Prakash Veer Shastri Birth Anniversary : बीएचयू के वीर ने सबसे पहले संसद में अनुच्छेद 370 हटाने का लाया था प्रस्ताव
कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने का प्रस्ताव सबसे पहले संसद में भूतपूर्व सांसद प्रकाशवीर शास्त्री ने लाया था। बहुत ही दमदारी के साथ यह प्रस्ताव रखा मगर तात्कालिक प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने प्रस्ताव को रद्द करा दिया और कुछ ही समय में देश में आपातकाल लग गया
वाराणसी, जेएनएन। कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने का प्रस्ताव सबसे पहले संसद में भूतपूर्व सांसद प्रकाशवीर शास्त्री (जन्म - 30 दिसंबर, 1923 (अमरोहा ) देहांत - 23 नवंबर, 1977 (उत्तर प्रदेश) ने लाया था। बहुत ही दमदारी के साथ यह प्रस्ताव रखा, मगर तात्कालिक प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने प्रस्ताव को रद्द करा दिया और कुछ ही समय में देश में आपातकाल लग गया। हालांकि इसके बाद यह राजनीति, राष्ट्रवाद व देश की अखंडता का मुद्दा बन गया। यह बहुत कम लोगों को ही पता है कि प्रकाशवीर में हिंदुत्व और वैदिक ज्ञान का आधार तत्व बीएचयू और संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से ही पड़ा था। उन्होंने बीएचयू से बी ए और संपूर्णानंद से शास्त्री की विद्या ग्रहण की थी।
बीएचयू में सामाजिक विज्ञान संकाय के डीन प्रो. कौशल किशोर मिश्रा के अनुसार स्वतंत्र या निर्दलीय सांसद के रूप में उन्होंने केवल अनुच्छेद 370 ही नहीं, बल्कि हिंदू धर्म प्रोटेक्शन को भी प्राइवेट बिल के रूप में संसद में लाया था। इंदिरा गांधी इसे अस्वीकार कर दिया, जिसके बाद की राजनीति ने इन दोनों मुद्दों अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठा दिया, जिसकी परिणीति आज हमारे सामने है। भारत से खुद को अलग कर चलने वाला कश्मीर आज हमारे अभिन्न अंग के रूप में विद्यमान है। प्रकाश शास्त्री पहले प्रकाश त्यागी के नाम से जाने जाते थे, मगर बनारस के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से दो वर्षीय शास्त्री की डिग्री हासिल करने के बाद उन्होंने अपने नाम के आगे शास्त्री की उपाधि धारण कर ली। वहीं उन्होंने बीएचयू के सामाजिक विज्ञान संकाय में भी बी ए कोर्स में प्रवेश लिया, लेकिन किसी कारण से वह पूरा नहीं कर सके।
महमाना भी हुए थे विद्वता से प्रभावित
वर्ष 1940 में प्रकाश शास्त्री की विद्वता से प्रभावित होकर हिंदू महासभा में आमंत्रित किया, मगर वह आर्य समाज व वेदों की सेवा के लिए स्वयं को समर्पित कर चुके थे। हालांकि महामना के आग्रह पर व हिंदू महासभा और आर्य समाज के बीच पुल का काम करते रहे। वर्ष 1958 में पहली बार निर्दलीय सांसद चुने गए और 1977 तक लगातार सांसद रहे। आपातकाल के दौरान शिक्षा मंत्री प्रतापचंद्र चंदर जब बीएचयू में आए थे, तब प्रकाश शास्त्री कैंपस में ही थे और आपातकाल के विरोध में छात्रों का नेतृत्व किया था। बनारस में रहते हुए उन्होंने कई क्रांतिकारी आंदोलनों भी भाग लिया था, जिसमें अंग्रेजों ने कई बार कोड़ों से पीटा था। कश्मीर को वैधानिक रूप से भारत का हिस्सा बनाने के लिए उन्होंने भारतीय जनसंघ के पौधे को सीचा था, जो कि बाद में भारतीय जनता पार्टी के रूप में बनी और तब से अनुच्छेद 370 का मुद्दा जीवंत रहा। प्रकाशवीर सांसद रहते जब कश्मीर और धर्मांतरण पर मुखर हो रहे थे, तब वर्ष 1977 में एक रेल दुर्घटना के दौरान दुनिया को अलविदा कह गए।