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ऑनलाइन संवाद : छात्रों को भारत के सांस्कृतिक प्रतिनिधि के रूप में देखना चाहते थे महामना

महामना पं. मदन मोहन मालवीय काशी हिंदू विश्वविद्यालय के माध्यम से न सिर्फ लोगों को शिक्षित करना चाहते थे बल्कि लोगों को सांस्कृतिक दृष्टि से भी संपन्न बनाना चाहते थे।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Thu, 25 Jun 2020 10:59 PM (IST)Updated: Thu, 25 Jun 2020 10:59 PM (IST)
ऑनलाइन संवाद : छात्रों को भारत के सांस्कृतिक प्रतिनिधि के रूप में देखना चाहते थे महामना
ऑनलाइन संवाद : छात्रों को भारत के सांस्कृतिक प्रतिनिधि के रूप में देखना चाहते थे महामना

वाराणसी, जेएनएन। महामना पं. मदन मोहन मालवीय काशी हिंदू विश्वविद्यालय के माध्यम से न सिर्फ लोगों को शिक्षित करना चाहते थे, बल्कि लोगों को सांस्कृतिक दृष्टि से भी संपन्न बनाना चाहते थे। वे यहां के छात्रों को भारत का सांस्कृतिक प्रतिनिधि बनाना चाहते थे, जो अपनी व्यक्तिगत एवं कार्मिक पहचान के अलावा देश-विदेश में भारतीय संस्कृति के दूत के रूप में पहचाने जाएं।

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यह बातें महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालयए वर्धा के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल ने बीएचयू पुराछात्र प्रकोष्ठ द्वारा गुरुवार को आयोजित ऑनलाइन संवाद श्रृंखला 'हम बीएचयू के लोग' की तीसरी कड़ी को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि मेरे जैसा व्यक्ति महामना की समीक्षा करने की सामथ्र्य नहीं रखता। मैं केवल उनकी स्तुति ही कर सकता हूं। महामना ने बीएचयू की स्थापना एक दृष्टि से की थी, उनका उद्देश्य महज एक विश्वविद्यालय की स्थापना करना नहीं था। महामना काशी में भारतीय परंपराओं और आधुनिक शिक्षण के परस्पर समन्वय वाले विश्वविद्यालय की स्थापना करना चाहते थे। उनकी दृष्टि बहुत स्पष्ट थी। वो स्वतंत्र भारत को राह दिखलाने वाले विश्वविद्यालय की स्थापना करना चाहते थे। एक विश्वविद्यालय जिसके स्नातक भारतीय राष्ट्र के निर्माण में उसके उत्थान में अपना योगदान दें। उनकी दृष्टि में धर्म और संस्कृति अलग-अलग नहीं थे। वो हिन्दू विद्याओं की पुनस्र्थापना चाहते थे। संस्कृत को मुख्यधारा में लाना चाहते थे। वो पूरब और पश्चिम के ज्ञान का सम्मिश्रण चाहते थे। उनकी दृष्टि में संस्कृति का सच्चा अर्थ है भारतीयता। वो हिन्दू धर्म के सच्चे उपासक थे। लेकिन इसके अंदर आ गई कुरीतियों के आलोचक भी थे। यही कारण है जब जमनालाल बजाज ने अपने पूर्वजों द्वारा बनाए गए लक्ष्मीनारायण मंदिर को सभी जाति के लोगों के लिए खोल दिया तो वो इसकी प्रशंसा हेतु पत्र भी लिखते हैं। वो हिंदू धर्म के सच्चे उपासक होते हुए भी रूढि़वादी नहीं थे इसका प्रमाण है पूना पैक्ट जिसमें वो बाबा साहब आंबेडकर और महात्मा गांधी के बीच मध्यस्थता करते हैं। कहा, यह विश्वविद्यालय भारतीय संस्कृति का स्थापत्य है, सरस्वती का मंदिर है। इस दौरान उन्होंने विवि के वर्चुअल मंच पर आमंत्रित करने के लिए काशी हिंदू विश्वविद्यालय पुराछात्र प्रकोष्ठ की अध्यक्षा प्रो. सुशीला सिंह का आभार व्यक्त किया।


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