परम धर्म संसद-1008 : अयोध्या में राम मंदिर था, और आगे भी रहेगाः स्वरूपानंद सरस्वती
तीन दिवसीय धर्म संसद सत्र का आरंभ रविवार सुबह दस बजे काशी में प्रारंभ हो गया, तीन दिनों तक काशी में धर्म संसद के दौरान विचार और मंथन का लंबा दौर चलेगा।
जेएनएन, वाराणसी। सनातन धर्म से जुड़ी समस्याओं के समाधान के निमित्त ज्योतिष एवं द्वारिका शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती द्वारा स्थापित परम धर्म संसद 1008 का रविवार को हर हर महादेव के उद्घोष संग श्रीगणेश हो गया। बतौर परम धर्माधीश शंकराचार्य ने कहा कि श्रीराम मंदिर को राजनीति का विषय बनाकर विषयांतर करने का प्रयास किया जा रहा है। रामजन्म भूमि शास्त्रों में प्रमाणित है। वहां राम मंदिर था, है और आगे भी रहेगा। शंकराचार्य परम धर्म संसद के प्रथम दिन की कार्रवाई के समापन सत्र को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कोर्ट में यह सिद्ध किया जा चुका है कि वहां न तो बाबर या मीर बांकी ने ही कभी मस्जिद बनवाई। राम जन्मभूमि पर 14 खंभे, मंगल कलश व हनुमत प्रभु का चित्र वहां मंदिर को प्रमाणित करते हैं। इससे इतर यदि हम यह कहेंगे कि मस्जिद तोड़ कर मंदिर बनाएंगे तो सामाजिक वैमनस्य रहेगा। ऐसे में न्याय संगत तरीके से सिद्ध कर हम मंदिर बनाएंगे। रही बात इस संबंध में अध्यादेश ले आने की तो इससे यह संदेश जाएगा कि हम बहुमत के कारण एक पक्ष के साथ अन्याय कर रहे हैं।
परम धर्माधीश स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती (शंकराचार्य) शाम चार बजे सीर गोवर्धन पहुंचे। पहले दिन के दो सत्रों में हुए मंथन के निचोड़ पर परम धर्म संसद को उन्होंने शाम को संबोधित भी किया। इससे पूर्व तीन दिवसीय धर्म संसद सत्र का आरंभ रविवार सुबह दस बजे काशी में प्रारंभ हो गया। पहले दिन धर्म संसद में सनातन धर्म और उसकी वर्तमान स्थितियों को लेकर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद से सभा को संबोधित किया। सनातन धर्म के लिए अत्यंत महत्व रखने वाली संख्या 1008 के लिहाज से ही धर्म संसद में इतने आसन बनाए गए हैं। इसमें संसदीय प्रतिनिधियों के बहुमत के बाद वर्तमान लोक रीति-नीति अनुशीलन से विशेषज्ञ मतानुसार प्रस्ताव पारित होंगे। इस पर परमधर्माधीश शंकराचार्य के सानिध्य में आठ सदस्यीय समिति परमधर्मादेश देगी।
परम धर्म संसद की कार्रवाई
धर्म संसद में संसदीय क्षेत्रवार देशभर से सनातन धर्म को जीने और समस्याओं का अनुभव करने वाले 543 धर्मांसद बनाए गए हैं। सनातनधर्म के 281 संतों, नेताओं, विद्वानों के साथ धार्मिक संस्थाओं के 184 प्रतिनिधि-विशिष्टजन भी भागीदारी कर रहे हैं। सदन में बहुमत से पारित प्रस्ताव विशेषज्ञ सदन में चर्चा के लिए आएंगे। इसकी कार्रवाई संसद की तरह ही चलाई जाएगी। इसके लिए उत्तर प्रदेश विधानसभा में ढाई दशक सेवा दे चुके राजेंद्र पांडेय के नेतृत्व में 18 सदस्यीय समिति बनी है। सवाल-निर्णय समेत संसद की कार्रवाई रिकार्ड करने के साथ प्रकाशित भी होगी।
बोले स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती
धर्म संसद के पहले दिन सभा को संयोजक, परम धर्म संसद 1008 स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने संबोधित किया। कहा कि सनातनधर्म पर शक्तिशाली विधर्मियों द्वारा चौतरफा हमला किया जा रहा है। हिंदुत्व के छद्म ठेकेदारों द्वारा भी सनातनधर्म को नष्ट करने में कोई कसर नही छोड़ी जा रही है। सनातनी जनमानस मार्गदर्शन के बिना किंकर्तव्यविमूढ़ स्थिति में है। छद्मधार्मिक जन सनातनी जनता को मात्र वोट का साधन बनाकर रख दिये हैं। ऐसे में सन्तों का ये परमदायित्व बनता है कि सनातन धर्म को संक्रमण काल से निकाल कर पुनः स्वर्णिम युग मे पहुंचा दें। उसी क्रम में परमधर्मसंसद 1008 के माध्यम से सनातनधर्म को पुष्ट करने हेतु सशक्त कदम बढाया गया है।
एक दिन पूर्व हुए आयोजन
इस दौरान केदारघाट पर श्रीविद्या मठ में विराजमान शंकराचार्य को झांकी दल ने प्रणाम किया। यात्रा का नेतृत्व धर्म संसद संयोजक स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने किया। इसके अलावा सायंकाल शंकराचार्य सीरगोवर्धन पहुंचे और डमरुओं की थाप व शंख ध्वनि के बीच धर्म ध्वजा स्थल तक ले आया गया। साथ ही उनकी चरण पादुका का पूजन व आरती की गई। इसके बाद शंकराचार्य ने धर्म ध्वजात्तोलन किया और परम धर्म संसद का उद्घाटन किया। धर्म संसद आसन पर विराजमान हुए और दीप प्रज्ज्वलित कर संसद सत्र का शुभारंभ किया। अब तीन दिनों तक काशी में धर्म संसद के दौरान विचार और मंथन का लंबा दौर चलेगा।
इससे पहले सुबह से चले दो सत्रों में मंदिरों के विध्वंस के खिलाफ मंदिर रक्षा विधेयक, गंगा रक्षार्थ गंगा पर बने बांधों को तोडऩे का प्रस्ताव और गौ रक्षार्थ विधेयक प्रस्तुत किया गया। इन्हें धर्मांसदों ने ध्वनि मत से पारित कर दिया। प्रवर धर्माधीश स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने विषय स्थापना की। देश की 543 लोकसभाओं से जुटे सनातनधर्मी धर्मांसदों, चारो धामों के प्रतिनिधियों, 51 शक्तिपीठों समेत देश-विदेश से आए प्रतिभागियों ने धार्मिक विषयों पर गहन मंथन किया। जल पुरुष डा. राजेन्द्र सिंह, ब्रह्मचारी सुबुद्धानंद, महामंडलेश्वर हरि चैतन्यानंद, महामंडलेश्वर ऋषिश्वरानंद आदि ने विचार व्यक्त किए।