Move to Jagran APP

पुण्यतिथि पर विशेष : समय से मिल जाती महामना की चिट्ठी तो BHU में पढ़ाते Albert Einstein

महामना पंडित मदन मोहन मालवीय के जवाबी चिट्ठी के विलंब से मिलने के कारण दुनिया के महान भौतिकविद अल्बर्ट आइंस्टीन का नाता बीएचयू से जुडऩे से रह गया।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Sat, 18 Apr 2020 04:16 AM (IST)Updated: Sat, 18 Apr 2020 09:08 AM (IST)
पुण्यतिथि पर विशेष : समय से मिल जाती महामना की चिट्ठी तो BHU में पढ़ाते Albert Einstein
पुण्यतिथि पर विशेष : समय से मिल जाती महामना की चिट्ठी तो BHU में पढ़ाते Albert Einstein

वाराणसी [मुहम्मद रईस]। काशी हिंदू विश्वविद्यालय अपनी स्थापना के समय से ही राष्ट्र निर्माण के लिए युवाओं का पथ-प्रदर्शन कर रहा है। इसमें सबसे महती भूमिका यहां के शिक्षकों की रही, जिन्हें महामना पंडित मदन मोहन मालवीय ने देश-दुनिया से आमंत्रित कर सेवाएं ली थीं। इसी कड़ी में उन्होंने 29 अक्टूबर 1931 को जर्मनी के ख्यात भौतिकविद अल्बर्ट आइंस्टीन (14 मार्च 1879 से 18 अप्रैल 1955) को भी आमंत्रण भेजा था। सब कुछ ठीक था, आइंस्टीन तैयार भी थे, लेकिन जवाबी चिट्ठी के विलंब से मिलने के कारण दुनिया के महान भौतिकविद का नाता बीएचयू से जुडऩे से रह गया।

loksabha election banner

भारत रत्न महामना मदन मोहन मालवीय ने जब बीएचयू की नींव रखी तो उनका सपना एक ऐसा संस्थान खड़ा करने का था जहां दुनिया भर के वैज्ञानिक और शिक्षाविद आकर भविष्य के कर्णधारों को ज्ञान का पाठ पढ़ा सकें। अपने सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने जाति, धर्म और देश की सीमाओं की परवाह न की। उन्हें जो भी योग्य लगा, उसे बीएचयू आने का आग्रह किया। उनके अथक प्रयास का परिणाम था कि उस दौर की कई प्रतिभाएं बीएचयू से जुड़ीं और सेवाएं दीं। इसी फेहरिस्त में महान वैज्ञानिक और नोबेल पुरस्कार विजेता अल्बर्ट आइंस्टीन का नाम भी जुड़ सकता था, लेकिन दोनों विभूतियों के राजी होने के बाद भी ऐसा न हो सका।

भारत आना चाहते थे आइंस्टीन 

अल्बर्ट आइंस्टीन को जब मालवीय जी का पत्र मिला तो वो बीएचयू आने को तैयार हो गए। 1940 में उन्होंने अपनी सहमति का पत्र मालवीय जी को लिखा। मगर दुर्भाग्यवश जब वह पत्र बीएचयू पहुंचा तो उस समय मालवीय जी और तत्कालीन कुलपति डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन शहर से बाहर थे। वह पत्र बहुत बाद में मालवीय जी को मिला। इसके बाद जब उन्होंने आइंस्टीन को दोबारा पत्र लिखा तब तक आइंस्टीन अमेरिका के प्रिंस्टन विवि से जुड़ चुके थे।

रदरफोर्ट और एडिंगटन से भी किया था आग्रह 

बीएचयू की वेबसाइट पर मौजूद दस्तावेज के अनुसार मालवीय जी ने विश्व स्तर के विद्वानों को लाने का प्रयास 30 के दशक में ही शुरू कर दिया था। इसी क्रम में उन्होंने ब्रिटेन के भौतिकविद अर्नेस्ट रदरफोर्ड और अमेरिका के खगोलविद आर्थर एडिंगटन से भी संपर्क किया था।

...तो भारत में होते आइंस्टीन : जिस समय आइंस्टीन को पत्र भेजा गया था, उस समय पूरा यूरोप अतिमहत्वाकांक्षी हिटलर से परेशान था। 1939 में दूसरा विश्वयुद्ध भी शुरू हो चुका था। इस समय यहूदियों की स्थिति और खराब थी। आइंस्टीन स्वयं भी यहूदी थे, लिहाजा वह भी परेशान थे और जर्मनी छोडऩा चाहते थे। उस समय थोड़ी बात बनती तो बीएचयू और भारत को उनकी सेवाएं मिलतीं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.