विजय दशमी पर रावण वध की तैयारी, दशहरा पर रावण-मेघनाद व कुंभकर्ण के विशाल पुतले का होगा दहन
विजय दशमी की तैयारियां सोमवार को पूरी कर ली गई। डीरेका में रावण-मेघनाद व कुंभकर्ण के विशाल पुतले क्रेन से खड़े कर दिए गए।
वाराणसी, जेएनएन। विजय दशमी की तैयारियां सोमवार को पूरी कर ली गई। डीरेका में रावण-मेघनाद व कुंभकर्ण के विशाल पुतले क्रेन से खड़े कर दिए गए। अन्य स्थानों पर भी तैयारियां पूरी कर ली गईं लेकिन पुतले मंगलवार को ही लीला स्थल पर खड़े किए जाएंगे। हालांकि बरेमा में इस बार पर्यावरण संरक्षण के लिहाज से पुतला दहन नहीं किया जाएगा। चौकाघाट में चित्रकूट रामलीला समिति की ओर से भी पुतला दहन नहीं किया जाता है।
डीरेका पुतला दहन : सात बजे
मलदहिया पुतला दहन : छह बजे
रावण दहन में हालांकि सबसे बड़ी चिंता बारिश की है, आयोजन समिति सहित काशी के लोग भी इस अनोखे लक्खा मेले में इंतजार कर रहे हैं कि बारिश न हो तो रावण दहन देखने को मिल जाए। हालांकि बारिश होने की संभावना कम ही है। हालांकि आयोजन समितियों की ओर से भी वैकल्पिक व्यवस्था की जा चुकी है ताकि रावण दहन में कोई समस्या न हो।
आश्विन शुक्ल पक्ष दशमी अर्थात विजय दशमी सनातन धर्म के चार प्रमुख त्योहारों में एक है। इस बार विजय दशमी पर्व आठ अक्टूबर को मनाया जाएगा। विजय दशमी तिथि सात अक्टूबर को 3.05 बजे लग गई जो आठ अक्टूबर को शाम 4.18 बजे तक रहेगी। देखा जाए तो विजय दशमी आश्विन शुक्ल दशमी को श्रवण नक्षत्र का संयोग होने से होती है। इस बार श्रवण नक्षत्र सात अक्टूबर को रात 8.39 बजे लग गया जो आठ अक्टूबर को रात 10.21 बजे तक रहेगा। प्राचीन समय में इस तिथि में राज्य वृद्धि की भावना और विजय प्राप्ति की कामना से राजा विजय काल में प्रस्थान करते थे। आश्विन शुक्ल दशमी में सायंकाल विजय तारा उदय होने के समय को विजय काल माना जाता है। हर बार की तरह इस बार विजय दशमी को विजय मुहूर्त दिन में 1.56 बजे से 2.43 बजे तक रहेगा। मान्यता है विजय मुहूर्त में जिस कार्य को किया जाता है, उसमें सफलता अवश्य मिलती है।
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने पंपासुर के जंगल की समस्त वानरी सेना को साथ लेकर आश्विन शुक्ल दशमी के श्रवण नक्षत्र युक्त रात्रि में प्रस्थान कर लंका पुरी पर चढ़ाई की थी। इसका परिणाम यह हुआ कि राक्षस राज रावण का नाश हुआ और प्रभु श्रीराम की विजय हुई। इसलिए यह तिथि पवित्र मानी गई है।
शमी पूजन का महत्व : विजय दशमी को शमी पूजन का अत्यधिक महत्व शास्त्रों में कहा गया है। शमी समयंते पापम्, शमी शत्रु विनाशिनी। अर्जुनस्य धनुर्धारी, रामस्य प्रिय वादिनी।। अर्थात हे शमी तू पापों का नाश करने वाली और शत्रुओं को नष्ट करने वाली है। तूने अर्जुन के धनुष को धारण किया और रामजी की प्रिय है। शमी वृक्ष का महत्व त्रेता में श्रीरामचंद्र के समय तो था ही महाभारत काल द्वापर में भी भगवान श्रीकृष्ण के समय भी था। दुष्ट दुर्योधन से निर्वासित वीर पांडव वन के अनेक कष्ट सह कर जब राजा विराट की नगरी में वेश बदल कर पहुंचे तब अपने शस्त्रों को एक शमी वृक्ष पर रख कर गए थे। विपत्ति काल में राजा विराट के यहां बिताया था। शत्रुओं की रक्षा करने के लिए जिस समय विराट के उत्तर कुमार ने अर्जुन को अपने साथ लिया तो अर्जुन ने उसी समय वृक्ष पर से अपने धनुष को उठाया था। उस समय देवता की तरह शमी वृक्ष को पांडवों के अस्त्रों की रक्षा की थी। इसी प्रकार रामजी के प्रस्थान के समय भी शमी वृक्ष ने प्रभु से कहा था कि भगवान आपकी विजय होगी।
तिथि विशेष पर अपराजिता पूजन करने से व्यक्ति जीवन के हर क्षेत्र में सफलता अर्जित करता है। इस दिन नीलकंठ पक्षी के दर्शन का भी विशेष महत्व है। नीलकंठ को साक्षात भगवान शिव माना जाता है। विजय दशमी को नीलकंठ दर्शन से सभी तरह के पापों से मुक्ति के साथ ही चारो पुरुषार्थों यथा धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की भी प्राप्ति होती है। इस दिन शस्त्र पूजन अवश्य करना चाहिए।
नाटी इमली का भरत मिलाप कल
काशी की रामलीलाओं में सर्व प्रमुख और लक्खा मेला के रूप में देश दुनिया में ख्यात नाटी इमली का भरत मिलाप नौ अक्टूबर बुधवार को होगा। व्यवस्थापक मुकुंद उपाध्याय के अनुसार विधि विधान शाम चार बजे शुरू होंगे।
-4.00 बजे : अयोध्या (बड़ागणेश) से राजा की सवारी का प्रस्थान।
-4.02 बजे : अयोध्या (बड़ागणेश) से भरत शत्रुघ्न का पैदल प्रस्थान।
-4.30 बजे : श्रीराम-सीता, लक्ष्मण का चित्रकूट से अयोध्या सीमा (नाटी इमली मैदान) आगमन।
-4.40 बजे : चारो भाइयों का मिलन।
-5.00 बजे : नाटी इमली से राम दरबार का अयोध्या के लिए प्रस्थान।