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पं दीन दयाल उपाध्याय ने भारत के सनातन सत्य को आगे बढ़ाने का किया है काम : हृदय नारायण दीक्षित

विधान सभा अध्यक्ष व विख्यात लेखक हृदय नारायण दीक्षित ने कहा कि पं दीन दयाल ने अपने साहित्य के माध्यम से सनातन सत्य को सबके समक्ष रखा है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Tue, 11 Feb 2020 02:59 PM (IST)Updated: Tue, 11 Feb 2020 09:03 PM (IST)
पं दीन दयाल उपाध्याय ने भारत के सनातन सत्य को आगे बढ़ाने का किया है काम : हृदय नारायण दीक्षित
पं दीन दयाल उपाध्याय ने भारत के सनातन सत्य को आगे बढ़ाने का किया है काम : हृदय नारायण दीक्षित

वाराणसी, जेएनएन। बीएचयू स्थित मालवीय मूल्य अनुशीलन केंद्र में पं दीन दयाल उपाध्याय की पुण्य तिथि के अवसर पर प्रदेश के विधान सभा अध्यक्ष व विख्यात लेखक हृदय नारायण दीक्षित ने कहा कि पं दीन दयाल ने अपने साहित्य के माध्यम से सनातन सत्य को सबके समक्ष रखा है। उनका एकात्म मानववाद वही है जो जो सत्य गीता में कृष्ण अर्जुन से बताया था। यह पूरा ब्रह्मांड एक इकाई है। इसका एक शाश्वत सत्य है। हम अपने साथ सारी दुनिया को आगे बढ़ाना चाहते हैं। सत्य एक है जिसकी समय व स्थिति के मुताबिक व्याख्या होती रहती है लेकिन सनातन सत्य वही रहते हैं। कविता फिर से गाई जाती है। कहानियां फिर से सुनाई जाती हैं, लेकिन किरदार बदल जाते हैं। उपनिषद हो या पश्चिमी साहित्य सभी एक ही बात कर रहा है।

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दुनिया की सभ्यताएं लड़ेंगी यह बताया सैमुएल हटिंगटन ने, वहीं विपिन चंद्रपाल ने बताया था सारी दुनिया मे कुछ आस्थाओं के लोग लड़ेंगे। अर्थात सबने अपने मुताबिक सत्य की व्याख्या की। आज दुनिया में आर्थिक, सामाजिक व वैश्विक दृष्टि से कई वाद हैं, इनमें अराजकतावाद, आतंकवाद प्रमुख हैं। इन सबसे निपटने का विचार पं दीन  दयाल के विचारों में छुपा है। दुनिया टूट रही है, इसको देखते उनके बताए मार्गों पर चलकर सबको एक मार्ग पर लाया जा सकता है।

हम सबको सबको एकात्म मानववाद की विचारधारा को सुननी होगी, चाहे किसी को बुरा लगे या भला पर उनका विचार सांस्कृतिक राष्ट्रवाद पर टिका है, जो कई वैश्विक संकटों को दूर कर सकता है।  युद्ध को रोकने की दृष्टि से हमें दीन दयाल जी को सुनना पड़ेगा व दूसरों को हमें सुनाना होगा। आप किसी भी भाव भंगिमा में रहो राष्ट्रवाद को केंद्र में रखो। यह यूरोप का राष्ट्रवाद नहीं है जो ईसा के जन्म के बाद आया, बल्कि उसके ढाई हजार साल पूर्व भारत में राष्ट्रवाद का आगमन ऋग्वेद से ही हो चुका था।


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