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पावर इंजीनियर फेडरेशन ने कहा - 'बिजली उत्पादन ठप होने के पीछे राज्य का शीर्ष प्रबंधन है दोषी'

देश के अधिकांश बिजली घरों ने इस मापदंड का पालन नहीं किया। अप्रैल से जून के बीच का वह समय होता है जब ताप बिजली घरों में कोयला स्टाक कर लिया जाता है। कारण कि जुलाई अगस्त सितंबर में बरसात के कारण कोयला अनुपलब्ध रहता है।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Tue, 12 Oct 2021 09:49 AM (IST)Updated: Tue, 12 Oct 2021 09:49 AM (IST)
पावर इंजीनियर फेडरेशन ने कहा - 'बिजली उत्पादन ठप होने के पीछे राज्य का शीर्ष प्रबंधन है दोषी'
कोयला संकट के कारण बिजली उत्पादन प्रभावित होने से यूपी ही नहीं देश भी चिंतित है।

वाराणसी, जागरण संवाददाता। कोयला संकट के कारण बिजली उत्पादन प्रभावित होने से यूपी ही नहीं देश भी चिंतित है। संकट दूर होने के बजाय और गहराता जा रहा है। हल निकालने के लिए केंद्र स्तर पर बैठकें जारी है। बिजली व्यवस्था के जानकारों का कहना है कि यह संकट अचानक उत्पन्न नहीं हुआ है। समय रहते यदि इस समस्या का निराकरण कर लिया गया होता तो हाय-तौबा नहीं मचता। केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के मापदंडों के अनुसार ताप बिजली घरों में न्यूनतम 20 दिन का कोयला भंडार में होना चाहिए।

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देश के अधिकांश बिजली घरों ने इस मापदंड का पालन नहीं किया।अप्रैल से जून के बीच का वह समय होता है, जब ताप बिजली घरों में कोयला स्टाक कर लिया जाता है। कारण कि जुलाई, अगस्त, सितंबर में बरसात के कारण कोयला अनुपलब्ध रहता है। कोल इंडिया से कोयले की उपलब्धता सुधारने में अभी कम से कम 20 दिन का समय लगेगा। ऐसे में बिजली संकट बने रहने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। आल इंडिया पावर इंजीनियर फेडरेशन के चेयरमैन शैलेंद्र दुबे कहते हैं कि बरसात के चलते खदानों में कोयला गीला हो जाता है। यह बात जानते हुए समय से पर्याप्त कोयला भंडार न करने के लिए सीधे तौर पर राज्य का शीर्ष प्रबंधन दोषी है। केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण को भी इसकी मानीटरिंग करनी चाहिए थी। जो नहीं किया गया। कोयला संकट का फायदा उठाकर निजी घराने बिजली की कीमत 21 रुपये प्रति यूनिट वसूल रही हैं। यदि सरकार महंगी बिजली खरीदेंगी तो भार उपभोक्ता पर ही पड़ेगा। उन्होंने बताया कि कोरोना संक्रमण कम होने से इस साल बिजली की मांग 16 फीसद बढ़ी है। जिससे कोयले की मांग भी बढ़ी है।

31 मार्च 2021 तक पावर कॉरपोरेशन कंपनियों पर कोल इंडिया का कुल बकाया 21619.71 करोड़ रुपये पहुंच गया है । इसमें बात यूपी की करें तो कोल इंडिया का 1400 करोड़ रुपये बकाया है। वहीं सरकारी विभागों पर बिजली उपभोग का करीब 15 हजार करोड़ रुपये बकाया है । सरकारी विभागों का बकाया यदि सरकार समय से चुका देती तो यह दुर्दिन नहीं देखना पड़ता। उनका कहना है कि भारत में प्रतिदिन लगभग चार अरब यूनिट बिजली की खपत होती है। जिसमें 72 फीसद बिजली ताप घरों से खरीदी जाती है।

बंद हो गयी चार हजार मेगावाट की निजी इकाई : फेडरेशन चेयरमैन शैलेंद्र दुबे का कहना है कि कोयला संकट का एक अन्य कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में कोकिंग कोल की कीमत में भारी इजाफा होना बताया जाता है। गत दो महीनों में कोकिंग कोल की कीमत 220 डालर प्रति टन से बढ़कर 430 डालर प्रति टन पहुंच गई है। विदेशी कोयला महंगा होने की बात कह टाटा ने कोएस्टल क्षेत्र के मूंदड़ा स्थित चार हजार मेगावाट के ताप बिजली घर को बीते 18 सितम्बर से पूरी तरह बंद कर रखा है। टाटा का कहना है कि पूर्व में किए गए पावर परचेज एग्रीमेंट की दरों में बढ़ोतरी की जाए। कोयले की कीमतें बढ़ने से उनको नुकसान हो रहा है। अधिकांश निजी क्षेत्र के बिजली घरों का यही हाल है।

बिजली उत्पादन इकाइयों पर तीनतरफा मार : शैलेंद्र दुबे का कहना है कि बिजली उत्पादन, पारेषण इकाइयों पर तीन तरफा मार पड़ रही है। पहला वितरण कंपनियों को जो बिजली दिए हैं, उसका बकाया चल रहा है। बकाए की रकम न मिलने से पूंजी पर असर पड़ रहा है और वे आयकर रिटर्न भरते हुए टैक्स की अदायगी भी कर रहे हैं। ऐसे में राज्य सरकार यदि सरकारी विभागों के बिजली उपभोग की रकम को अदाकर देती तो कम से कम यूपी में संकट का समाधान हो सकता है। यूपी के बिजली घरों से सबसे सस्ती लगभग दो से तीन ही रुपये प्रति यूनिट बिजली मिलती है। लिहाजा कहने में संकोच नहीं है कि मौजूदा संकट के लिए सीधे तौर पर प्रबंधन की अक्षमता और संवेदनहीनता ही मूल कारण है।


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