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ग्रीन वैक्सीन से पौधे और उनकी पीढि़यां रहेंगी निरोगी, स्वयं की प्रतिरक्षा तंत्र होगी विकसित

हानिकारक वायरस और बैक्टीरिया के हमले से बचाने के लिए जिस तरह बचपन में ही टीका लगा दिया जाता है ठीक उसी तरह अब पौधे ग्रीन वैक्सीन से स्वयं की प्रतिरक्षा तंत्र विकसित कर रोगमुक्त रहेंगे। इस पर प्रयोग भी वाराणसी में शुरू हो चुका है।

By Edited By: Published: Sat, 31 Oct 2020 11:53 PM (IST)Updated: Sun, 01 Nov 2020 10:27 AM (IST)
ग्रीन वैक्सीन से पौधे और उनकी पीढि़यां रहेंगी निरोगी, स्वयं की प्रतिरक्षा तंत्र होगी विकसित
यह शोध वनस्पति विज्ञान के सबसे प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय जर्नल प्लांट सेल में प्रकाशित हुआ है।

वाराणसी (हिमांशु अस्थाना)। हानिकारक वायरस व बैक्टीरिया के हमले से बचाने के लिए जिस तरह बचपन में ही टीका लगा दिया जाता है, ठीक उसी तरह अब पौधे ग्रीन वैक्सीन से स्वयं का प्रतिरक्षा तंत्र विकसित कर रोगमुक्त रहेंगे। बीएचयू के वनस्पति विज्ञानी डा. प्रशांत सिंह ने अपने शोध में ग्रीन वैक्सीन खोज कर बताया है कि पौधों में भी इंसानों की तरह रिसेप्टर होते हैं, जो बाहरी आक्रमण से स्वयं को सावधान रखते हैं। जरूरत थी इनके भीतर छुपी आत्मशक्ति को जागृत करने की। बिना पेस्टिसाइड व जेनेटिकली मोडिफाइड तकनीक के फसल बेहतर ढंग से उपजाने के साथ उत्पादकता बढ़ा सकते हैं।

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यह शोध वनस्पति विज्ञान के सबसे प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय जर्नल प्लांट सेल में प्रकाशित हुआ है। अब इसे आगे बढ़ाते हुए वह ग्रीन स्टार्टअप शुरू कर रहे हैं, जिससे इसका लाभ किसानों को मिले। डा. प्रशांत सिंह के शोध के अनुसार जब बैक्टीरिया (ग्रीन वैक्सीन) को मिट्टी में जड़ के पास सिरिंज से प्रवेश कराते हैं तो पौधों के अन्य भाग में एक अलार्म बज जाता है। जिससे प्लांट डिफेंस हार्मोन 'जसमोनिक एसिड' व रिसेप्टर 'कोरोंटीन इंसेस्टिव' सूचक की तरह पौधों की कोशिकाओं को बैक्टीरिया के खिलाफ सक्रिय कर देते है। ग्रीन वैक्सीन एक पत्ती में भी प्रवेश करा दें तो भी असर पौधे के हर भाग में पहुंचता है।

- नहीं बदलेगा रंग, गंध व स्वाद डा. प्रशांत ने बताया कि बाजरा, गेहूं और टमाटर पर ग्रीन वैक्सीनेशन शोध सफल रहा। इससे रंग-गंध व स्वाद में बदलाव नहीं हुआ। पौष्टिक गुणों में कितना इजाफा हुआ वर्तमान में इसका आकलन हो रहा है।

- वैक्सीन में है एपी जेनेटिक्स की खूबी डा. प्रशांत ने बताया कि वैक्सीन में एपी जेनेटिक्स की खूबी है। एक बार पौधे को वैक्सीन का डोज दे दिया गया तो यह आने वाली हर पीढ़ी में हस्तांतरित होती रहेगी।

- वर्ष 2017 में शुरू किया शोध डा. प्रशांत सिंह ने ब्रिटेन की लैंकेस्टर यूनिवर्सिटी में कुछ साथियों के साथ शोध कार्य वर्ष 2017 में शुरू किया था, जिसमें करीब डेढ़ वर्ष बाद सफलता मिली। उन्होंने बताया कि भारत में अब तक इस शोध की जानकारी लोगों को नहीं हुई है, इसलिए 2019 के अंत में जब बीएचयू में पदस्थ हुए तब से इस पर कक्षाओं के साथ ही स्टार्टअप की कवायद शुरू की है।

- गांव-गांव तक पहुंचेगी यह तकनीक डा. प्रशांत के अनुसार ग्रीन वैक्सिनेशन विधि को किसान भी अपने उपयोग में ला सकते हैं। इन पौधों से तैयार हुए बीज की बुआई कर किसान फसल उत्पादन चक्र को नियमित कर रोगमुक्त खेती कर सकेंगे। वे इसके लिए बीएचयू के बायो नेस्ट प्रोग्राम के तहत जल्द एक स्टार्टअप बनाएंगे और तकनीक को गांव-गांव तक पहुंचाएंगे।


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