गंगा-जमुनी तहजीब को 'संतोष' रवानी
सांस्कृतिक नगरी काशी को गंगा जमुनी तहजीब का शहर ऐसे ही नहीं कहा गया है। यदि
वाराणसी : सांस्कृतिक नगरी काशी को गंगा जमुनी तहजीब का शहर ऐसे ही नहीं कहा गया है। यदि यहां मुस्लिम महिलाएं भगवान राम की आरती उतारती हैं तो हिंदू भाई रमजान के रोजे रखकर प्रेम व सौहार्द्र का पैगाम देते हैं। ऐसे ही किरदार हैं अंधरापुल स्थित हजरत बिजली शहीद बाबा के खादिम संतोष कुमार वारसी का।
संतोष वारसी वर्ष 1996 से रमजान के पूरे रोजे रखते हैं। हर साल 20वें रमजान को बिजली शहीद बाबा के आस्ताने पर सामूहिक रोजा इफ्तार व शबीना भी आयोजित करते हैं। संतोष बताते हैं पूरे रमजान भर बाबा के आस्ताने पर ही नींद पूरी करता हूं। सहरी के समय नींद खुल सके इसके लिए मोबाइल में अलार्म सेट कर रखा है। पास ही घर है, जहां से पत्नी शाम में बच्चों के हाथ इफ्तार भिजवा देती है। मगरिब की अजान सुनकर इफ्तार कर नमाजियों के साथ नमाज अदा करता हूं। कहा मुझे नमाज पढ़नी नहीं आती, अगल-बगल के नमाजी जैसा-जैसा करते हैं, मैं उन्हीं का अनुसरण कर लेता हूं। इन सब के बाद परिवार का भरण-पोषण करने से भी पीछे नहीं हटता। कहा, घर के किसी सदस्य को मेरे रोजा रखने पर कोई एतराज नहीं है। तीन बच्चों व पत्नी के साथ मैं खुशहाल जिंदगी बिता रहा हूं। अलविदा जुमा की नमाज संतोष शाह तैयब बनारसी आस्तान परिसर स्थित मस्जिद में और ईद की नमाज लाट सरैंया मस्जिद में अदा करते हैं। विश्वास के साथ संतोष कहते हैं कि अल्लाह अकीदत के साथ किए गए उनके सजदों को जरूर कबूल करता होगा।
शीतला माता के भक्त : संतोष वारसी अदलपुरा में शीतला माता का दर्शन करने बराबर जाते हैं। उनके घर में छोटा सा मंदिर भी हैं, जहां वे नियमित पूजा-अर्चना करते हैं। साथ ही नवरात्र के पूरे व्रत भी रखते हैं। इसके अलावा संतोष हर वर्ष ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर हाजिरी लगाने अजमेर भी जाते हैं।
गुलजार रही शब-ए-कद्र की दूसरी रात
जासं, वाराणसी : रमजानुल मुबारक का आखिरी अशरा 'जहन्नुम से आजादी' जारी है। मंगलवार रात शब-ए-कद्र की दूसरी रात थी। इस अजीम रात को लोगों ने इशा की नमाज पढ़कर कुछ आराम किया। इसके बाद घरों व मस्जिदों में नफ्ली नमाजों का एहतेमाम किया गया। तिलावत-ए-कलामपाक व नफ्ली नमाजों का सिलसिला सहरी के वक्त तक चलता रहा। हाफिज मोहम्मद असद ने बताया कि शब-ए-कद्र वह अजीम रात है, जिसके बारे में फरमाया गया है कि ये रात हजार महीनों से भी अफजल है। इसलिए रमजान के आखिरी अशरे की ताक रातों (21वीं, 23वीं, 25वीं, 27वीं व 29वीं रात) में इबादतों के जरिए इसकी तलाश करने को कहा गया है। इबादतगुजारों ने अपने-अपने अंदाज में खुदा की बारगाह में कारोबार, घर-परिवार व मुल्क के लिए दुआएं मांगी।
मोहब्बत की मिठास घोल रहे दावत-ए-इफ्तार
जासं, वाराणसी : दावत-ए-इफ्तार न सिर्फ सौहार्द्र व भाईचारे को मजबूत कर रहे हैं, बल्कि समाज में अमन व मोहब्बत की मिठास भी घोल रहे हैं। मंगलवार को कैंट स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर नौ (चीफ टिकट इंस्पेक्टर आफिस, नार्दर्न रेलवे कार्यालय में) पर सामूहिक रोजा इफ्तार का आयोजन चेकिंग स्टाफ की ओर से किया गया। दस्तरख्वान पर लजीज व्यंजन परोसे गए थे। अजान की सदा बुलंद होते ही रोजेदारों ने खजूर खाकर रोजा खोला और खुदा का शुक्र अदा किया। मगरिब की नमाज मौलाना शमशुद्दीन ने अदा कराई। इसके बाद अमनो-आमान के लिए दुआएं मांगी गई। इस अवसर पर सरफराज खान, फहीम खान, आमिर मीजामी, अफजाल अंसारी, शफीक अहमद सिद्दीकी, इखलाक अहमद आदि थे।
खुदा की बंदगी में मशगूल मासूम
जासं, वाराणसी : काजीसादुल्लापुरा निवासी हाफिज मुनीर की 11 वर्षीय पुत्री आयशा तबस्सुम भी खुदा की रजा के लिए रोजा रख रही हैं। उमस व गर्मी भी मासूम के इरादों को डिगा न पाई। दिन भर इबादते-इलाही में मशगूल रहने के बाद शाम में इफ्तार तैयार कराने में आयशा ने अपनी अम्मी का हाथ भी बंटाया। शाम में सभी के साथ इ़फ्तार कर खुदा का शुक्र अदा किया। शब ए कद्र की दूसरी रात आयशा ने तिलावत ए कलामपाक व नफ्ली नमाजों का अम्मी के साथ एहतेमाम किया।
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