रामलीला के सोलहवें दिन प्रभु के संकेत पर लक्ष्मण ने काट ली शूर्पणखा की नाक
धरा को राक्षसों से मुक्त करने के प्रभु श्रीराम के संकल्प आगे बढ़ गए। शूर्पणखा नासिका छेदन के साथ इसकी नींव पड़ गई तो सीता हरण के साथ रावण का अंत भी तय हो गया।
वाराणसी (रामनगर) । धरा को राक्षसों से मुक्त करने के प्रभु श्रीराम के संकल्प आगे बढ़ गए। शूर्पणखा नासिका छेदन के साथ इसकी नींव पड़ गई तो सीता हरण के साथ रावण का अंत भी तय हो गया। रामनगर की विश्व प्रसिद्ध रामलीला के 16वें दिन मंगलवार को 15वें दिन के प्रसंगों यथा शूर्पणखा नासिका छेदन, खर -दूषण वध, सीता हरण व रावण जटायुराज युद्ध प्रसंगों का मंचन किया गया।
पंचवटी में प्रभु श्रीराम-लक्ष्मण का मोहक स्वरूप देख राक्षसी शूर्पणखा मोहित हो जाती है। सुंदर स्त्री का रूप धारण कर रिझाने आती है। इसमें सफल न होने पर क्रोधित हो असली रूप दिखाती है और सीता को डराती है। प्रभु श्रीराम के इशारे पर लक्ष्मण उसके नाक-कान काट लेते हैं। शूर्पणखा पूरा वृतांत अपने भाई खरदूषण को बताती है और ललकारती है। बहन की दुर्दशा से आक्रोशित खर-दूषण सेना लेकर हमला कर देते हैं। प्रभु श्रीराम, खरदूषण का वध करते हैं, इससे प्रसन्न देवता आकाश से पुष्प वर्षा करते हैं। शूर्पणखा लंका जाती है और रावण को आप बीती सुनाती है। सोच-विचार के बाद रावण, सीता के हरण की योजना बनाता है और मारीच को स्वर्ण मृग का रूप धारण कर वहां जाने का निर्देश देता है।
स्वर्ण मृग देख सीता, श्रीराम से उसकी खाल लाने को कहती हैं। श्रीराम, सीता की सुरक्षा लक्ष्मण को सौंप, धनुष बाण लेकर मृग रूपी मारीच के पीछे दौड़ जाते हैं। देर होने पर लक्ष्मण वन मे देवताओं से सीता की रक्षा का आग्रह कर श्रीराम को खोजने जाते हैं। इस बीच रावण संन्यासी रूप धारण कर सीता का हरण कर ले जाता है। आकाश मार्ग मे जटायु रावण से जूझ जाता है। इसमें रावण जटायु का पंख तलवार से काट देता है और वे श्रीराम का स्मरण कर गिर पड़ते हैं। रावण सीता को राक्षसियों के सुरक्षा घेरे में अशोक वाटिका में रखता है। दूसरी ओर श्रीराम, लक्ष्मण को वन में अपने पीछे देख चिंतित हो जाते हैं। कुटिया लौटते हैं और सीता को न पाकर दुखी हो जाते हैं। यहीं पर आरती के साथ लीला को विश्राम दिया जाता है।
आज की रामलीला
रामनगर : श्रीजानकी वियोग में श्रीरामकृत विलाप, जटायु की अंत्येष्टि, शबरी फल भोजन, वन वर्णन, पंचासर पर्यटन, नारद-हनुमान-सुग्रीव मिलन।
जाल्हूपुर : बालि वध, वर्षा वर्णन, हनुमान का लंका प्रस्थान, संपाती मिलन।
भोजूबीर : नक्कटैया।
शिवपुर : भरत विदाई, नंदी ग्राम झांकी।
नदेसर व खोजवां : रामबरात, राम विवाह।
भदैनी : गंगावतरण, भारद्वाज समागम, वाल्मीकि समागम।
मौनी बाबा व चित्रकूट : भरत सभा।
लाट भैरव : जनक सभा।
काशीपुरा : भरत मनावन।
गायघाट : भरत वन गमन, भरत सभा, जनक आगमन।
सारनाथ : श्रीराम जन्म, ताड़का वध, फुलवारी,
फुलवरिया : मुकुट पूजा, रावण जन्म, श्रीराम जन्म।
रोहनिया : कैकेयी कोप भवन, रामवन गमन।