपलब्ध करा दी गई। 

आरटीआइ कानून के साथ हुआ मजाक 

आवेदक सौरभ तिवारी के मुताबिक यह प्रकरण आरटीआइ कानून के साथ मजाक है। जब मैंने केंद्रीय सूचना आयोग से मामले में लापरवाही के लिए सर सुंदरलाल अस्पताल के तत्कालीन सीपीआइओ मनोज कुमार गुप्ता पर अनुशासनात्मक कार्रवाई का ब्योरा आरटीआइ के जरिए मांगा तक जाकर केंद्रीय सूचना आयोग हरकत में आया। तमाम प्रयास के बावजूद आखिरकार दोषी अधिकारी पर कार्रवाई नहीं हुई। 


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