रामलीला : प्रभु चरणों में शरणागत हुआ जयंत, सोलहवें दिन से राक्षसों का संहार आरंभ
प्रभु श्रीराम ने धरती की राक्षसों से मुक्त करने का संकल्प लिया। विराध वध से इसका आरंभ किया तो जयंत का नेत्र भंग किया। नारद की आज्ञा से जयंत प्रभु चरणों में शरणागत हो गया।
वाराणसी (रामनगर) । प्रभु श्रीराम ने धरती की राक्षसों से मुक्त करने का संकल्प लिया। विराध वध से इसका आरंभ किया तो जयंत का नेत्र भंग किया। नारद की आज्ञा से जयंत प्रभु चरणों में शरणागत हो गया। रामनगर में विश्वप्रसिद्ध रामलीला के 16वें दिन सोमवार को 15वें दिन के प्रसंग यथा जयंत नेत्र भंग, अत्रि मुनि मिलन, विराध वध, इंद्र दर्शन, शरभंग- सूतीक्ष्ण-अगस्त्य ऋषि व गिद्धराज समागम, पंचवटी निवास और प्रभु श्रीराम द्वारा, लक्ष्मण को गीता उपदेश लीला का मंचन किया गया।
श्रीराम-लक्ष्मण व सीता के आश्रम आने पर अत्रि मुनि उनकी स्तुति करते हैं। सीता जी अनुसूईया का चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लेती हैं। अनुसूईया उन्हें स्त्री धर्म सिखाती हैं। अत्रि मुनि को प्रणाम और आशीर्वाद प्राप्त कर प्रभु श्रीराम आगे बढ़ते हैं। श्रीराम भाई व पत्नी समेत मतंग ऋषि के आश्रम में रात्रि विश्राम कर प्रात: उनसे विदा लेते हैं। मार्ग मे विराध राक्षस सीता जी को चुरा लेता है और राम-लक्ष्मण को खा जाने की धमकी देता है। श्रीराम सात बाणों से विराध का वध कर सीता को मुक्त कराते हैं।
ब्रह्म लोक जाने की तैयारी मे रथारूढ़ शरभंग ऋषि राम को देखकर ठिठक जाते हैं और श्रीराम दर्शन से अपनी अभिलाषा पूर्ण बताते हैं। साथ ही चिता बनाकर वहीं बैठ जाते हैं, प्रभु श्रीराम द्वारा वर मांगने को कहने पर सीता-लक्ष्मण समेत अपने हृदय मे सदा सगुण रूप में बस जाने का आग्रह करते हैं और योगाग्नि में भस्म हो जाते हैं। श्रीराम भूमि को राक्षस विहीन करने का संकल्प जताते हैं। ध्यान मग्न सूतीक्ष्ण मुनि के पास श्रीराम को लेकर अगस्त्य ऋषि के आश्रम जाते हैं जिनकी आज्ञा से प्रभु पंचवटी की ओर प्रस्थान करते हैं। रास्ते मे गिद्धराज को स्नेह देते हैं और पंचवटी में पर्णकुटी बनाकर निवास करते हैं। यहीं आरती कर लीला को विश्राम दिया जाता है।
आज की रामलीला
- रामनगर : शूर्पणखा नासिका छेदन, खरदूषण वध, जानकी हरण, रावण गिद्धराज युद्ध।
- जाल्हूपुर : जानकी वियोग में रामकृत विलाप, जटायु की अंत्येष्टि, शबरी फल भोजन, वन वर्णन, पंपासर पर्यटन, नारद-हनुमान-सुग्रीव मिलन।
- काशीपुरा : भरत जी की वन यात्रा, घंडइल पार।
- लाटभैरव : भरत सभा।
- खोजवा बाजार : जनकदूत आगमन, अवधपुर प्रवेश, बरात की तैयारी।
- चित्रकूट व मौनी बाबा : भरत मनावन।
- गायघाट : दशरथ मरण, भरत आगमन।
- भोजूबीर : जयंत नेत्र भंग, अत्रि भेंट, सूतीक्ष्ण मिलन, अनुसूइया धर्मोपदेश।
- भदैनी : वन गमन, निषाद मिलन।
- रोहनिया : श्रीराम विवाह।
- शिवपुर : चित्रकूट में भरत सभा, जनक आगमन, जनक सभा।
- नदेसर: धनुष यज्ञ, परशुराम लक्ष्मण संवाद।
- आशापुर : मुकुट पूजा व क्षीर सागर की झांकी।