यूं ही नहीं पहुंचा बनारस दुनिया के सबसे अधिक प्रदूषित शहरों की सूची में तीसरे पायदान पर
पुरातन नगरी काशी की आबो-हवा में प्रदूषण का स्तर इतना बढ़ गया है कि यह शहर दुनिया के सबसे अधिक प्रदूषित शहरों की सूची में तीसरे पायदान पर पहुंच चुका है।
वाराणसी [अनुराग सिंह]। पुरातन नगरी काशी की आबो-हवा में प्रदूषण का स्तर इतना बढ़ गया है कि यह शहर दुनिया के सबसे अधिक प्रदूषित शहरों की सूची में तीसरे पायदान पर पहुंच चुका है। मगर परेशानी यहीं खत्म नहीं होती। इसका असर यहां के तापमान पर भी पड़ा है, जिससे मृत्युदर में इजाफा हुआ है। यह खुलासा बीएचयू के पर्यावरण एवं धारणीय विकास संस्थान स्थित डीएसटी-महामना जलवायु परिवर्तन उत्कृष्ट शोध केंद्र की शोध छात्रा निधि सिंह ने किया है। उनके मुताबिक काशी में पर्यावरण असंतुलन के कारण अधिकतम व न्यूनतम तापमान में अंतर पाए गए हैं।
शोधार्थी निधि ने वर्ष 2009 से 2016 तक विभिन्न कारणों से हुई मृत्यु का आकड़ा विभिन्न स्रोतों से जुटाया। इसके बाद मौसम विभाग से तापमान, बारिश, आद्रता तथा केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से वायु प्रदूषण का आकड़ा लिया। बढ़ते व घटते तापमान की वजह से मृत्युदर में हो रहे परिवर्तन को लेकर शोध किया गया। शोध में पाया गया कि तापमान में एक डिग्री अंतर कम होने पर मृत्युदर 0.61 फीसद बढ़ जाती है।
बढ़ते तापमान (हीट वेव) की वजह से 12 फीसद व घटते तापमान (कोल्ड वेव) की वजह से 6 फीसद अधिक हुई मृत्यु। |
शून्य से चार वर्ष की आयु में तापमान वृद्धि की वजह से 33 फीसद अधिक मौतें, जो अभी तक का सर्वाधिक है। |
हीट वेव की वजह से महिलाओं में 20 फीसद अधिक मृत्युदर। |
45 से 64 वर्ष के आयु वर्ग वाले लोगों में कोल्ड वेव की वजह से हुई हैं 16 फीसदी अधिक मौतें। |
कोल्ड वेव के कारण पुरुष तथा महिला दोनों में 5 फीसद अधिक मृत्युदर की गई दर्ज। |
आर्थिक रूप से कमजोर लोगों में बढ़ते तापमान की वजह से 12 फीसद तक अधिक हुई मौतें। |
भारत में पहली बार हुआ शोध : शोध छात्रा निधि सिंह ने देश में पहली बार इस तरह के शोध का दावा किया है जिसमें अत्यधिक बढ़ते एवं गिरते तापमान के कारण बढ़ रहे मृत्युदर का आंकलन किया गया। साथ ही तापमान अंतर को भी देखा गया।
शोध टीम के सदस्य : टीम में शोध छात्रा निधि सिंह के अलावा आला महाविश, डा. तिर्थाकर बनर्जी, प्रो. आरके मल्ल तथा सेंट जॉस मेडिकल कॉलेज, बेंगलुरु के संतू घोष शामिल हैं।
सरकार द्वारा उठाए गए कदमों से सुधार : शोधकर्ताओं का मानना है कि पिछले दस वर्षो में सरकार के लगातार प्रयासों ने मृत्यु दर में बढ़ोत्तरी पर काफी हद तक लगाम लगाया है।
अंतरराष्ट्रीय जर्नल में हुआ प्रकाशित : इस शोध को जुलाई 2017 में शुरू किया गया और सितंबर 2018 में इसे प्रस्तुत किया गया। शोध पत्र को फरवरी 2019 में अंतरराष्ट्रीय जर्नल साइंस ऑफ द टोटल इनवायरमेंट ने प्रकाशित किया था।