अब घर की छत पर 'लंगड़ा' होगा तगड़ा
वाराणसी के जायके की खास पहचान लंगड़ा आम अब तगड़ा होगा।
सुनील कटियार, वाराणसी
वाराणसी के जायके की खास पहचान लंगड़ा आम अब तगड़ा होगा। कभी विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुके लंगड़ा आम को अब तगड़ा करने की जुगत बोनसाई के जरिये कुछ लोगो ने लगाई है। इससे अब बाग या जमीन का मालिक न होने पर भी लंगड़ा आम खाने की मंशा घर बैठे पूरी होगी। कंक्रीट के जंगल मे आम अब खास होगा और खास होगा लंगड़ा भी। क्योकि जिस प्रकार से इसे बोनसाई का रूप दिया जा रहा है वह इसकी प्रजाति को और बेहतर करेगा। इससे फलत भी बढि़या होगी और हरियाली की चाह भी शहरो मे मुकम्मल होगी।
अपने विशेष जायके और लजीज गूदे की वजह से लंगड़ा आम की डिमांड काफी रहती है। मगर अपने मूल स्थान वाराणसी से ही बनारसी लंगड़ा आम के बाग विकास की भेट चढ़ने से इसका भविष्य संकट मे आ रहा था। अब बोनसाई विकसित करने से लंगड़ा आम का भविष्य भी संवरेगा और इसे पसंद करने वाले अपनी छतो पर ही इसे लगा सकेगे।
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गमलो मे फलेगा लंगड़ा
अपने ही छत पर लगे फलदार पौधे के ताजे फलो का स्वाद चखने का सपना अब बनारस मे पूरा होगा। हाइब्रिड बोनसाई आम के पेड़ो की नर्सरी मडुआडीह के कुछ नर्सरी उद्यमी मेहनत से तैयार करने मे जुटे है। इसके लिए पुराने आमो की ग्राफ्टिग का तरीका बदला गया है अब नए तरीके के विनियर ग्राफ्टिग का प्रयोग किया जा रहा है। इसमे बीजू पौधो के पास परिपक्व वृक्षो की डालियां काटकर ग्राफ्टिग की जा रही है। बोनसाई आम के पेड़ छोटे स्वरूप मे लगाने के एक वर्ष बाद से ही फलत शुरू कर देते है।
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रख रखाव का विशेष ध्यान
ऐसे बोनसाई पौधो के रखरखाव पर विशेष ध्यान देना पड़ता है। उनको नियमित आवश्यकतानुसार पानी, खाद के साथ समय पर कटाई छंटाई भी की जरूरत पड़ती है। नर्सरी व्यवसाय से जुड़े आनद मौर्या, दिनेश मौर्या, अमित पटेल, सुरेश पटेल आदि बताते है कि ये बोनसाई मकान के छतो या बालकनी आदि स्थानो पर बड़े गमलो मे आसानी से लगाया जा सकता है। देखरेख उचित तरीके से होने पर बेहतर उत्पादन की क्षमता भी विकसित होती है।
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गमला बड़ा व मिट्टी हो बेहतर
लंगड़ा या कोई भी प्रजाति की बोनसाई हो तो इससे फलत की गुणवलाा तो वही प्राप्त होती है। हालांकि समय समय पर कटाई-छंटाई करने और मिट्टी की जांच करने से पौधा बेहतर होगा और फल भी गुणवलाापूर्ण होगे। पौधा लंबे समय तक टिके इसके लिए गमले का आकार थोड़ा बड़ा रखना ही उचित होगा।
- प्रो. आर एन खरवार, बॉटनी विभाग, बीएचयू।