परीक्षा परिणाम की मेरिट सूची में सरकारी विद्यालयों की पैठ अब भी है बरकरार
सरकारी विद्यालयों या उनके बच्चों को कहीं से भी कमतर नहीं आंका जा सकता है। परीक्षा परिणाम की मेरिट सूची में सरकारी विद्यालयों की पैठ अब भी बरकरार है।
वाराणसी, जेएनएन। आधुनिकता के इस दौर में शैक्षिक संस्थानों का फोकस शिक्षा की क्वालिटी से अधिक परिवेश पर है। चमचमाते भवन, आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित होने के कारण ज्यादातर अभिभावक अपने बच्चों का दाखिला निजी विद्यालयों में कराना अधिक पसंद करते हैं। हालांकि सभी सरकारी विद्यालय एक जैसे नहीं हैं। संसाधन भले ही कम हों लेकिन कई सरकारी विद्यालय आज भी शिक्षा की गुणवत्ता बनाए हुए हैं।
सीबीएसई हाईस्कूल के परिणाम पर ही गौर करें तो इस बार सेंट्रल हिंदू ब्वायज स्कूल के मयंक कुशवाहा को (495/500) 99 फीसद अंक मिले हैं। वहीं वर्ष 2019 में सेंट्रल हिंदू गर्ल्स स्कूल की पलक सिंह को (495/500) 99 फीसद अंक मिले थे। ऐसे में सरकारी विद्यालयों को कम आंकना ठीक नहीं है। निजी विद्यालयों की तुलना में सरकारी विद्यालयों में शुल्क अब भी काफी कम है और पढ़ाई की गुणवत्ता में भी दम है। सरकारी विद्यालयों में हर वर्ग के बच्चे पढ़ते हैं। इसमें कई ऐसे बच्चे भी शामिल है जिनके पास किताब-कापी खरीदने तक का पैसा नहीं रहता है। ऐसे बच्चे पूरी तरह से स्कूल की पढ़ाई पर निर्भर रहते हैं। कोचिंग-ट्यूशन भी नहीं करते हैं। वहीं दाखिले में आरक्षण के नियमों का पालन किया जाता है। इससे इतर निजी विद्यालयों में आरक्षण का कोई लोचा नहीं रहता है। ज्यादातर अभिभावकों की आर्थिक स्थिति ठीक-ठाक रहती है। बहरहाल कहने का आशय यह है कि प्रतिभाएं दोनों स्तर के विद्यालयों में मौजूद हैं। सरकारी विद्यालयों या उनके बच्चों को कहीं से भी कमतर नहीं आंका जा सकता है। निसंदेह इसका श्रेय बच्चों की मेहनत को जाता है लेकिन विद्यालय के योगदान को भी कमतर नहीं आंका जा सकता है। यदि सरकारी विद्यालयों के बच्चे इसी तरह अपना प्रदर्शन करते रहे तो अभिभावकों की धारणा भी बदलनी तय है।
सीबीएसई ही नहीं इस वर्ष यूपी बोर्ड के हाईस्कूल व इंटर के रिजल्ट पर भी गौर फरमाएं तो राजकीय व अशासकीय विद्यालयों की स्थिति कहीं से कमजोर नहीं है। जनपद के हाईस्कूल व इंटर के टॉप-टेन की सूची में प्रभुनारायण राजकीय इंटर कालेज, हरिश्चंद्र बालिका इंटर कालेज, आर्य महिला इंटर कालेज, महाबोधि इंटर कालेज, अग्रसेन कन्या इंटर कालेज, बलदेव इंटर कालेज जैसे राजकीय व अशासकीय विद्यालयों के विद्यार्थी भी शामिल रहे। इस प्रकार सरकारी विद्यालयों में कुछ सुस्ती जरूर महसूस की जा रही है लेकिन उनके बच्चों की मेधा पर सवाल नहीं खड़े किए जा सकते हैं।