वाराणसी के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में एथिल एल्कोहल से हजारों साल पुरानी दुर्लभ पांडुलिपियों का संरक्षण
वाराणसी के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के सरस्वती भवन पुस्तकालय में बौद्धिक खजाने के रूप में मौजूद हजारों साल पुरानी दुर्लभ पांडुलिपियों के संरक्षण की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। संरक्षण के लिए पांडुलिपियों का वर्गीकरण किया जा रहा है।
वाराणसी, जागरण संवाददाता। संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के सरस्वती भवन पुस्तकालय में बौद्धिक खजाने के रूप में मौजूद हजारों साल पुरानी दुर्लभ पांडुलिपियों के संरक्षण की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। संरक्षण के लिए पांडुलिपियों का वर्गीकरण किया जा रहा है। नमी के कारण जिन पांडुलिपियों में फंगस लग गए हैं। उनका ट्रीटमेंट एथिल एल्कोहल से किया जाएगा ताकि दुर्लभ पांडुलिपियों का क्षरण न हो सके।
पांडुलिपियों का संरक्षण कार्य दिल्ली की एनजीओ संस्कृत प्रमोशन फाउंडेशन (एसपीएफ) की ओर से किया जा रहा। प्रथम चरण में एसपीएफ के विशेषज्ञ चयनित युवकों व पुस्तकालय के चार कर्मचारियों को पांडुलिपियों के संरक्षण के लिए दक्ष करने में जुटे हुए हैं।
पांच दिवसीय कार्याशाला के दूसरे दिन मंगलवार को विशेषज्ञों ने पांडुलिपियों के ट्रीटमेंट की कई विधि बताई। इसमें एथिल एल्कोहल सबसे महत्वपूर्ण विधि है। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (नई दिल्ली) के प्रोजेक्ट एसोसिएट अनिल द्विवेदी ने बताया कि पांडुलिपियों को तीन श्रेणियों में विभाजित कर संरक्षित किया जाएगा। इसमें खराब, अति खराब व ठीक पांडुलिपियां। बताया कि जो पांडुलिपियां ठीक-ठाक हैं। उन्हें ब्रश से साफ कर लाल कपड़े में लपेट कर रखा दिया जाएगा। लाल कपड़ा से कीड़े कम लगते हैं। कार्यशाला में नमी, फंगस व दीमक से बचाने की निवारक विधि की विशेषता भी बताई।
खराब पांडुलिपियों पर स्टार्च पेस्ट
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (नई दिल्ली) के प्रोजेक्ट एसोसिएट जितेंद्र चौहान ने बताया कि दीमक से नष्ट हो चुकीं पांडुलिपियों को बचाने के लिए स्टार्च पेस्ट किया जाएगा। स्टार्च पेस्ट गेहूं से बनाया जाता है। एक तरह से यह लेई की भांति होती है, लेकिन इसमें ग्लूटेन नहीं रहता है। ग्लूटेन से कीड़े-मकोड़े लगने की आशंका रहती है। बताया कि स्टार्च पेस्ट से खराब हो रहीं पांडुलिपियों को जोडऩे का प्रयास किया जा रहा है।
लाइट लक्स से जोड़ेंगे टुकड़े
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (नई दिल्ली) के प्रोजेक्ट एसोसिएट नितिन कुमार ने बताया कि जो पांडुलिपियां कई खंडों में फट गईं हैं। उन्हें जोडऩे के लिए लाइट लक्स विधि अपनाई जाएगी। इसके तहत पांडुलिपियों के टुकड़ों को टिश्यू पेपर से चिपकाया जाएगा। इसे डिजिटल कर एक बाक्स में रखा जाएगा ताकि लंबे समय तक संरक्षित किया जा सके।
ताड़ व भोजपत्र को शून्य लाइट
नितिन कुमार ने बताया कि ताड़ व भोजपत्र पर लिखी पांडुलिपियों को शून्य लाइट पर रखने का सुझाव दिया जा रहा है। जरूरत पडऩे पर ही इसे रोशनी में रखा जाए।
इंफोसिस फाउंडेशन से 50 लाख अनुदान
पांडुलिपियों के संरक्षण के लिए इंफोसिस फाउंडेशन ने 50 लाख रुपये का अनुदान दिया था। पहली किस्त 20 लाख रुपये जारी भी कर दिया है। वहीं संरक्षण की जिम्मेदारी संस्कृत प्रमोशन फाउंडेशन को सौंपी है।
एक लाख 11 हजार 132 पांडुलिपियां
विश्वविद्यालय स्थित ऐतिहासिक सरस्वती भवन पुस्तकालय में एक लाख 11 हजार 132 पांडुलिपियां लाल पोटली (मेडिकेटेड क्लाथ) में सहेज कर रखी गईं।