रामनगर की रामलीला : चित्रकूट में राम और भरत मिलन देख भाव विभोर हुए लीला प्रेमी
विश्व प्रसिद्ध रामनगर की रामलीला शुक्रवार को तेरहवें दिन बारहवीं रामलीला में भरत का यमुनावतरण, ग्राम वासी मिलन, श्रीराम चन्द्र दर्शन की लीला सम्पन्न हुई।
रामनगर ( वाराणसी) । विश्व प्रसिद्ध रामनगर की रामलीला शुक्रवार को तेरहवें दिन बारहवीं रामलीला में भरत का यमुनावतरण, ग्राम वासी मिलन, श्रीराम चन्द्र दर्शन की लीला सम्पन्न हुई। भारद्वाज ऋषि के आश्रम स्थल पर पहुंचते ही भरत की चतुरंगिणी सेना के रूप में 36 वीं वाहिनी पीएसी के सिपाहियों ने महाराज कुमार अनन्त नारायण सिह को सशस्त्र सलामी दी। लीला के प्रथम चरण में यमुना में स्नान कर भरत तीर्थराज को प्रणाम करते हैं और मुनिराज से श्रीराम के दर्शन का आशीर्वाद प्राप्त कर चित्रकूट प्रयाण करते हैं।
इन्द्रदेव बृहस्पति से कहते हैं कि श्रीराम संकोची व प्रेमवशी हैं इसलिये कोई ऐसा उपाय करें जिससे भरत व श्रीराम न मिल सकें उन्होंने समझाया कि श्रीराम के साथ छल करने का परिणाम ठीक नहीं है। भरत की मनोदशा देखकर जहां मुनिगण चिन्तित हैं वही ग्राम वासी भरत को साथ आयी चतुरंगिणी सेना को देखकर सशंकित हैं। परन्तु भरत जी प्रभु श्रीराम का गुणगान करते रहते हैं। वे राम, लक्ष्मण व सीता का पता ग्राम वासियों से लेते हैं। ग्रामवासी भरत का श्रीराम प्रेम देख उनसे श्रीराम चरणों मे प्रीति का वरदान मांगते हैं। निषाद राज उन्हें श्रीराम के निवास स्थान की जानकारी देते हैं दूसरी ओर सीता श्रीराम को रात्रि मे देखे सपने का वर्णन करती हैं। तत्पश्चात राम भगवान शिव का पूजन करते हैं। निषाद राज गुह समेत सभी को वही रुकने के कह कर भरत व शत्रुघ्न को लेकर श्रीराम के पास जाते हैं। आश्रम के समीप पहुंच कर भरत व शत्रुघ्न साष्टांग दण्डवत कर पृथ्वी पर लोट जाते हैं। भरत के आगमन की सूचना मिलते ही श्रीराम दौड़कर भरत व शत्रुघ्न को गले लगा लेते हैं।
श्रीराम गुरू वशिष्ठ को दण्डवत कर प्रणाम करते हैं श्रीराम अपनी तीन माताओं को प्रणाम कर उनसे वार्तालाप करते हैं। सभी श्रीराम के आश्रम में आते हैं तो सीता के चरण स्पर्श करने पर माताएं सुहाग अचल रहने का आशीर्वाद देती हैं। श्रीदशरथ के निधन का समाचार सुन श्रीराम बहुत दुखी होते हैं तो गुरू वशिष्ठ उन्हें समझाते हैं। पुरंजन सभी भाईयों के प्रेम अनुराग का गुणगान करते हैं, सीता जी अपनी सभी सासु की सेवा करती हैं भरत जी रात भर जागते हुए सोचते हैं कि श्रीराम वशिष्ठ व माता कौशल्या के कहने पर अयोध्या लौट कर राज्याभिषेक करायेंगे अथवा नहीं। यदि मैं हठ करता हूं तो अधर्म होगा। यही पर आरती के साथ लीला को अगले दिन के लिए विश्राम दिया जाता है।