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जागरण संस्‍कारशाला में आपसी मानवीय मूल्‍यों और एक-दूसरे के विश्वास पर टिके संबंधों पर मंथन

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह समूहों में रहता है। वह एक-दूसरे के सुख-दुख में भागीदारी भी करता है।

By Edited By: Published: Wed, 16 Oct 2019 01:44 AM (IST)Updated: Wed, 16 Oct 2019 08:24 AM (IST)
जागरण संस्‍कारशाला में आपसी मानवीय मूल्‍यों और एक-दूसरे के विश्वास पर टिके संबंधों पर मंथन
जागरण संस्‍कारशाला में आपसी मानवीय मूल्‍यों और एक-दूसरे के विश्वास पर टिके संबंधों पर मंथन

वाराणसी, जेएनएन। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह समूहों में रहता है। वह एक-दूसरे के सुख-दु:ख में भागीदारी भी करता है। व्यक्ति को अपने प्रत्येक कार्य के लिए सदैव किसी न किसी संबंध का निर्वहन करना होता है। पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक व व्यवसायिक हर मोड़ पर संबंध ही काम आते हैं। संबंधों के बिना स्वच्छ समाज, देश, परिवार की कल्पना नहीं की जा सकती है। वहीं संबंध एक-दूसरे के विश्वास पर टिका होता है। ऐसे में हमें किसी के साथ विश्वासघात नहीं करना चाहिए। विश्वासघात से संबंधों में दरार पड़ना तय है।

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'दैनिक जागरण संस्कारशाला' के तहत गुरुकुल मांटेसरी स्कूल (खजुरी ) व नारायणी चैलेंजर कान्वेंट स्कूल में आयोजित 'रिलेशनशिप मैनेजमेंट' विषयक कार्यशाला में कुछ इसी प्रकार से शिक्षकों ने विद्यार्थियों को संबंधों से जोड़ने का प्रयास किया। दोनों विद्यालयों में संस्कारशाला की कहानी सुनाते हुए शिक्षकों ने कहा कि रिश्ते सामाजिक संबंधों का आधार है। वहीं तकनीकी युग में लोग संबंधों की अहमियत भूलते जा रहे हैं। अफसोस की बात यह है कि युवा पीढ़ी वाट्स एप, फेसबुक की दुनिया में खो गई है। इसके चलते आपसी संबंध कही न कही कमजोर हो रहे हैं। या टूट रहे हैं। जागरण संस्कारशाला का 'रिलेशनशिप मैनेजमेंट' की कार्यशाला उद्देश्य यह है कि हम आज के दौर में संबंधों को कैसे जोड़ रखे।

दरअसल संबंध एक कला है। यह कला हम सभी के लिए उपयोगी है। संबंधों को बनाए रखने के लिए हमें एक-दूसरे के विचारों को समुचित आदर देने होगी। तभी संबंध प्रगाढ़ होंगे। संबंध प्रबंधन के लिए यह मूल मंत्र हमें हमेशा याद रखना चाहिए। किसी की आलोचना करना उचित नहीं है। हां कमियां बताया, उसे दूर करने का उपाय बताना गलत नहीं है। इससे हमारे संबंधों को और मजबूती मिलती है। बस इसका तरीका हमें आना चाहिए। कोई भी बात यदि उचित अवसर देखकर किया जाय तो संबंधों में कभी भी दरार नहीं पड़ती है।

''भारतीय संस्कृति में संबंधों को विशेष महत्व दिया गया है। हमारी संस्कृति में ऐसे अनेक उदाहरण हैं जो संबंधों के महत्व को दर्शाते है। कृष्ण-सुदामा की दोस्ती सर्वोपरि है। इसी प्रकार पिता-पुत्र के संबंध की गरिमा के वचन का पालन करने के लिए मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने वनवास जाने का निर्णय लिया। संबंध केवल मानव-मानव से ही नहीं होते हैं। संबंध देश व सृष्टि से ही होता है। बगैर संबंधों के प्राकृतिक प्रेम संबंध नहीं है। वहीं प्राकृतिक प्रेम से ही पर्यावरण का संरक्षण किया जा सकता है। -शैलेजा त्रिपाठी, प्रधानाचार्य गुरुकुल मांटेसरी स्कूल

''यह बात सही है कि हम लोग परिवार के बीच कम व स्मार्ट फोन को अधिक समय दे रहे हैं। इससे पढ़ाई भी प्रभावित हो रही है लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। - अर्शलान, गुरुकुल मांटेसरी स्कूल

'' शिक्षकों ने संबंधों के बारे में विस्तार से जानकारी दी। काफी अच्छा लगा। अब इसे जीवन में उतारने का भी प्रयास होगा ताकि हम एक अच्छे नागरिक बन सके। - सैय्यद आतिक, गुरुकुल मांटेसरी स्कूल

''जब भी कोई मुसीबत आती है तो परिवार के सदस्य व दोस्त ही काम आते हैं। यह जानने के बावजूद हम लोग संबंधों को पहचानने में कही न कही भूल कर रहे हैं। - अंशिका आतिफ, गुरुकुल मांटेसरी स्कूल

''हर मोड़ पर संबंध काम आता है। कभी कोई क्लास छूट जाता है तो संबंधों के आधार पर ही दोस्तों के उसकी नोट्स मांगते हैं। यदि दोस्त से संबंध न हो तो नोट्स नहीं मिलेगा। -मिर्जा सानिया, गुरुकुल मांटेसरी स्कूल

''दुर्भाग्य की बात यह है कि स्मार्ट फोन युग में संबंध फेसबुक वाट्सएप मैसेज तक सिमटकर रह गए हैं। यह हमारे देश की सामाजिक व्यवस्था के लिए चुनौती है। युवा पीढ़ी संबंधों को एकमात्र औपचारिकता मानने लगी है, उनके लिए संबंधों की गरिमा, उनका निर्वहन करना एक काम मात्र है। ऐसे में हमें व्यक्तिगत रूप से अपने बच्चों को संबंधों के महत्व, उनके उचित व्यवस्थापन की शिक्षा बाल्यावस्था से ही देनी चाहिए। बालपन के शुरू से ही प्राकृति के साथ उनका लगाव उत्पन्न करना होगा। -रंजीत सिंह, प्रधानाचार्य, नारायणी चैलेंजर कान्वेंट स्कूल

''संबंधों पर ही दुनिया टिकी हुई है। परिवार, समाज व देश का निर्माण संबंधों के आधार पर ही होता है। जबकि संबंधों का निर्माण आपसी सामंजस्य से होता है। इसके लिए एक-दूसरे की बेहतर समझ जरूरी है। समाज में तमाम ऐसे लोग है जो कटु से कटु बातें बड़े ही प्यार से कह देते हैं। समाज उसे स्वीकार भी कर लेता है। यही संबंधों का प्रबंधन है। यह कला सिर्फ विद्यार्थियों के लिए ही नहीं अध्यापकों के लिए भी महत्वपूर्ण है। - अंजना सिंह, अध्यापिका, नारायणी चैलेंजर कान्वेंट स्कूल

''संस्कारशाला के तहत हमें निरंतर अच्छी-अच्छी कहानी पड़ने को मिल रही है। वाकई में संबंध की महत्ता आज समझ में आया है। अब संबंधों को अधिक महत्व देंगे। -रीना पांडेय, नारायणी चैलेंजर कान्वेंट स्कूल

''परिवार के बीच रहने के बावजूद हम परिवार से दूर होते जा रहे हैं। इसके बावजूद कभी भी ऐसा महसूस नहीं हुआ। आज जब विद्यालय में संबंधों के बारे में बताया गया तो यह बात समझ में आई। - प्रचांल सिंह, नारायणी चैलेंजर कान्वेंट स्कूल

''पढ़ने के लिए हमें किताबों से दोस्ती करती पड़ती है। इसी प्रकार ज्ञान के लिए गुरु के पास जाना होता है। यह सब संबंधों पर ही निर्भर होता है। संबंधों के बदौलत ही हम मुकाम हासिल कर सकते हैं। -महक सिंह, नारायणी चैलेंजर कान्वेंट स्कूल

'' विद्यालय में संबंधों के प्रबंधन के बारे में जानकारी दी गई। संबंधों को प्रगाढ़ बनाए रखने के लिए हमें त्याग की भावना रखनी चाहिए। संबंधों में स्वार्थ का कोई अस्तित्व नहीं होता है। -तनुजा गिरी, नारायणी चैलेंजर कान्वेंट स्कूल


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