भारत में लोकतंत्र के लिए काफी सुखद संकेत है 'एक देश-एक चुनाव' : प्रो. संजय श्रीवास्तव
देश में एक साथ लोकसभा व विधानसभा चुनाव कोई नई बात नहीं है। संविधान लागू होने के बाद जब वर्ष 1951-52 में पहली बार चुनाव हुए तो कमोबेश इसी पैटर्न को आधार बनाया गया था।
वाराणसी, जेएनएन। देश में एक साथ लोकसभा व विधानसभा चुनाव कोई नई बात नहीं है। संविधान लागू होने के बाद जब वर्ष 1951-52 में पहली बार चुनाव हुए तो कमोबेश इसी पैटर्न को आधार बनाया गया था। इसके बाद वर्ष 1957, 62 व 1967 में भी यही सिलसिला कायम रहा। भारतीय राजनीति में इस अवधि को 'कांग्रेस सिस्टम' कहा जाता है। यह वो समय था जब केंद्र से लेकर राज्यों में कांग्रेस का बोलबाला था। मगर 1967 में यह क्रम टूट गया। आठ बड़े राज्यों में कांग्रेस सरकार नहीं बना पाई। इन राज्यों में मिली-जुली सरकार जरूर बनी, लेकिन कोई भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया। लिहाजा लोकसभा व विधानसभा के चुनाव की तिथियों में अंतर होता चला गया।
जागरण विमर्श में इस बार काशी हिंदू विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग के प्रो. संजय श्रीवास्तव अपनी बात रखने के लिए सोमवार को दैनिक जागरण कार्यालय में मौजूद थे। अकादमिक बैठक का विषय था,'कैसे संभव हों एक साथ चुनाव'। प्रो. श्रीवास्तव ने इस विषय के सभी पहलुओं पर चर्चा की। बताया लोकसभा चुनाव 2019 में कुल साठ हजार करोड़ रुपये खर्च हुए। चुनाव अयोग को कुल 50 हजार करोड़ रुपये की भारी-भरकम धनराशि खर्च करनी पड़ी थी। वहीं राजनीतिक दलों ने 10 हजार करोड़ रुपये खर्च किए थे, जिनमें से 53 फीसद धनराशि इनविजिबल थी। यानी 5300 करोड़ रुपये का कहीं कोई हिसाब नहीं। ये पैसे किसके थे, कहां से आए कोई जानकारी नहीं।
इसके लागू होने से रुकेगा भ्रष्टाचार - चुनावों में राजनीतिक दलों की ओर से 'इनविजिबल मनी' यानी एक तरह की ब्लैक मनी का खूब प्रयोग होता है। यह धन कहां से आया, किसने दिया आदि का ब्योरा न तो चुनाव आयोग के पास होता है और न ही पार्टियां इसे सार्वजनिक करती हैं। देश में लोकसभा व विधानसभा का चुनाव एक साथ होने से ब्लैकमनी पर लगाम लगेगा और भ्रष्टाचार रुकेगा।
देश को चुनावी मोड से मिलेगी मुक्ति - हमारा देश हमेशा चुनावी मोड में ही रहता है। लोकसभा का चुनाव खत्म हुआ नहीं कि विधानसभा की तैयारी सिर पर। एक राज्य के चुनाव के बाद दूसरे में चुनाव। आदर्श आचार संहिता की वजह से 'पालिसी पैरालिसिस' की स्थिति उत्पन्न हो जाती है जो विकास कार्यो में सबसे बड़ी बाधक है। वहीं लोकसभा का चुनाव हो या विधानसभा का, सांसद-विधायक का ध्यान गवर्नेस से हट कर महीने दो महीने के लिए चुनाव प्रचार चला जाता है। ऐसे में जनहित से जुड़े कई जरूरी कार्य लंबित रह जाते हैं।
क्षेत्रीय दलों को दिख रहा अस्तित्व का संकट - हाल ही में 'एक देश-एक चुनाव' पर सर्वदलीय बैठक हुई। कई क्षेत्रीय दलों ने इसका बहिष्कार करते हुए इसे लोकतंत्र की भावना के विपरीत बताया। उनका मानना है कि विधानसभा के साथ लोकसभा का चुनाव होने पर भाजपा को मोदी फैक्टर का लाभ मिलेगा। क्योंकि मोदी जैसा न तो उनके पास व्यक्तित्व है और न ही नेतृत्व। हाल में पश्चिम बंगाल व त्रिपुरा के नतीजों में यह देखने को भी मिला। क्षेत्रीय दलों की विडंबना ये है कि उनके पास इसकी कोई काट भी नहीं है। उनके मुताबिक क्षेत्रीय मुद्दों पर राष्ट्रीय मुद्दे हावी होने से केंद्र सरकार की संप्रभुता को मजबूती मिलेगी, लेकिन राज्यों की स्थित कमजोर होगी।
अपनाए जा सकते हैं ये दो तरीके - देश में एक साथ चुनाव कराने के लिए फिलहाल दो तरीकों पर विचार किया जा रहा है। पहला यह कि 'एक देश-एक चुनाव' चरणबद्ध तरीके से लागू किया जाए। यानी 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के साथ अगले छह माह आगे व छह माह पहले तक होने वाले विधानसभा चुनावों को एक साथ कराया जाए। वहीं दूसरा तरीका यह है कि पांच वर्ष में दो बार विधानसभा चुनाव हो। इसका फायदा होगा कि विधानसभा भंग होने की दशा में लंबा इंतजार नहीं करना पड़ेगा।
मौजूदा सरकार है सक्षम - केंद्र की मौजूदा मोदी सरकार हर तरह से सक्षम है। दलों के बीच सहमति न बनने की स्थिति में सरकार के पास संविधान में संशोधन करने का विकल्प खुला हुआ है।
'एक देश-एक चुनाव' के फायदे
- सरकार का आर्थिक बोझ कम होगा।
- कालेधन के प्रयोग व भ्रष्टाचार पर अंकुश।
- राज्यों को बार-बार के आचार संहिता से मुक्ति।
- सरकारी कर्मचारियों को नहीं होगी परेशानी।
- धर्म व जाति की बजाय वास्तविक मुद्दों पर होंगे चुनाव
परिचय : प्रो. संजय श्रीवास्तव राजनीति विज्ञान विभाग, काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हैं। साथ ही बीएचयू कोर्ट के सदस्य भी हैं। अध्यापन व शोध कार्यो में 25 वर्ष का अनुभव रखने वाले प्रो. श्रीवास्तव अमेरिकन विवि, वाशिंगटन डीसी के फुल ब्राइट विजिटिंग स्कॉलर रहे हैं। वहीं वर्ष 2005 में सेल्स वर्क सेमिनार फेलो रहे हैं। येरेवान स्टेट विवि अर्मेनिया में आइसीसीआर चेयर होने के साथ ही प्रो. श्रीवास्तव यूजीसी व नैक की समितियों के सदस्य भी हैं।
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