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हमारे तीर्थ स्थल : मीरजापुर के जीत नारायण ने दिखाई थी दिलेरी, जला दिया था पहाड़ा स्टेशन

आजादी के दिनों में यहां के दीवानों के जांबाजी की चर्चा आज भी देश भर में है। 1942 की क्रांति में आजादी के दीवाने जीत नारायण पांडेय ने पहाड़ा रेलवे स्टेशन को अपने कई साथियों के साथ जला दिया था।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Wed, 04 Aug 2021 08:49 PM (IST)Updated: Wed, 04 Aug 2021 08:49 PM (IST)
हमारे तीर्थ स्थल : मीरजापुर के जीत नारायण ने दिखाई थी दिलेरी, जला दिया था पहाड़ा स्टेशन
1942 में जीत नारायण पांडेय ने पहाड़ा रेलवे स्टेशन को अपने कई साथियों के साथ जला दिया था।

मीरजापुर, जागरण संवाददाता। आजादी के दीवानों की जांबाजी इतिहास के पन्नों से भले ही गायब हो जाए, लेकिन आजाद देश के लोग कभी नहीं भूल पाएंगे। आजादी के दिनों में यहां के दीवानों के जांबाजी की चर्चा आज भी देश भर में है। 1942 की क्रांति में आजादी के दीवाने जीत नारायण पांडेय ने पहाड़ा रेलवे स्टेशन को अपने कई साथियों के साथ जला दिया था। इनके साथ अन्य वीर सपूतों ने भी जनपद की शान रखी है।

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आजादी के पूर्व महात्मा गांधी ने 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत किया। इसमें देशभक्तों ने जान की परवाह किए बगैर आंदोलन की आग में कूद पड़े थे। पहाड़ी ब्लाक के ग्राम पंचायत बेलवन के मजरा पकरी का पुरा गांव निवासी जीत नारायण पांडेय बालपन से ही क्रांतिकारी रहे। जीत नारायण के अंदर देशभक्ति की भावना कूट-कूटकर भरी थी। अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ उन्होंने लोगों को देशभक्ति के प्रति जागरूक किया। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रियता से भाग लिया तथा 1940 में डीआइआर के तहत छह माह की सजा भी काटे। स्व. पांडेय ने स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लड़ते-लड़ते कई बार जेल गए। अपने साथियों के सहयोग से अंग्रेजों के दांत खट्टे किए।

जीत नारायण की प्रारंभिक शिक्षा वाराणसी के गंगापुर में हुई। तत्पश्चात् वह अपने ननिहाल अहरौरा चले आए, जहां क्रांतिकारियों के बीच जीत नारायण स्वतंत्रता संग्राम आंंदोलन से जुड़ गए। 13 अगस्त सन् 1942 को अपने साथियों नरेश चंद्र श्रीवास्तव, विद्या सागर शुक्ल, पुष्कर पांडेय के साथ सक्रिय रूप से भाग लिया और मदद किए। पहाड़ा कांड के बाद जीत नारायण पांडेय को पुलिस ने पकड़ लिया। अंग्रेजी कोर्ट में मुकदमा चला और मीरजापुर के जिला कारागार में उन्हें सात वर्ष की सजा दी गई। 1940 में डीआइआर के तहत छह माह की सजा हुई थी। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रियता से भाग लिया। 102 वर्ष की अवस्था पूर्ण होने पर पिछले दो वर्ष पूर्व वह दिवंगत हो गए थे। वर्तमान समय में गांव पकरी का पुरा में उनके नाम से विद्यालय संचालित होता है। देश की आजादी के लिए जीत नारायण ने जो योगदान दिया है, उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता।


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