जर्मन बबल बैरियर तकनीक से वाराणसी में गंगा नदी को प्लास्टिक के कचरे से मुक्त करने की तैयारी
गंगा नदी को प्लास्टिक के कचरे से मुक्त करने के लिए वाराणसी नगर निगम अब जर्मनी की बबल बैरियर तकनीक का प्रयोग करेगा। पायलट प्रोजेक्ट के रूप में तीन घाटों में इसका प्रयोग किया जाएगा। शहरी विकास विभाग उत्तर प्रदेश की ओर से गुरुवार को इस बाबत जानकारी दी गई।
वाराणसी, जेएनएन। गंगा नदी को प्लास्टिक के कचरे से मुक्त करने के लिए वाराणसी नगर निगम अब जर्मनी की बबल बैरियर तकनीक का प्रयोग करेगा। पायलट प्रोजेक्ट के रूप में तीन घाटों में इसका प्रयोग किया जाएगा। शहरी विकास विभाग, उत्तर प्रदेश की ओर से गुरुवार को इस बाबत जानकारी दी गई।
गंगा नदी को प्लास्टिक के कचरे के बोझ से मुक्त करने के लिए पायलेट प्रोजेक्ट के तौर पर तीन प्रमुख घाटों में इसका प्रयोग किया जाएगा इसके लिए नाली के अंदर जगह-जगह उपकरण लगाए जाएंगे और बैरियर के जरिए इन प्लास्टिक के कचरे को गंगा नदी में मिलने से रोका जाएगा गंगा नदी को प्लास्टिक के कचरे के बोझ से मुक्त करने के लिए वाराणसी नगर निगम जर्मनी की बबल बैरियर तकनीक का प्रयोग करने जा रहा है।
प्रदूषण के प्रमुख कारण
गंगा में प्रदूषण का प्रमुख कारण इसके तट पर निवास करने वाले लोगों द्वारा नहाने, कपड़े धोने, सार्वजनिक शौच की तरह उपयोग करने की वजह है। अनगिनत टैनरीज, रसायन संयंत्र, कपड़ा मिलों, डिस्टिलरी, बूचड़खानों और अस्पतालों का अपशिष्ट गंगा के प्रदूषण के स्तर को और बढ़ा रहा है। औद्योगिक अपशिष्टों का गंगा में प्रवाहित होना बढ़ते प्रदूषण का कारण है। औद्योगिक कचरे के साथ-साथ प्लास्टिक कचरे की बहुतायत ने गंगाजल को प्रदूषित किया है। जांच में पाया गया कि गंगा में 2 करोड़ 90 लाख लीटर प्रदूषित कचरा प्रतिदिन गिर रहा है। विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश की 12 प्रतिशत बीमारियों की वजह प्रदूषित गंगा जल है। यह चिन्ताजनक है कि गंगाजल न पीने के योग्य रहा, न स्नान के योग्य और न ही सिंचाई के योग्य रहा है। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार गंगा के जल में आर्सेनिक, फ्लोराइड एवं क्रोमियम जैसे जहरीले तत्व बड़ी मात्रा में मिलने लगे हैं
नदी में ऑक्सीजन की मात्रा में आर्इ् कमी
केन्द्रीय जल आयोग की ताजा रिपोर्ट के अनुसार गंगा का पानी तो प्रदूषित हो ही रहा है, साथ ही बहाव भी कम होता जा रहा है। यदि यही स्थिति रही तो गंगा में पानी की मात्रा बहुत कम व प्रदूषित हो जाएगी। गंगा के घटते जलस्तर से सभी परेशान हैं। गंगा नदी में ऑक्सीजन की मात्रा भी सामान्य से कम हो गई है। वैज्ञानिक मानते हैं कि गंगा जल में बैक्टीरियोफेज नामक विषाणु होते हैं, जो जीवाणुओं व अन्य हानिकारक सूक्ष्म जीवों को समाप्त कर देते हैं किन्तु प्रदूषण के चलते इन लाभदायक विषाणुओं की संख्या में भी काफी कमी आई है। इसके अतिरिक्त गंगा को निर्मल व स्वच्छ बनाने में सक्रिय भूमिका अदा कर रहे कछुए, मछलियाँ एवं अन्य जल-जीव समाप्ति की कगार पर हैं। गंगा के जल में आर्सेनिक, फ्लोराइड एवं क्रोमियम जैसे जहरीले तत्व बड़ी मात्रा में मिलने लगे हैं, जोकि चिंता का विषय है। पर्यावरणविदों एवं वैज्ञानिकों के अनुसार जब तक गन्दे नालों का पानी, औद्योगिक अपशिष्ट, प्लास्टिक कचरा, सीवेज, घरेलू कूड़ा-करकट पदार्थ आदि गंगा में गिरते रहेंगे, तब तक गंगा का साफ रहना मुश्किल है।