पूनम के आंगन में आयीं स्वर्णिम खुशियां
वाराणसी : बनारस मुख्यालय से करीब आठ किलोमीटर दूर दांदूपुर नामक छोटा सा गांव है। यहां क
वाराणसी : बनारस मुख्यालय से करीब आठ किलोमीटर दूर दांदूपुर नामक छोटा सा गांव है। यहां की रहने वाली पूनम यादव ने रविवार को ऑस्ट्रेलिया के गोल्ड कोस्ट में चल रही 21वें कामनवेल्थ गेम्स में 69 किलोग्राम भार वर्ग में कुल 220 किलोग्राम भार उठा कर भारत के लिए स्वर्ण पदक जीता। इससे पहले वर्ष 2014 में स्कॉटलैंड के ग्लासगो में आयोजित कामनवेल्थ गेम्स में पूनम ने 63 किलोग्राम भार वर्ग में कांस्य पदक जीता था। एक समय पैसे-पैसे की तंगी थी : पूनम की मां उर्मिला ने बताया कि जब पूनम ग्लासगो में कांस्य पदक जीत कर गांव आई थी, तब हम लोगों के पास इतने पैसे भी नहीं थे कि हम लोग मिठाई बाट सके। उस समय पूनम के पिता ने कहीं से कुछ रुपये की व्यवस्था की। तब मिठाई आई और घर में खुशिया मनाई गयी। बहुत कष्ट में व्यतीत किया जीवन : पूनम के परिवार के नाम मात्र 10 बिस्वा जमीन है तथा कुछ भैंस और बकरी है। इसकी के सहारे घर के मुखिया कैलाश नाथ यादव चार बेटियों और दो बेटों का पालन पोषण करते थे। कभी-कभी फसल खराब हो जाती थी तो स्थिति बहुत खराब हो जाती थी। बेटियों के खिलाने पर परिवार और आस-पास के लोग ताने मारते थे, वो अलग। वर्ष 2012 से पूनम ने शुरू किया खेल : पूनम ने अपने खेल की शुरुआत वर्ष 2011 से की थी। गरीबी के कारण पूनम को पूरी डाइट नहीं मिल पाती थी। पूनम के पिता कैलाश ने अपने गुरु स्वामी अड़गड़ानंद को इसकी जानकारी दी। उन्होंने स्थानीय समाजसेवी सतीश फौजी के पास उनको भेजा। सतीश ने पूनम की पूरी जिम्मेदारी उठाने का वायदा किया। उसके बाद पूनम ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। ग्लासगो भेजने के लिए बेच दी दो भैंस : वर्ष 2014 में ग्लासगो जाने वाली भारतीय टीम में चयन हो गया था। उससे पहले की तैयारी के लिए उनके पास पैसे नहीं थे। जब उनके घर वालों ने दो भैंसों को बेच दिया और दोस्तों-परिवार वालों से कर्ज लिया। घर आने पर फरा खाने की करती है जिद : पूनम की मां ने बताया कि पूनम अधिकतर खेल के बाहर रहती है लेकिन जब भी गांव आती है तो सबसे पहले फरा खाने की जिद करती है। उसको खेल के अलावा कुछ नहीं आता है। न तो सिनेमा देखती है न टेलीविजन। सरकार ने दी टीटीई की नौकरी : ग्लासगो में कांस्य पदक जीतने के कुछ समय बाद पूर्वोत्तर रेलवे ने पूनम को नौकरी दी। वर्तमान समय में पूनम पूर्वोत्तर रेलवे के वाराणसी मंडल में टीटीई पद पर कार्यरत हैं। दो भाई और दो भाई भी है खिलाड़ी : पूनम के पांच बहने है। जिसमें से पूनम के अलावा शशि और पूजा राष्ट्रीय स्तर की भारोत्तोलक है। एक भाई आशुतोष एथलीट और एक भाई हॉकी खिलाड़ी हैं। पूरे घर का ध्यान रखती है पूनम
पूनम की बड़ी बहनों शशिकला और किरन ने बताया कि भले ही पूनम खेल के कारण घर से दूर रहती है लेकिन फोन पर सबका हालचाल लेती रहती है। उसको भर प्रयास रहता है कि घर में कोई कमी न हो। साथ ही अन्य बहनें शशि और पूजा कैसे खेल रही है। उनका प्रदर्शन कैसा चल रहा है। सबकी जानकारी लेती रहती है। भाईयों ने भारोत्तोलन में रूचि नहीं ली। तब उसने एक भाई को एथलेटिक्स और हॉकी खेलने भेजा। हॉकी खेलने वाला भाई अभिषेक जूनियर नेशनल के शिविर में था। पुरस्कारों से मिले पैसों से घर बनवाया
ग्लासगो कामनवेल्थ गेम्स में पदक जीतने पर मिले धनराशि, रानी लक्ष्मीबाई पुरस्कार और यश भारती पुरस्कार से मिले रुपयों से उसने गांव में ही घर बनवाने का फैसला किया। पहले टीन का मकान था। आज दुमंजिला मकान बन कर तैयार हो गया है। खेती से है लगाव
पूनम के चाचा गुलाब यादव ने बताया कि पूनम को शुरू से ही खेती करने का शौक था। समय मिलने पर वह खेल में फावड़ा चलाती था। इसी वजह से वह शारीरिक रूप से तगड़ी भी है। हम लोगों को उम्मीद है हमारी भतीजी ओलंपिक में भी पदक जीतेगी। पूनम शानदार भारोत्तोलक
पूनम का वेट उठाने का तरीका बहुत ही स्वाभाविक है। इसी वजह से वह हर प्रतियोगिता में पदक जीतती है। मैने और पूनम ने काफी साथ-साथ अभ्यास किया है। वह ओलंपिक में भी पदक जीतने का दावा रखती है।
-स्वाति सिंह, कांस्य पदक विजेता, ग्लासगो कामनवेल्थ गेम्स बनारस का नाम रोशन किया
पूनम ने स्वर्ण पदक जीत कर दिखा दिया कि पूर्वाचल में प्रतिभाशाली खिलाड़ियों की कमी नहीं है। आगे भी यहां से कई ओर खिलाड़ी निकलेंगे। कामनवेल्थ गेम्स में यहीं की बरखा सोनकर बास्केटबॉल में और ललित उपाध्याय हॉकी में भारत की ओर से हिस्सा लेंगे।
-जिला ओलंपिक संघ के पदाधिकारी