मधुमेह और ह्रदय के हैं रोगी तो जन औषधि केंद्रों से बना लें दूरी, दवाओं के अभाव में लौटाए जा रहे मरीज
जनता को जीवन रक्षक दवाएं व सर्जिकल आइटम गुणवत्ता के साथ ही सस्ती दर पर उपलब्ध कराने के उद्देश्य से स्थापित जन औषधि केंद्र खुद ही बीमार हो गए हैैं।
वाराणसी [प्रमोद यादव]। जनता को जीवन रक्षक दवाएं व सर्जिकल आइटम गुणवत्ता के साथ ही सस्ती दर पर उपलब्ध कराने के उद्देश्य से स्थापित जन औषधि केंद्र खुद ही बीमार हो गए हैैं। शहर में खुले 16 ऐसे केंद्रों में चार सरकारी बड़े अस्पतालों में हैैं। इनमें मधुमेह, ह्रïïदय रोग, थॉयरायड और अस्थि रोग की दवाओं का स्टाक खाली है। इनके मरीज महीनों से लगातार लौटाए जा रहे हैैं तो मल्टीविटामिन तक का स्टाक खाली है। खास यह कि इन केंद्रों की उपलब्धता सूची में दर्ज 700 से अधिक दवाओं में से महज 200 ही इन तक पहुंच पाई हैैं।
उच्च गुणवत्ता वाली जेनरिक दवाएं बाजार मूल्य से कम दर पर उपलब्ध कराने के उद्देश्य से प्रधानमंत्री जन औषधि योजना का पीएम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक जुलाई 2015 को शुभारंभ किया था। इसके तहत बनारस में एक दर्जन दुकानों खोली गईं। इनमें चार पं. दीनदयाल उपाध्याय राजकीय अस्पताल, मंडलीय अस्पताल, मानसिक अस्पताल व लालबहादुर शास्त्री राजकीय अस्पताल में पिछले साल शुरू की गईं। इससे मरीजों को अस्पतालों में उपलब्ध न होने वाली दवाएं सस्ती दर पर मिलने की उम्मीद जरूर जगी लेकिन कुछ ही दिन में इसकी सचाई सामने आने लगी।
मधुमेह, ह्रदय रोग, थायरायड और अस्थि रोग समेत लंबे समय तक चलने वाली दवाओं के लिए आने वाले मरीजों को दवा दो दिन पहले ही खत्म हो गई कह कर लौटाया जाने लगा जब इन रोगों से पीडि़त मरीज हीं यहां अधिक आते हैैं। इससे उनके हाथ निराशा आती है और महंगे मेडिकल स्टोरों का रूख करना होता है। केंद्र कर्मियों ने भी दवा आपूर्ति की स्थिति बेहद खराब होना स्वीकार किया। कहा जब कभी मधुमेह, ह्रïïदय रोग, थायरायड और अस्थि रोग आदि की दवाएं आती भी हैैं तो लूट मच जाती है और लोग खरीद कर दो-तीन माह के लिए स्टाक कर लेते हैैं।
डाक्टरों की दवाएं लिखने में रुचि नहीं
मंडलीय, पं. दीनदयाल व लालबहादुर शास्त्री राजकीय अस्पताल में रोजाना तीन हजार से अधिक मरीज आते हैैं। ज्यादातर फिजीशियन की ओपीडी में जाते हैैं और उनमें ह्रïदय रोग, मधुमेह, थॉयरायड रोगियों की बड़ी संख्या होती है। डाक्टर उन्हें अस्पताल में अनुपलब्ध दवाएं जनऔषधि केंद्र से लिखने के बजाय बाहर की दवाएं लिखने में उत्साह दिखाते हैैं। इसे ओपीडी पर्चे पर नजर दौड़ा कर समझा जा सकता जिसमें जेनरिक नाम के बजाय ब्रांड नाम ही नजर आता है। इसे लेकर मरीज बाहर की दुकानों पर दौड़़ता भागता नजर आता है। सरकारी अस्पतालों के बाहर स्थित दुकानों पर उमड़ती भीड़ पूरी स्थिति समझाती है।
माता आनंदमयी केंद्र को अवार्ड
दवाओं की आपूर्ति और डाक्टरों द्वारा इन्हें न लिखे जाने को लेकर सरकारी अस्पतालों में स्थित जनऔषधि केंद्र भले ही आंसू बहाएं लेकिन निजी केंद्रों में मरीजों की कतार है। इनमें माता आनंदमयी अस्पताल में डेढ़ साल पहले खुले केंद्र को दवाओं की रेंज रखने और बिक्री के लिए सम्मानित भी किया जा चुका है।
बोले जिम्मेदार : 'जेनरिक दवाएं लिखने में भी डाक्टरों की रुचि नहीं है। इससे जनऔषधि केंद्रों पर पर्चे कम ही आते हैैं। बहुत जोर लगाने पर प्रतिदिन प्रति केंद्र 1000-1200 रुपये तक की बिक्री हो पाती है। ऐसे में खर्च निकलना तक मुश्किल हो रहा है। वहीं दवा आपूर्ति की स्थिति भी ठीक नहीं है। किसी दवा की डिमांड बढ़ते ही स्टाक खत्म हो जाता है। - नवीन सिंह, प्रोजेक्ट मैनेजर, सिलिकान हेल्थ केयर (सरकारी अस्पतालों में स्थित जनऔषधि केंद्रों की संचालक कंपनी)
जनता को सस्ती दर पर दवाएं उपलब्ध कराने की योजना
जनऔषधि केंद्रों पर बिकने वाली जेनरिक दवाओं को लेकर शुरूआती चरण में इनकी गुणवत्ता को लेकर अफवाह भी फैलाई गई। हकीकत यह है कि इनकी गुïणवत्ता चमकीली-भड़कीली पैैकिंग में बिकने वाली दवाओं से कहीं भी कम नहीं। वास्तव में बड़ी फार्मा कंपनियां जो दवाएं बनाती हैैं, उन्हें कानूनन कुल दवाओं का 30 फीसद जेनरिक दवाएं बनाना होता है। ये दवाएं सीधे जनऔषधि केंद्रों को मिलेंगी। इसे 60-70 फीसद कम दर पर मरीजों को बिक्री के लिए उपलब्ध कराया जाता है।
बोले अधिकारी : जेनरिक दवाओं की गुणवत्ता अन्य ब्रांडेड दवाओं की तरह ही बेहतर है। जनता तक सस्ती दर पर दवाएं उपलब्ध कराने के उद्देश्य से जनऔषधि केंद्र खोले गए हैैं। डाक्टरों को अस्पतालों में अनुपलब्ध दवाएं जनऔषधि केंद्रों से लिखने का निर्देश दिया गया है। - डा. वीबी सिंह, सीएमओ।
जनऔषधि केंद्रों से अब मिलेंगी आयुर्वेदिक दवाएं
आयुर्वेद की ओर लोगों का रूझान और प्रचार-प्रसार को लेकर सरकारी सक्रियता को देखते हुए जनऔषधि केंद्रों से आयुर्वेदिक दवाएं बेचने की भी तैयारी है। शासन स्तर पर इस संबंध में निर्णय लिया जा चुका है। अब सिर्फ आदेश जारी करने की देर है। सभी सरकारी अस्पतालों में आयुष विंग पहले ही खोली जा चुकी है। इनमें दवाओं की सभी रेंज उपलब्ध न होने से मरीजों का सीमित दवाओं से इलाज किया जाता है। दूसरी ओर आयुर्वेदिक दवाओं की बिक्री से इन केंद्रों की आय भी सुधारी जा सकेगी।
तीन जिलों से आती हैैं दवाएं
जनऔषधि केंद्रों में दवा की आपूर्ति गुडग़ांव स्थित ड्रग वेयर हाउस से की जाती है। प्रदेश में भी पांच डिस्ट्रब्यूटरशिप है। बनारस के केंद्रों पर आजमगढ़, गोरखपुर व सुल्तानपुर से दवाएं मंगाई जाती हैैं।