Move to Jagran APP

RathYatra 2022 : भूखे भगत की खातिर काशी आ बसे भगवान जगन्नाथ, काशी में रथयात्रा मेला की पढ़‍िए अनोखी दास्‍तान

वाराणसी में रथयात्रा मेला की कहानी बहुत की पुरानी है। एक बार विकराल बाढ़ आ जाने के कारण कई सप्ताह तक प्रसाद काशी नहीं आ सका और ब्रह्मचारीजी भूखे रह गए। उन्हीं दिनों उन्हें स्वप्नादेश हुआ कि मेरे मंदिर की स्थापना काशी में ही करके तुम भोग लगाकर खाओ।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Thu, 30 Jun 2022 03:47 PM (IST)Updated: Thu, 30 Jun 2022 03:47 PM (IST)
RathYatra 2022 : भूखे भगत की खातिर काशी आ बसे भगवान जगन्नाथ, काशी में रथयात्रा मेला की पढ़‍िए अनोखी दास्‍तान
काशी में जगन्‍नाथ की रथयात्रा का इतिहास काफी पुराना है।

वाराणसी [कुमार अजय]। गज-ग्राह की कातर कथा हो या भरी सभा में लाज बचाने की गुहार लगाती द्रौपदी की व्यथा, भक्तों की रक्षा के लिए भगवान दौड़े चले आते हैं। सनातन समाज के मानस का यह विश्वास ही सनातन परंपरा की प्राणवायु है। बाबा विश्वनाथ की शैव नगरी काशी में भगवान विष्णु के स्वरूप जगन्नाथ स्वामी की प्रतिष्ठा भी एक परम भक्त ब्रह्मचारी जी पर प्रभु की कृपा का ही पुण्य फल है। काशी में जगन्नाथ स्वामी के आ विराजने की इस कथा का प्रथम सूत्र भी जगन्नाथ पुरी से ही जुड़ा है।

loksabha election banner

जहां तक रथयात्रा मेले की शुरुआत का प्रश्न है, यह श्रेयस तत्कालीन भोसला स्टेट के डिप्लोमेटिक एजेंट रहे पं. बेनीराम व उनके परिवार के नाम है, जिन्होंने सन् 1802 के पहले ही पुरी के रथयात्रा मेले की तरह काशी में भी मेले का शुभारंभ करा दिया था। इस तरह काशी में जगन्नाथ देवालय के स्थापना की कीर्ति अगर ब्रह्मचारी जी के नाम जाती है, तो परंपरा सहित इसे कायम रखने का यश पं. बेनीराम व उनके वंशजों का सिरमौर बनता है।

उपलब्ध तथ्यों के अनुसार सन् 1790 में पुरी के जगन्नाथ मंदिर के मुख्य पुजारी व प्रबंधक ब्रह्मचारीजी थे। जगन्नाथ जी के प्रति उनकी अचल भक्ति थी। उन्हीं दिनों पुरी के राजा से कुछ वैमनस्यता हो जाने के कारण वे पुरी को हमेशा के लिए छोड़कर काशीपुरी चले आए। उस समय क्रोधवश महाराज ने उन्हें रोका नहीं, परंतु ब्रह्मचारीजी की अचल निष्ठा और भक्ति से परिचित होने के कारण उनके भोजन के लिए हर सप्ताह बहंगी काशी भेजी जाती रही, क्योंकि जगन्नाथ जी का भोग छोड़कर वह दूसरा कोई भोजन ग्रहण नहीं करते थे। यह क्रम वर्षों तक चलता रहा।

एक बार विकराल बाढ़ आ जाने के कारण कई सप्ताह तक प्रसाद नहीं आ सका और ब्रह्मचारीजी भूखे रह गए। उन्हीं दिनों उन्हें स्वप्नादेश हुआ कि मेरे मंदिर की स्थापना काशी में ही करके तुम भोग लगाकर खाओ। एक अद्भुत स्वप्न से प्रेरणा पाकर वे भोसला राज्य के मंत्री पं. बेनीराम तथा कटक के दीवान विश्वंभर पंडित से मिले। उन दिनों दोनों भाई काशी में अपने निवास स्थान पर आए हुए थे। उनके निवेदन पर भोसला राज्य के तत्कालीन राजा बैंकोजी भोसले ने पंडित बंधुओं को प्रचुर धनराशि दी और जगन्नाथ स्वामी, बलभद्र और सुभद्रा का मंदिर बनकर तैयार हो गया।

मंदिर तथा उत्सवों के प्रबंधन के लिए बैंकोजी ने छत्तीसगढ़ का तखतपुर महाल जगन्नाथ जी को दान कर दिया। वहीं के राजस्व से जगन्नाथ जी के मंदिर और उत्सव का सारा प्रबंध होता रहा। इस प्रबंध का सारा भार पं. बेनीराम को दिया गया। जैसा नियम पुरी में था, उस समय वहां के प्रबंधक राजा ही हुआ करते थे। उसी नियम के अनुसार यहां के प्रबंधक बेनीराम पंडित हुए। चूंकि पुरी का रथयात्रा मेला राजमहल के समीप होती था तो यहां भी मेला पं. बेनीराम के बगीचे के समीप ही होने लगा। 1857 की क्रांति के बाद अंग्रेजों ने छत्तीसगढ़ की संपत्ति पर अवैध कब्जा कर लिया और यह सिलसिला टूट गया। इसके बाद से पं. बेनीराम के वंशज ही आज तक मंदिर की नियमित पूजा के साथ रथयात्रा उत्सव का पूरा प्रबंध करते चले आए हैं।

आज भी पूजित है ब्रह्मचारी जी का पीढ़ा : रथयात्रा उत्सव तो पुरी की तर्ज पर ही काशी में भी अलबेला सजता है। मंदिर के पूजा-अर्चना के अनुष्ठान भी पुरी के समान ही होते हैं। तीन दिन के लिए भगवान अपनी ससुराल आते हैं और बेनीराम के वंशज उनका सम्मान दामाद की तरह किया करते हैं। उसी अवसर पर रथयात्रा मेला लगता है। सन् 1805 में बेनीराम के स्वर्गवास के बादल उनके वंशज इस परंपरा के ध्वजवाहक बने हुए हैं। सन् 1818 में पुरी की प्रदक्षिणा कर ब्रह्मचारीजी काशी लौटे और यहां असि घाट पर समाधि ले ली। उनके चित्र, धोती और पीढ़ा की आज भी पूजा होती है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.