बाहुबली विधायक विजय मिश्र के खिलाफ सबूत पुख्ता करने में पुलिस को लगे सात दिन
भले ही बाहुबली विधायक विजय मिश्र को सेंट्रल जेल नैनी भेजने में पुलिस सफल हो गई लेकिन उनके खिलाफ पुख्ता साक्ष्य जुटानेे में पूरे सात दिन लगे।
भदोही, जेएनएन। भले ही बाहुबली विधायक विजय मिश्र को सेंट्रल जेल नैनी भेजने में पुलिस सफल हो गई लेकिन उनके खिलाफ पुख्ता साक्ष्य जुटानेे में पूरे सात दिन लगे। चूंकि मामला मकान पर अवैध कब्जा, चेक पर जबरन हस्ताक्षर कराने और फर्म हड़पने का था, इसलिए पुलिस बिना साक्ष्य उन पर हाथ डालना नहीं चाहती थी। पुलिस को संदेह था कि चूंकि शिकायतकर्ता कृष्ण मोहन तिवारी विधायक के रिश्तेदार हैैं और पहले दोनों में गहरे संबंध रहे हैैं इसलिए पीडि़त मुकर सकता है। जब कृष्ण मोहन तिवारी ने कोर्ट मेें धारा 164 के तहत कलमबंद बयान दे दिया तो विधायक को गिरफ्तार करने की योजना बनाई गई।
एक सप्ताह तक पुलिस सभी आरोपों में साक्ष्य जुटाने की कसरत करती रही। गिरफ्तारी की कार्रवाई को बेहद गोपनीय रखा गया था। सूचना लीक नहीं हो जाए, इसलिये विधायक मिश्र के गनर को भी कुछ नहीं बताया गया। जब गनर को विधायक ने छोड़ दिया और उज्जैन निकल पड़े तो गनर ने यह जानकारी एसपी को साझा की। विधायक के पुलिस के चंगुल से निकलने के संदेह में एसपी रामबदन सिंह को मध्य प्रदेश पुलिस से मदद मांगनी पड़ी। उन्हेंं गिरफ्तार करने के आदेश दिए थे। इसके बाद उन्हेंं आगर (मालवा जिले) में हिरासत में ले लिया गया।
मुकदमा दर्ज होते ही हो सकती थी गिरफ्तारी
विधायक विजय मिश्र, उनकी पत्नी (सोनभद्र-मीरजापुर) एमएलसी रामलली मिश्र और उनके कारोबारी पुत्र विष्णु मिश्र के खिलाफ मुकदमा पांच अगस्त को दर्ज हुआ था। पुलिस चाहती तो तीनों लोगों को गिरफ्तार कर सकती थी। वांछित होने के बाद भी गनर को सूचना नहीं दी गई। कानूनविद की मानें तो सामान्य केस में पुलिस तत्काल गिरफ्तारी कर लेती है। चूंकि प्रकरण बाहुबली विधायक से जुड़ा था इसलिए पुलिस ने फूंक-फूंक कदम कर चले। अदालत में अवकाश होने के कारण पुलिस ने 12 अगस्त को शिकायतकर्ता का बयान दर्ज कराया। इसके पश्चात कार्रवाई में पुलिस जुट गई।
शिकायतकर्ता का कोर्ट में 164 का बयान दर्ज कराने के बाद सबूत पुख्ता कर लिया गया
विधायक की गिरफ्तारी उसी दिन हो सकती थी जिस दिन उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया था। शिकायतकर्ता का कोर्ट में 164 का बयान दर्ज कराने के बाद सबूत पुख्ता कर लिया गया। यदि वांछित होने की सूचना सुरक्षा गार्ड को दी गई होती तो सूचना लीक होने की आशंका थी, इसलिए उसे जानकारी नहीं दी गई।
- रामबदन सिंह, पुलिस अधीक्षक।