फांसी में विलंब से दुखी हैं निर्भया के माता-पिता, मन में मतदान को लेकर नहीं है उत्साह
उस वक्त पूरा देश हिल गया था जब दिल्ली में गैंगरेप की शिकार निर्भया के साथ दर्दनाक घटना घटी। वह काला दिन 16 दिसम्बर 2012 था।
बलिया, जेएनएन। उस वक्त पूरा देश हिल गया था जब दिल्ली में गैंगरेप की शिकार निर्भया के साथ दर्दनाक घटना घटी। वह काला दिन 16 दिसम्बर 2012 था। इस भयानक व घिनौने अपराध ने देश की सभी बेटियों सहित आम अभिभावकों को भी इस कदर झकझोर दिया था पीडि़ता के पक्ष में सारा देश अचानक उठ खड़ा हो गया। लगभग 15 दिनों तक जिंदगी और मौत से जूझती निर्भया सिंगापुर के एक अस्पताल में इस लोक से सदैव के लिए विदा हो गई। सभी की मांग पर महिला सुरक्षा से संबंधित कई कानून को अमलीजामा पहनाया गया। इसके बावजूद कहीं भी इस तरह की घटनाएं बंद नही हुईं। हद तो तब हो गई जब घटना के इतने दिनों बाद भी दोषी जेल में ही बंद हैं उन्हें आज तक फांसी नहीं दी गई। इस बात को लेकर निर्भया के माता-पिता काफी नाराज व दुखी हैं।
-मां ने माना, आज भी असुरक्षित हैं महिलाएं
निर्भया की मां आशा देवी व पिता बद्रीनाथ ङ्क्षसह दोनों दिल्ली में ही रहते हैं। एक बातचीत में उन्होंने जब अपनी पीड़ा सामने रखी तो सरकार भी कटघरे में खड़ी नजर आई। पीडि़ता की मां ने कहा कि आज भी देश में महिलाओं के साथ दुष्कर्म के मामले सामने आते रहते हैं। महिलाएं खुद को पूरी तरह असुरक्षित महसूस करती हैं। इसकी एक बड़ी वजह अपराधियों की सोच है। वे सोचते हैं कि वे चाहे कुछ भी करें, उन्हें कुछ नहीं होगा। कुछ दिन जेल में रहकर वे बाहर आ जाएंगे। ऐसी स्थिति देखकर यह नहीं लगता है कि निर्भया के दोषियों को फांसी के तख्ते पर कभी ले जाया जाएगा। यदि सरकारें इस मसले पर गंभीर होतीं तो दोषियों को फांसी पर लटका दिया गया होता। दुख व्यक्त करते हुए वह कहती हैं कि न्याय के लिए उन्हें आज भी नेताओं के यहां भटकना पड़ रहा है। जितने लोग मिलते हैं उतना सुझाव देते हैं। इस सरकार का कार्यकाल भी खत्म हो गया लेकिन दोषियों को फांसी नहीं दी गई। इस तरह की न्याय व्यवस्था से भला किसे सुकून मिलेगा।
मतदान को लेकर उदास है मन
निर्भया के माता पिता ने कहा लोकसभा का चुनाव चल रहा है। सभी दल और उनके नेता अपनी-अपनी पार्टी का परचम लहराने के किए बहुत सी बातें कर रहे हैं। महिला सुरक्षा की भी बातें हो रही हैं, लेकिन यह केवल ढ़ोंग हैं। यदि सच्चे मन से वे महिलाओं के हित में सोचते तो आज निर्भया के हत्यारे फांसी पर लटक गए होते। मतदान के संबंध में कहा कि यह लोकतंत्र का महापर्व कहा जाता है। मतदान को लेकर हर किसी का मन खुश हैं लेकिन हमारा मन खुश नहीं है। हम तो न्याय की मांग करते-करते अब थक से गए हैं। चुनाव के बाद फिर नई सरकार का गठन होगा। फिर हम न्याय के लिए सैकड़ों नेताओं के यहां फरियाद करने जाएंगे। एक बार फिर वही बात होगी। मामला न्यायालय में चल रहा है, बहुत जल्द निर्भया के हत्यारों को फांसी होगी। ऐसे में मतदान को लेकर हमारे मन में कोई उत्साह नहीं है। सोचते हैं किसे वोट दें, कोई भी तो नहीं दिखता जो दोषियों को शीघ्र फांसी पर लटकाने की बात करे।