लोकसभा चुनाव - कांग्रेस का चुनाव घोषणा पत्र में किया गया वादा पहुंचा देशद्रोह कानून तक
2016 में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय परिसर का वह दृश्य याद करिए जब प्रदर्शन के दौरान छात्रों के एक गुट ने देश विरोधी नारे लगाए थे।
वाराणसी, [रत्नाकर दीक्षित]। 2016 में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय परिसर का वह दृश्य याद करिए जब प्रदर्शन के दौरान छात्रों के एक गुट ने देश विरोधी नारे लगाए थे। नारा था 'भारत तेरे टुकड़े होंगे, इंशाअल्लाह-इंशाअल्लाह'...। विवि परिसर में घटी इस सनसनीखेज घटना से सभी हतप्रभ थे। किसी ने सोचा भी नहीं था कि शिक्षा के इतने बड़े मंदिर देश विरोधी नारे लगाए जाएंगे। वैसे घटना को दिल्ली पुलिस ने बहुत ही गंभीरता से लिया और आनन-फानन कन्हैया कुमार व उमर खालिद समेत अन्य लोगों के खिलाफ चार्जशीट दायर कर दी थी। उसके बाद तो मामले ने जबर्दस्त तूल पकड़ लिया था। उस समय राष्ट्रवाद की दो विचारधारा निकल पड़ी थी। एक वह जो प्रदर्शनकारियों के खिलाफ थी और दूसरी कन्हैया कुमार एंड गैंग के साथ थी। उसके पीछे तर्क यह था कि प्रदर्शन के दौरान अभिव्यक्ति की आजादी होनी चाहिए। कांग्रेस ने इस मुद्दे को एकबार फिर हवा दे दी है। कांग्रेस के घोषणापत्र में देशद्रोह कानून व अफस्पा में संशोधन के वादे को लेकर जमकर बहस हो रही है। कोई पक्ष तो कोई विपक्ष में तर्क प्रस्तुत कर रहा है। बीएचयू में छात्रों ने इसे चुनावी चर्चा बना लिया है।
देशद्रोह कानून के तहत होने वाले कार्रवाई के आंकड़ों पर गौर करें तो बहुत ही चौंकाने वाले हैं। 2014 से 2016 के बीच देश में कुल 179 लोगों को इस कानून के तहत गिरफ्तार किया गया था। लेकिन, दोषी महज दो ही साबित हुए। बाकी पर पुलिस दोष साबित करने में नाकाम रही। ऐसे में एक पक्ष का यह तर्क है कि राजनीतिक मामलों में भी इस कानून का दुरपयोग होता है। खैर मामला चाहे जो हो लेकिन कांग्रेस इन कानूनों में संशोधन करने का वादा कर आमजन का ध्यान आकृष्ट किया है। विरोधी दल खासकर भारतीय जनता पार्टी इन वादों पर आक्रामक है। इस मुद्दे पर कांग्रेस को घेरकर राष्ट्रवाद को उभार रही है। अन्य दल भी इसे मुद्दा बनाए हुए हैं। आम जनता के बीच इस वादे के पक्ष व विपक्ष में अपने-अपने ढंग से तर्क प्रस्तुत किए जा रहे हैं।
बीएचयू छात्र राजन सिंह का मानना है कि इन देशद्रोह एक्ट में संशोधन करना कहीं से देशहित में नहीं है। क्योंकि कानून में ढील देने से अपराधियों का मनोबल बढ़ेगा। उन्हीं की हां में हां मिलाते हुए ... ने कहा कि दरअसल कांग्रेस शुरू से तुष्टीकरण की नीति पर चली है। देशद्रोह कानून व अफस्पा में संशोधन करना भी इसी नीति का द्योतक है। एक खास वर्ग के मत को हासिल करने के लिए यह पूरी कवायद है। लेकिन, आकिब अली इससे इत्तेफाक नहीं रखते, कहते हैं कि इसके बदले में कई और कानून हैं जिसके जरिए देशद्रोहियों और आतंकियों पर नकेल कसी जा सकेगी। हर उस कानून में संशोधन होना चाहिए जिसमें आम नागरिकों में असुरक्षा की भावना पनपती है। आकिब के इन बातों को विवेक कुमार ने खारिज कर दिया। बोले कि एक्ट कितना की कड़ा क्यों न हो उससे कोई दिक्कत नहीं होती। मुश्किल तब खड़ी होती है जब उसका क्रियान्वयन होता है। अब पारखी नजर यह होनी चाहिए कि क्रियान्वयन वाकई दोषी के खिलाफ हो रही है अन्यथा कोई निर्दोष फंस रहा है। मुद्दा जांच तक ही सीमित है। यदि ऐसा नहीं होता तो अब तक इस एक्ट के तहत पकड़े गए लोगों में कोर्ट ने केवल दो को ही दोषी माना।
शुभम व रितिक जायसवाल देशद्रोह कानून में संशोधन के पक्ष में नहीं हैं। कहते हैं कि इस कानून में संशोधन करने से राजद्रोह जैसे अपराध में बेतहाशा वृद्धि होगी। कांग्रेस पर आरोप लगाया कि इसके जरिए वह तुष्टीकरण की राह पर है। वहीं दूसरी ओर पवन तुष्टीकरण के आरोप को सिरे से खारिज कर देते हैं। उनका मानना है कि देशद्रोह व अफस्पा कानून में संशोधन करने से निर्दोष लोगों को राहत मिलेगी।
इस मुद्दे की शुरुआत चर्चा के रूप में हुई। लेकिन, कुछ ही देर बाद आरोप-प्रत्यारोप की सीमा में सभी वक्ता आ गए। बात धीरे-धीरे बढऩे लगी और चर्चा बहस में तब्दील में हो गई। छात्र खेमे में बंटने लगे। उसी समय अचानक विभाग से छात्रावास प्रोफेसर आ गए और बहस अचानक चुप्पी में तब्दील हो गई।