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बनारसी लकड़ी का खिलौना उद्योग के लिए बनेगा रा मेटेरियल बैंक, फालतू खर्च से मिलेगी निजात

लकड़ी का खिलौना बनाने वाले कारीगरों को लकडिय़ां सहज और सस्ते में उपलब्ध हों इसके लिए रा मैटेरियल बैंक बनाने की प्रक्रिया जल्द शुरू होने वाली है। इसके लिए जमीन की तलाश शुरू कर दी गई है। इसे बनाने में तीन करोड़ रुपये खर्च होंगे।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Thu, 26 Aug 2021 07:55 AM (IST)Updated: Thu, 26 Aug 2021 07:55 AM (IST)
बनारसी लकड़ी का खिलौना उद्योग के लिए बनेगा रा मेटेरियल बैंक, फालतू खर्च से मिलेगी निजात
लकड़ी का खिलौना बनाने वाले कारीगरों को लकडिय़ां सहज और सस्ते में उपलब्ध होगा।

जागरण संवाददाता, वाराणसी। लकड़ी का खिलौना बनाने वाले कारीगरों को लकडिय़ां सहज और सस्ते में उपलब्ध हों, इसके लिए रा मैटेरियल बैंक बनाने की प्रक्रिया जल्द शुरू होने वाली है। इसके लिए जमीन की तलाश शुरू कर दी गई है। इसे बनाने में तीन करोड़ रुपये खर्च होंगे।

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वाराणसी में हर साल लगभग 30 ट्रक लकड़ी से जुड़े विभिन्न प्रकार के उत्पाद तैयार किए जाते हैं। एक ट्रक में 400 घन फीट लकडिय़ां होती हैं। जिले में लगभग 750 लकड़ी के कारीगर हैं, जो खिलौने से लेकर अन्य उत्पाद बनाते हैं। इतनी बड़ी संख्या में कारीगर और कच्चे माल की जरूरत को देखते हुए रा मैटेरियल बैंक बनाया जा रहा है। जिला उद्योग केंद्र के उपायुक्त वीरेंद्र कुमार ने बताया कि रा मैटेरियल बैंक बनाने की प्रक्रिया अंतिम दौर में है, जमीन की तलाश की जा रही है। इसे बनाने में तीन करोड़ रुपये की लागत आएगी। इसके लिए एक भवन का निर्माण होगा, जहां नो प्रोफिट-नो लास की तर्ज पर कारीगरों को लकड़ी उपलब्ध कराई जाएगी।

वहीं श्री विश्वकर्मा वुड कार्विंग प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड के सीईओ संदीप विश्वकर्मा बताते हैं कि रा मैटेरियल बैंक बनने से कारीगरों को बहुत राहत मिलेगी, बिचौलिए खत्म हो जाएंगे, कागजी खानापूर्ति से मुक्ति मिलेगी। दरअसल, कारीगरों को कच्चे माल के लिए कई-कई बार भटकना पड़ता है। इससे पूरा काम प्रभावित होता है। हालांकि ज्यादातर कारीगर स्थानीय गोलगड्डा क्षेत्र से ही लकड़ी मंगा लेते हैं। यहां मध्यप्रदेश और सोनभद्र के जंगलों से कैमा और प्रसिद्ध नाम की लकड़ी मंगाई जाती है। एक जानकारी के मुताबिक कैमा 1200 रुपये प्रति घन फीट में मिलती है, जबकि प्रसिद्ध 50 रुपये प्रति किलोग्राम में प्राप्त होता है।

हाथी के दांत और चंदन की लकड़ी की जगह अब कैमा

संदीप विश्वकर्मा बताते हैं कि 1990 से पूर्व कैमा से नहीं, बल्कि हाथी के दांत के आकर्षक उत्पाद बनाए जाते थे। ये दांत यूएसए से आते थे। बाद के दिनों में जीवों के संरक्षण और हाथियों की कमी के चलते रोक लगा दी गई। इसके बाद चंदन की लकड़ी से उत्पाद बनना शुरू हुआ, लेकिन 2002 के बाद लाइसेंस और अन्य कई पेचीदगी पैदा होने से इन लकडिय़ों से भी दूरियां बन गईं। उसके बाद कैमा लकड़ी से उत्पाद बनना शुरू हो गया।


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