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वाराणसी में रामनगर की रामलीला : नहीं हुआ प्रथम गणेश पूजन, लीला मंचन पर संशय

कोविड-19 के चलते इस बार भी बनारसी सहित देश के विभिन्न कोनों से आने वाले रामभक्त रामनगर की विश्व प्रसिद्ध रामलीला से वंचित रहेंगे। कारण ना तो अभी तक पात्रों का चयन हुआ और ना ही कोई तैयारी ही दिख रही है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Wed, 28 Jul 2021 01:10 PM (IST)Updated: Wed, 28 Jul 2021 01:10 PM (IST)
वाराणसी में रामनगर की रामलीला : नहीं हुआ प्रथम गणेश पूजन, लीला मंचन पर संशय
वाराणसी के रामनगर में इस बार भी कोरोना संक्रमण के कारण रामलीला का मंचन नहीं होगा।

वाराणसी, जागरण संवाददाता। कोविड-19 के चलते इस बार भी बनारसी सहित देश के विभिन्न कोनों से आने वाले रामभक्त रामनगर की विश्व प्रसिद्ध रामलीला से वंचित रहेंगे। कारण ना तो अभी तक पात्रों का चयन हुआ और ना ही कोई तैयारी ही दिख रही है। रामलीला प्रेमियों को प्रथम गणेश पूजन का इंतजार था लेकिन श्रावण कृष्ण चतुर्थी के बीत जाने से यह उम्मीद भी टूट गई। जो इस बात का संकेत हैं कि पिछले साल की तरह इस बार भी विश्व प्रसिद्ध रामलीला का मंचन नहीं होगा।

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हालांकि अभी भी दुर्ग से जुड़े लोग कुछ भी बताने से कतरा रहे हैं। हां दबे जुबान यह जरुर कह रहे है कि जब कोई प्रक्रिया ही शुरू नहीं हुई तो रामलीला होने का सवाल ही नहीं उठता है। रामलीला से जुड़े जानकर लोगों का कहना है कि श्रावण कृष्ण चतुर्थी से पूर्व रामलीला में पंच स्वरुपों की भूमिका निभाने वाले बालकों का चयन हो जाता था। इसके अलावा प्रथम गणेश पूजन पर सभी स्वरूपों सहित भगवान श्री गणेश व हनुमान जी के मुकुट की पूजा अर्चना होती थी। इसके बाद सभी पात्र को बलुआ घाट स्थित धर्मशाला में व्यास जी के सानिध्य में प्रशिक्षण दिया जाता हैं। तीन माह तक चलने वाले इस प्रशिक्षण में सभी पात्र धर्मशाला में ही रहते हैं। इस दौरान पात्र धर्मशाला में रहकर रामचरित मानस से संबंधित चौपाइयों को कंठस्थ करते है। इस साल विश्व प्रसिद्ध रामलीला अनंत चतुर्दशी के दिन यानि 19 सितंबर से शुरू होनी थी। रामलीला के आयोजन को लेकर शुरू से ही लोग अटकलें लगा रहे थे।कोरोना के चलते धार्मिक कार्यक्रम पर रोक के चलते पिछले साल भी रामलीला स्थगित कर दी गई थी।जनकपुर स्थित राम जानकी मंदिर में केवल रामचरितमानस का पारायण पाठ कराया गया था। आशंका है कि इस बार भी केवल पिछले साल की तरह वहीं प्रक्रिया अपनाई जायेगी।

कुछ यूं रही पंरपरा : दो साल पूर्व तक अनंत चतुर्दशी से मासपर्यंत चलने वाली रामनगर की रामलीला में कई प्रसंगों का मंचन नहीं किया जाता। इनमें बालकांड के 175 दोहे-चौपाइयों का रामलीला मंचन शुरु होने से एक दिन पहले तक नित्य संध्याकाल पाठ किया जाएगा। इसमें बालकांड के वह प्रसंग होंगे जिनका रामलीला मंच पर मंचन नहीं किया जाता है। इनमें शिव विवाह, नारद मोह, राजा भानु प्रताप की कथा समेत विभिन्न प्रसंग हैं। इसकी शुरुआत सात दोहों से कर दी जाती थी। अगले नौ दिनों में बराबर हिस्सों में वितरण कर दोहा गायन किया जाएगा। लीला मंचन का समापन होने के बाद भी रामायणी दल के गान से ही इसे पूर्ण विराम दिया जाता है। वास्तव में सनकादिक मिलन प्रसंग के साथ उत्तरकांड के 91वें दोहे पर ही मंचन संपन्न हो जाता है। कोट विदाई के दौरान शेष दोहे का गायन कर रामायणी दल लीला को पूर्णता देते हैं। इसके अलावा दशरथ के अंतकाल और रावण मरण जैसे प्रसंग भी रामायणियों के ही जिम्मे होते हैं।


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