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रामनगर की रामलीला : खिचड़ी खाने बैठे राजा दशरथ ने युवराजों समेत सुनी 'गारी'

आठवें दिन यह एक बार फिर तब जीवंत हुआ जब विवाह के प्रसंग में महाराज दशरथ खिचड़ी खाने बैठे और महिलाओं ने मधुर स्वर में गारी गाकर लोकाचारों का निर्वहन किया।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Sun, 30 Sep 2018 10:29 PM (IST)Updated: Mon, 01 Oct 2018 10:47 AM (IST)
रामनगर की रामलीला : खिचड़ी खाने बैठे राजा दशरथ ने युवराजों समेत सुनी 'गारी'
रामनगर की रामलीला : खिचड़ी खाने बैठे राजा दशरथ ने युवराजों समेत सुनी 'गारी'

वाराणसी (रामनगर) । विश्व प्रसिद्ध रामनगर की रामलीला रंग कर्म के बजाय संपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान है जो लोक रंग को भी संस्कारों में एकाकार कर अभिभूत कर जाता है। आठवें दिन यह एक बार फिर तब जीवंत हुआ जब विवाह के प्रसंग में महाराज दशरथ चारों पुत्रों के साथ खिचड़ी खाने बैठे और जनकपुर की महिलाओं ने मधुर स्वर में 'गारी' गाकर लोकाचारों का निर्वहन किया। इस पर सभी खूब लोटपोट हुए और राजा दशरथ ने न्योछावर देकर रस्म निभाई। 

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एक दिन विलंब से चल रही लीला में रविवार को जनकपुर से बरात की विदाई, अवध में परिछन व शयन की झांकी लीला का मंचन किया गया। प्रसंग अनुसार राजा जनक के आदेश पर दूत सतानंद महाराज ने राजा दशरथ को युवराजों समेत खिचड़ी खाने के लिए आमंत्रित करते हैं। मंडप में पहुंचने पर सभी का पांव धुलाकर आसन ग्र्रहण कराया गया। तरह-तरह के स्वादिष्ट मिष्ठान-पकवान परोसे गए। इसके साथ ही 'रघुबर सुनो मधुर स्वर गारियां...', 'खा लो-खा लो खिचड़ी मेरे प्यारे लला...',  'आनंद रहो प्यारे दुलहे...' जैसी गारियों को स्वर देकर महिलाओं ने लोकाचार निभाए। महाराज दशरथ ब्राह्मïणों को गोदान देते हैैं। साथ ही अयोध्या वापस लौटने का आग्रह करते हैं जिस पर राजा जनक उन्हें रोकते हैैं। गुरु विश्वामित्र व सतानंद राजा जनक को समझाते हैैं। विदाई का समाचार अंत:पुर में पहुंचता है। सखियां सीता को समझाती हैं कि पति व सास-श्वसुर की सेवा ही स्त्री का सबसे बड़ा धर्म है। राम सहित चारों भाई अपनी सास महारानी सुनयना का आशीर्वाद लेते हैं। भावुक राजा जनक दूर तक बरात विदा करने आते हैं। सभी उन्हें समझाकर वापस भेजते हैैं। 

चार बहुएं आने की खुशी में अयोध्या नगरी आनंद से सराबोर रही। शुभ मुहूर्त में बरात अयोध्या में प्रवेश करती है। महारानी कौशल्या, कैकेयी व सुमित्रा हर्षित मन से नवयुगुलों का परिछन कर आरती उतारती हैैं। विश्वामित्र के विदा मांगने पर महाराज दशरथ कहते हैं 'अवध कि पूरी संपत्ति आपकी है। मैं पुत्रों समेत आपका सेवक हूं। पुत्रों पर स्नेह रखते हुए सदैव दर्शन देने की कृपा करते रहिएगा।' और गुरु विश्वामित्र के चरणों में गिर पड़ते हैैं। विश्वामित्र आशीर्वाद प्रदान कर आश्रम लौट जाते हैं। बालकांड का समापन कर रामायणियों ने यहीं लीला को विश्राम दिया।


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