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पद्म पुरस्‍कार 2022 : न्याय विद्या के वशिष्ठ और ज्ञान-दान के दधीचि हैं पद्म भूषण प्रो. वशिष्ठ त्रिपाठी

पद्म पुरस्‍कार 2022 राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित प्रो. वशिष्ठ त्रिपाठी की शिक्षा-दीक्षा बनारस में हुई। वर्ष 1961 में संस्कृत विश्वविद्यालय से आचार्य की उपाधि हासिल की। विश्वविद्यालय से उस समय न्याय विद्या से आचार्य करने वाले एकमात्र छात्र प्रो. वशिष्ठ त्रिपाठी ही थे।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Tue, 25 Jan 2022 09:33 PM (IST)Updated: Tue, 25 Jan 2022 09:45 PM (IST)
पद्म पुरस्‍कार 2022 : न्याय विद्या के वशिष्ठ और ज्ञान-दान के दधीचि हैं पद्म भूषण प्रो. वशिष्ठ त्रिपाठी
पद्म भूषण सम्मान के चयनित संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व प्रति कुलपति व न्याय शास्त्र के विद्वान प्रो. वशिष्ठ त्रिपाठी

जागरण संवाददाता, वाराणसी। पद्म भूषण सम्मान के चयनित संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व प्रति कुलपति व न्याय शास्त्र के उद्भट् विद्वान प्रो. वशिष्ठ त्रिपाठी को न्याय विद्या के वशिष्ठ, ज्ञान-दान के दधीचि भी कहा जा सकता है। 81 वर्ष की उम्र में अब भी वह बिना मोल नि:स्वार्थ ज्ञान-दान में जुटे हैं।

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जागरण प्रतिनिधि से बातचीत में उन्होंने कहा कि संस्कृत सिर्फ भाषा ही नहीं राष्ट्र का गौरव भी है। न्याय दर्शन से ही देश पुन: विश्व गुरु बन सकता है। ऐसे में संस्कृत भाषा को प्रारंभिक कक्षाओं से अनिवार्य करने की जरूरत है। साथ ही इसे रोजगारपरक भी बनाना होगा ताकि संस्कृत भाषा के प्रति लोगों का रूझान बढ़ सके। कहा कि संस्कृत विद्यालयों व महाविद्यालयों में वर्षों से शिक्षकों के पद रिक्त चल रहे हैं। इसके असर छात्रों की संख्या पर पड़ रहा है। उन्होंने सरकार से शिक्षकों के रिक्त पदों पर नियुक्ति करने का भी अनुरोध किया है।

उस समय न्याय के इकलौते छात्र

मूलत : देवरिया जिले के निवासी राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित प्रो. वशिष्ठ त्रिपाठी की शिक्षा-दीक्षा बनारस में हुई। वर्ष 1961 में संस्कृत विश्वविद्यालय से आचार्य की उपाधि हासिल की। विश्वविद्यालय से उस समय न्याय विद्या से आचार्य करने वाले एकमात्र छात्र प्रो. वशिष्ठ त्रिपाठी ही थे।

न्याय व वैशेषिक विभाग से वर्ष 2001 में रिटायर प्रो. त्रिपाठी 81 वर्ष की आयु में अब भी छह-सात घंटे रोज पढ़ाते हैं। विभिन्न विवि व कालेजों के अध्यापक उनके पास सीखने-समझने के लिए आते रहते हैं। उनके पढ़ाए छात्र बीएचयू सहित प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों में कार्यरत हैं।

पढ़ने के साथ निश्शुल्क पढ़ाया

पढ़ने के दौरान उन्हें महसूस हुआ कि न्याय पढऩे वाले छात्रों की संख्या नगण्य है। ऐसे में यह विद्या लुप्त हो सकती है। इसके बाद वह बच्चों को नि:शुल्क न्याय वैशेषिक पढ़ाने लगे। सेवानिवृत्ति के बाद भी क्रम बना रहा। कबीरनगर स्थित काष्र्णी विद्याभवन में सुबह साढ़े सात से दस बजे तक वह बच्चों को मुफ्त पढ़ाते हैं।

घर बना शास्त्रों की पाठशाला

नगवां स्थित उनका घर भी शास्त्रों की पाठशाला है। दोपहर तीन से सात बजे तक छात्रों का आना लगा रहता है। जिस न्याय विद्या ने प्रो. त्रिपाठी को मान, सम्मान और पहचान दी, वे उसे सहेजने में योगदान दे रहे हैं। उनके चेहरे पर दिखती छात्रों को न्याय विद्या में पारंगत करने की खुशी ही शायद उनके ज्ञान-दान का असल मोल है।


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