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प्रवासी भारतीय दिवस : परदेशी हृदय की कोटरों में बंद 'काशी कुंभ' का अमृत आनंद

प्रवासियों को भले प्रयागराज कुंभ में गोता लगाने की कामना रही हो मगर दुनिया की प्राचीन धर्मनगरी में तीर्थराज की डगर पर बढऩे से पहले ही इसका अहसास करा दिया।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Wed, 23 Jan 2019 10:35 PM (IST)Updated: Thu, 24 Jan 2019 11:05 AM (IST)
प्रवासी भारतीय दिवस : परदेशी हृदय की कोटरों में बंद 'काशी कुंभ' का अमृत आनंद
प्रवासी भारतीय दिवस : परदेशी हृदय की कोटरों में बंद 'काशी कुंभ' का अमृत आनंद

वाराणसी [प्रमोद यादव]। मान-सम्मान के जतन में  पराया कर अपना वतन दूर देश जा बसे प्रवासियों को भले प्रयागराज कुंभ में गोता लगाने की कामना रही हो मगर दुनिया की प्राचीन धर्मनगरी में तीर्थराज की डगर पर बढऩे से पहले ही इसका अहसास करा दिया। अपनापा और सत्कार के साथ ही निरंतर बरसे प्रेम रस से बनारस में ही ग्रह नक्षत्रों के योग छह या बारह बरस में बनने वाले कुंभ से छलकती बूंदों में भीगने का का आभास पा लिया। अगवानी में घाट से हाट तक जगमग और नगर के इस ओर से उस छोर तक लोक रंग की छमक। टेंट सिटी से लेकर हस्तकला संकुल हो या सारनाथ या गंगा के घाट-हाट, स्वागत में बिछे पलक पांवड़े और अफसरों संग बनारसीजन भी स्वागत में अकवार फैलाए खड़े। भाव गंगा की यह डोर प्रवासी मन की यमुना में मिली और परदेशी हृदय की कोटरों में बंद हो सदा के लिए आबाद हो चली। अब हृदय में इस हिलोर को सहेजे प्रवासी प्रयागराज जाएंगे और कुंभ से कुंभ का मिलन कराएंगे। 

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महात्मा गांधी के अफ्रीका से वतन लौटने की याद में नौ जनवरी का मान प्रवासी भारतीय दिवस का है। वर्ष 2003 में 'अटल संकल्पों' के साथ इसे भव्य आयोजन का रूप दिए जाने के बाद यह पहला मौका था जब इसे 12 दिन आगे बढ़ाया गया। दरअसल, दूर देश में बसने के बाद भी भारतीय दिलों में पीढिय़ों से रचे-बसे संस्कार की पुकार पर सरकार ने यह सरोकार दिखाया। काशी में दिवस विशेष, प्रयागराज में कुंभ व आजादी का जश्न यानी गणतंत्र दिवस की तिथियों का अनूठा संयोग कराया। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने मंच से इसका खुलासा भी किया, कहा प्रवासी दिवस तो हर दूसरे साल नौ जनवरी को ही मनाया जाता है लेकिन इस बार कई भाइयों ने 15 जनवरी से शुरू हो रहे कुंभ का दर्शन करने की भी इच्छा सामने जताई तो यह तिथियां निकल कर सामने आईं।

इसे लेकर प्रवासियों में उत्साह भी कम न रहा लेकिन बनारस की धरती से जब अपना देश और नित बदलता परिवेश देखा तो काशी में ही कुंभ हो गया। केंद्र व प्रदेश सरकार के साथ मुख्यमंत्री से लेकर देश के प्रधानमंत्री तक ने तो यह सब दिखाया ही टीएफसी-क्रीड़ा संकुल से लेकर पूरे शहर में उन्हें बनारस के रूप में ज्ञान के साथ ही विज्ञान को आत्मसात किए समूचे भारत की झलक नजर आई। तीन दिनों तक विभिन्न सत्रों में चले चार सत्रों में भी ज्ञान-विज्ञान-राष्ट्र उत्थान और योगदान की चर्चा ने भी अपने देश की माटी के प्रति कुछ करने का भाव जगाया। पुरनिये तो पहले से ही फिदा लेकिन नई पीढ़ी को भी नया भारत नजर आया जिसमें अपनी संस्कृति-संस्कार और दिलों के तार में अपनों के प्रति प्यार व आतिथ्य का फुल करेंट दौड़ता महसूस कर लिया।

इससे इस तरह समझ सकते हैं कि आस्ट्रेलिया से आए युवा प्रवासियों ने सीएम को संभावनाएं तलाशने के लिए बुलावा दे दिया तो सुझाव-सलाह की चर्चा के बीच तकनीकी सहयोग आदि के मिले प्रस्तावों को भी हाथों हाथ लिया। प्रवासियों के दिलों में बही भाव गंगा का प्रवाह इससे ही समझ सकते हैं कि अबू धाबी से आए केरल के महेश रामनुजम ने तीन दिनी काशीवास के बाद बेबाकी से कहा, यहां आकर धन्य हो गया। न्यू जर्सी से आए डा. सतीश मलिक दस साल बाद विकास गंगा का प्रवाह देख दंग रहे। मारीशस से आए जितेंद्र को इस शहर में अपने घर की फीलिंग आती है, उन्हें लगता है यहीं के वासी हैं। कैलिफोर्निया के वेंकी को तो इतना मजा आया जो कभी अमेरिका में न पाया। 


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