घंटा-घडिय़ाल व ताली-थाली बजाइए, कोरोना से पंजा लड़ाइए, ध्वनि तरंगों का स्वास्थ्य से भी सरोकार
आयुर्वेद में घंटा ध्वनि को रोगाणुनाशक बताया गया है। घंटा के प्रकारों में झांझ मंजीरा घडिय़ाल विजयघंट और क्षुद्रघंट इन पांच प्रकारों का वर्णन है।
वाराणसी, जेएनएन। आयुर्वेद में घंटा ध्वनि को रोगाणुनाशक बताया गया है। घंटा के प्रकारों में झांझ, मंजीरा, घडिय़ाल, विजयघंट और क्षुद्रघंट, इन पांच प्रकारों का वर्णन है। इसके साथ ही शंखध्वनि को भी अत्यंत प्रभावकारी बताया गया है। प्रधानमंत्री ने रविवार शाम पांच बजे कोरोना सेनानियों का आभार जताने के लिए घंटा-घडिय़ाल, घंटी, ताली- थाली इत्यादि से ध्वनि उत्पन्न करने की बात की है तो सभी ने साथ आने का फैसला कर लिया है।
भौतिकी विभाग, आइआइटी-बीएचयू के प्रो. बीएन द्विवेदी ने सभी से अपील की गई है कि घंटा-घडिय़ाल व ताली- थाली बजाइए और कोरोना भगाइए। बताते हैं कि घंटा- घडिय़ाल बजाने से विशिष्ट प्रकार की ध्वनि तरंगें निकलती हैं। ये तरंगें वायुमंडल के कई हानि कारक तत्वों का विनाश करने में सक्षम होती हैं। अगर ध्वनि तरंगों को बोसान पार्टिकल्स से गुजरती है तो उनमें एक बेहतर संबंध स्थापित होता है। उन्होंने बताया कि ठीक उसी प्रकार घंटे की ध्वनि जब कानों में पड़ती है तो लोगों में एक जुड़ाव की भावना आती है, जिससे रोगों से लडऩे की प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है।
प्रतिरोधक क्षमता में इजाफा करेगी
वैदिक विज्ञान केंद्र के समन्वयक डा. उपेंद्र कुमार त्रिपाठी बताते हैं कि जनता कफ्र्यू में शंख की गूंज वैज्ञानिक तौर पर कोरोना वायरस के खिलाफ हमारी प्रतिरोधक क्षमता में इजाफा करेगी। स्मृति ग्रंथों मुताबिक शंख की ध्वनि से वायुमंडल में मौजूद वायरस व बैक्टिरिया का नास तो होता ही है। साथ में हमारे श्वास प्रक्रिया का पूर्ण व्यायाम हो जाता है। वहीं आयुर्वेद संकाय बीएचयू के प्रमुख प्रो. वाईबी त्रिपाठी बताते हैं कि आयुर्वेद में भी वर्णन है कि घंटा-घडिय़ाल या जश्न मनाने से मन में उत्साह व जोश बढ़ता है। इस तरह के आयोजन से एक अलग ही रोमांच होता है। इसके कारण प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती, जिससे भय व रोग दूर होता है। उन्होंने बताया कि घर में बच्चा पैदा होने पर थाली बजाने की प्रथा सदियों से रही है। यही सूप बजाकर द्ररिद्र भी भगाया जाता है।